Pitru Paksha 2022: 10 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है. ये 16 दिन तक पितरों का पिंडदान, तर्पण और धर्म-कर्म आदि किया जाता है. कल 13 सितंबर को चतुर्थी तिथि श्राद्ध किया जाता है. चतुर्थी तिथि को हुई मृत्यु वाले लोगों के लिए चतुर्थी तिथि के दिन श्राद्ध कर्म किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्राद्ध कर्म के दौरान पंचबली भोग का विशेष महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि पंचबली भोग के बिना श्राद्ध पूरा नहीं माना जाता.  


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धार्मिक मान्यता है कि श्राद्ध के दौरान पंचबली भोग न लगाने से पितर असंतुष्ट रह जाते हैं और तृप्त नहीं हो पाते. ऐसे में वे नाराज होकर वापस लौट जाते हैं. ऐसे में सही विधि से पंचबली भोग लगाना बेहद जरूरी है. आइए जानते हैं पंचबली भोग लगाने की सही विधि और नियम के बारे में. 


श्राद्ध में पंचबली भोग का महत्व


धार्मिक मान्यता के अनुसार पित- पक्ष 16 दिन तक चलते हैं और हर दिन पितरों के निमित्त होने वाले श्राद्ध में पंचबली भोग लगाया जाता है. इसे पंच ग्रास के नाम से भी जानते हैं. ऐसा माना जाता है कि पंचबली भोग लगाने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद हेते हैं. बता दें कि पंचबली भोग में पांत प्रकार के जीव को भोग लगाया जात है.और इनके माध्यम से ही पितर बोजन ग्रहण करते हैं.   



जानें पंचबली भोग की विधि


श्राद्ध वाले दिन पितरों के लिए जो भोजन बनाया जाता है, उसे पांच केले के पत्तों पर निकाला जाता है. या फिर एक केले के पत्ते पर पांच जगह भी भोजन रखा जा सकता है. इसके लिए हर जीव के लिए अलग-अलग मंत्र बोलते हुए अक्षत छोड़े जाते हैं. पंचबली भोग गाय, कुत्ता, कौआ, देव और चीटी को समर्पित होता है. माना जाता है श्राद्ध  दोपहर में कराना उत्तम रहता है. 


यूं दें पंचबली भोग


गो बलि - पंचबली भोग में पहला भोग गाय के लिए निकाला जाता है इसे गौ बली के नाम से जाना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचबली में हर जीव के लिए अलग मंत्र बोला जाता है. गौ बलि निकालते वक्त इस मंत्र को बोलते हुए अक्षत छोड़ें.


मंत्र - ॐ सौरभेयः सर्वहिताः, पवित्राः पुण्यराशयः।।प्रतिगृह्णन्तु में ग्रासं, गावस्त्रैलोक्यमातरः॥ इदं गोभ्यः इदं न मम्।।


कुक्कुर बलि - ज्योतिष शास्त्र में कुक्कर बलि कुत्ते को कहा जाता है. पंचबली में दूसरा भोग कुत्ते को खिलाते हैं. शास्त्रों में कुत्ते को यमराज का प्रतीक माना जाता है. 


मंत्र - ॐ द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ, वैवस्वतकुलोद्भवौ ।। ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि, स्यातामेतावहिंसकौ ॥इदं श्वभ्यां इदं न मम ॥


काक बलि - काक यानि कौआ. ऐसा माना जाता है कि कौए के अन्न ग्रहण करने से पितरों के प्रसन्न होने का प्रतीक होता है.


मंत्र - ॐ ऐन्द्रवारुणवायव्या, याम्या वै नैऋर्तास्तथा ।। वायसाः प्रतिगृह्णन्तु, भुमौ पिण्डं मयोज्झतम् ।। इदं वायसेभ्यः इदं न मम ॥


देव बलि - चौथा भोग देवताओं लगाया जाता है. देवता के लिए निकाले भोजन को किसी कन्या या गाय को खिलाया जाता है. 


मंत्र - ॐ देवाः मनुष्याः पशवो वयांसि, सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसंघाः।।प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता, ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्॥ इदं अन्नं देवादिभ्यः इदं न मम्।।


पिपीलिकादि बलि- श्राद्ध के दौरान पांचवा भोग चीटियों को लगाया जाता है. इन्हें भोग लगाते समय इस मंत्र का जाप करें. 


मंत्र - ॐ पिपीलिकाः कीटपतंगकाद्याः, बुभुक्षिताः कमर्निबन्धबद्धाः।। तेषां हि तृप्त्यथर्मिदं मयान्नं, तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु॥ इदं अन्नं पिपीलिकादिभ्यः इदं न मम।।



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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)