Car Resale Value: जब भी हम कोई नई कार खरीदने जाते हैं तो हमारे दिमाग में सबसे पहले तीन सवाले आते हैं. माइलेज क्या है? ईएमआई कितनी जाएगी और डिस्काउंट मिलेगा या नहीं? हम कार के तेल खर्च का हिसाब तो जोड़ लेते हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि हर साल इसकी कितनी कीमत कम हो रही है. इसे डेप्रिसिएशन (Depreciation) कहा जाता है. इसका सीधा असर कार की रिसेल वैल्यू पर पड़ता है. इसका मतलब है कि जब आप अपनी पुरानी कार बेचेंगे तो इसके कितने दाम मिलेंगे. यहां हम आपको वो 4 बातें बता रहे हैं, जिनकी वजह से कार की रिसेल वैल्यू कम हो जाती है और आपकी लाखों की कार बेहद कम दाम में चली जाती है. 


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कौन-सी कंपनी: आपकी कार किस कंपनी की है, यह उसकी रीसेल वैल्यू तय करती है. लोग पॉपुलर ब्रैंड की कार ज्यादा खरीदना पसंद करते हैं. भले ही आपकी कार कितनी भी फीचर लोडेड हो, अगर कंपनी पॉपुलर नहीं होगी, तो कार की कीमत कम मिलेगी. इसके अलावा, अगर कार के पार्ट्स की उपलब्धता कम है, तब भी आपको पुरानी कार बेचने में परेशानी आ सकती है. 


नए वेरिएंट्स: कई बार कंपनियां ग्राहकों को लुभाने के लिए किसी कार का नया वेरिएंट सस्ते दाम पर ले आती है. ऐसे में आपने जो मॉडल खरीदा है उसके मुह मांगे दाम नहीं मिल पाते. इसके अलावा, ज्यादा फीचर्स वाला फेसलिफ्ट मॉडल आने से भी पुराने मॉडल की रीसेल वैल्यू कम हो जाती है. 


मेंटेनेंस कॉस्ट: कार की मेंटेनेंस कॉस्ट भी इसकी रीसेल वैल्यू तय करती है. अगर इसकी सर्विस और पार्ट्स में ज्यादा खर्च आता है, तो कीमत घट जाती है. 


निचला वेरिएंट: यूज्ड कार मार्केट में कार के बेस मॉडल को बहुत ज्यादा पसंद नहीं किया जाता. इसलिए इसकी कम कीमत मिलती है. पुरानी कार लेते हुए भी लोग फीचर्स का खास ख्याल रखते हैं. 


इंजन ऑप्शन: बहुत सी कारें पेट्रोल और डीजल दोनों इंजन ऑप्शन के साथ आती हैं. कई मामलों में देखा कि पेट्रोल लइंजन की डिमांड डीजल मॉडल से कहीं ज्यादा होती है. जबकि कीमत में काफी बड़ा अंतर रहता है. ऐसे में अगर आप डीजल वेरिएंट रखे हुए हैं, तो आपको ज्यादा कीमत शायद न मिल पाए. 


कलर: लेटेस्ट कारें बहुत सारे कलर ऑप्शन में आती हैं. लेकिन अभी भी सबसे ज्यादा व्हाइट, ब्लैक और सिलवर कलर को पसंद किया जाता है. वहीं येलो, ग्रीन जैसे कलर्स शुरुआत में अच्छे लगते हैं, लेकिन सेकेंड हैंड मार्केट में बहुत कम डिमांड रहती है.