Cremation of Buddhist Monks: साधु-संतों की दुनिया बेहद अलग और कई मामलों में खासी रोचक भी होती है. जीवन के साथ-साथ उनकी मृत्‍यु और अंतिम संस्‍कार भी अलग होती है. दुनिया के कई देशों में फैले बौद्ध भिक्षुओं का जीवन और मृत्‍यु के बाद अंतिम संस्‍कार का तरीका भी ऐसा ही है. तिब्‍बत बौद्ध भिक्षुओं के अंतिम संस्‍कार का तरीका इतना वीभत्‍स है कि उसे सुनकर ही आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. 
 
शव के टुकड़े करके डालते हैं जौ के आटे के घोल में 
 
वैसे तो दुनियाभर अंतिम संस्‍कार के सबसे आम तरीके शव को दफनाना या शव को जलाना है. लेकिन कुछ धर्म-समुदाय के लोग इन तरीकों से हटकर अंतिम संस्‍कार करते हैं. तिब्‍बत में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं को मरने के बाद ना तो जलाया जाता है और ना ही दफनाया जाता है. बल्कि उनके शव को किसी पहाड़ की बहुत ऊंची चोटी पर ले जाया जाता है. वहां विधि-विधान से पूजा करने के बाद शव के छोटे-छोटे टुकड़े करके जौ के आटे के घोल में डाला जाता है. इसके बाद उन्‍हें वहीं ऊंचाई पर गिद्धों और चीलों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है. 


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मजबूरी में किया जाता है ऐसा अंतिम संस्‍कार 


तिब्‍बत में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के अंतिम संस्‍कार की इस जटिल और वीभत्‍स परंपरा को मानने के पीछे कई कारण हैं. एक तो तिब्‍बत के ऊंचाई पर होने के कारण यहां पेड़ कम होते हैं, ऐसे में शव जलाने के लिए लकड़ी जुटाना मुश्किल होता है. वहीं शव को दफनाना भी संभव नहीं है क्‍योंकि यहां की जमीन पथरीली है, जिससे कब्र खोदने के लिए गहरा गड्ढा खोदना बहुत मुश्किल काम होता है. 


इसके अलावा बौद्ध धर्म में मरने के बाद शरीर को खाली बर्तन माना जाता है. ऐसे में शव को पक्षियों को खिलाकर उनका पेट भरना उचित माना जाता है और इस प्रक्रिया को 'आत्‍म बलिदान' कहा जाता है.


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)