UP में जन्म और बिहार में राजनीति; देश विभाजन के खिलाफ थे ये मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी
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UP में जन्म और बिहार में राजनीति; देश विभाजन के खिलाफ थे ये मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी

Muslim freedom fighter Doctor Syed Mehmood: डॉ. सैयद महमूद उन मुस्लिम नेताओं में से थे जो मुस्लिम लीग के विभाजनकारी राजनीति का हमेशा से विरोध करते थे. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में हुआ था, लेकिन उन्होंने आजादी के बाद बिहार में राजनीति की. वहां से विधायक और सांसद भी चुने गए.

मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी डॉ. सैयद महमूद, illustration credit: Mohammad Ghous , Hyderabad

Muslim freedom fighter Doctor Syed Mehmood: भारत की आजादी के लिए मोहम्मद अली जिन्ना के दो राष्ट्रों के सिद्धांत का देश के जिन मुसलमानों और स्वतंत्रता सेनानियों ने विरोध किया था, उनमें डॉक्टर सैयद महमूद भी शामिल थे. डॉक्टर सैयद महमूद ने लोगों को चेतावनी दी थी कि दो राष्ट्र का सिद्धांत और इस तरह की मुहिम कि मुसलमान पाकिस्तानी सरजमीन के बेटे हैं, मुसलमानों के साथ भारत के भविष्य के लिए भी खतरनाक है. 

डॉक्टर सैयद महमूद का जन्म 1889 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के सैयदपुर गाँव में हुआ था. जब वह अलीगढ़ में पढाई कर रहे थे, तब उन्होंने एक ब्रिटिश प्रिंसिपल के खिलाफ हड़ताल में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था, जिसके लिए उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया और ब्रिटिश सरकार का विरोधी करार दिया गया.

उन्होंने बनारस में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सम्मेलन में हिस्सा लिया. इसके पहले अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के गठन के शुरुआती दिनों में भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई थी. डॉक्टर सैयद महमूद ने 1911 में कानून में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल करने के बाद पटना में वकालत शुरू किया. उन्होंने 1915 में बॉम्बे में आयोजित मुस्लिम लीग की बैठक में हिस्सा लिया. महात्मा गांधी की अपील के जवाब में 1919 में खिलाफत और असहयोग आंदोलन में भी डॉक्टर सैयद महमूद ने सक्रिय भूमिका निभाई और अपनी भागीदारी के लिए कई बार जेल गए.

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उन्होंने भारत सरकार अधिनियम 1935 के मुताबिक आयोजित 1937 के चुनावों में चुनाव लड़ा और दक्षिण चंपारण निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधान सभा के लिए जीत हासिल की. वह 1946 में फिर से बिहार विधान सभा के लिए चुने गए और मंत्री भी बने. डॉक्टर सैयद महमूद समाज की समाजवादी व्यवस्था में दिलचस्पी रखते थे. उन्होंने कुटीर उद्योगों और सहकारी फार्मों को प्रोत्साहन दिया. उनका मानना था कि जब तक लोगों के बीच आर्थिक असमानताएं दूर नहीं हो जातीं, तब तक भारत समग्र विकास हासिल नहीं कर पाएगा.

डॉक्टर सैयद महमूद हमेशा से मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति का कड़ा विरोध करते थे. उन्होंने उन नेताओं की आलोचना की जो अलग राष्ट्र की मांग कर रहे थे. उन्होंने हिंदू, मुस्लिम और सिख पीड़ितों के पुनर्वास के लिए भी काम किया, जिन्हें देश के विभाजन के बाद हुए दंगों के दौरान भारी नुकसान उठाना पड़ा था. 

बाद में, वह 1952 में हुए पहले आम चुनाव में पूर्वी चंपारण निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए भी चुने गए. उन्होंने सांप्रदायिकता को कम करने के लिए चुनाव सुधारों के लिए कई सुझाव दिए. डॉक्टर सैयद महमूद हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए कई किताबें लिखीं थीं. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में बहुआयामी भूमिका निभाने वाले डॉ. सैयद महमूद का 28 सितम्बर, 1971 को दिल्ली में निधन हो गया. दक्षिण भारत के इतिहासकार सैयद नसीर अहमद ने डॉक्टर सैयद महमूद का अपनी किताब में ज़िक्र किया है. 

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