Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए इन पार्टियों को मिले ज्यादा पैसे
Advertisement

Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए इन पार्टियों को मिले ज्यादा पैसे

Supreme Court on Electoral Bond: उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि 017-18 से 2022-23 तक पॉलिटिकल पार्टी की सालाना ऑडिट रिपोर्ट के विश्‍लेषण से पता चलता है कि चुनावी बांड के जरिए दान की रकम में भी काफी वृद्धि हुई है. 

Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए इन पार्टियों को मिले ज्यादा पैसे

Supreme Court on Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को रद्द करते हुए बड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि बॉन्ड के जरिए ज्यादातर दान उन पॉलिटिकल पार्टी को गया है, जो केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ हैं. 

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि 017-18 से 2022-23 तक पॉलिटिकल पार्टी की सालाना ऑडिट रिपोर्ट के विश्‍लेषण से पता चलता है कि चुनावी बांड के जरिए दान की रकम में भी काफी वृद्धि हुई है. उदाहरण के लिए, वित्तीय वर्ष 2017-18 में मुख्तलिफ पॉलिटिकल पार्टी को चुनावी बांड के जरिए 221 करोड़ रुपये का दान दिया गया था, जो साल 2021-22 में 10 गुना से ज्यादा कुल 2,664 करोड़ रुपये हो गया.

इलेक्टोरल बॉन्ड सबसे ज्यादा इस पार्टी को मिले पैसे
लिस्ट में टॉप पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 2017-18 में बांड के जरिए कुल 210 करोड़ रुपये मिले और 2022-23 में दान बढ़कर 1,294 करोड़ रुपये हो गया. इसके अलावा साल 2021-22  में कांग्रेस को 236 करोड़ रुपये मिले. वहीं पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी TMC 528 करोड़ रुपये मिले, जबकि तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK को 306 करोड़ रुपये मिले. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय दलों के लिए अज्ञात स्रोतों से आय का हिस्सा साल 2014-15 से 2016-17 के दौरान 66 फीसद से बढ़कर साल 2018-19 से 2021-22 के दौरान 72 फीसद हो गया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि साल 2019-20 से 2021-22 के बीच बॉन्ड आय राष्ट्रीय पार्टियों की कुल अज्ञात आय का 81 फीसद रही है. इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि कुल अज्ञात आय, यानी 20,000 रुपये से कम का दान, कूपन की बिक्री आदि में कमी नहीं देखी गई है और साल 2014-15 से 2016-17 के दौरान 2,550 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2018-19 से 2021-22 के दौरान 8,489 करोड़ रुपये हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साल 2018-19 से 2021-22 के बीच बांड आय राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की कुल आय का 58 फीसद है.

न्यायमूर्ति खन्ना ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना आंकड़ों के विश्‍लेषण के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम आनुपातिकता परीक्षण के संतुलन को पूरा करने में विफल रही है. न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, "हालांकि, मैं दोहराना चाहूंगा कि डेटा और सबूतों की सीमित उपलब्धता की वजह से मैंने आनुपातिकता स्ट्रिक्टो सेंसु लागू नहीं किया है." उनकी राय में इलेक्शन कमीशन (ईसी) की वेबसाइट पर उपलब्ध डेटा और याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत डेटा शामिल था.

चीफ जस्टिस ने की बड़ी टिप्पणी
हालांकि, न्यायमूर्ति खन्ना ने स्पष्ट किया कि कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन के जरिए दिया गया सीलबंद लिफाफा अभी नहीं खोला है. चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई वाली संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि वोटर्स को राजनीतिक दलों की फंडिंग का जानकारी जानने के अधिकार से वंचित करने से विरोधाभासी हालात पैदा होगी और दूसरे राजनीतिक दलों की फंडिंग नहीं हो सकेगी. इलेक्शन लड़ने वाले दूसरे राजनीतिक दलों के कैंडिडेट्स के साथ अलग तरह का व्यवहार किया जा सकता.

Trending news