Electric Vehicles Pollution: दुनिया को प्रदूषण से बचाने और पर्यावरण की रक्षा करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का कॉन्सेप्ट लाया गया. तमाम कंपनियां भी ईवी की तरफ तेजी से बढ़ रही है. हाल में हुए भारत ग्लोबल ऑटो एक्सपो 2025 में भी लगभग सभी कंपनियों ने अपनी ईवी वाहनों को शोकेस किया. भारत सरकार भी EV को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह की योजनाओं को लेकर आ रही हैं. हाल ही में भारत सरकार ने 10,900 करोड़ की PM E Drive योजना को मंजूरी दी, ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहनों को खरीदने में अपनी रुचि दिखाए, लेकिन जिस मकसद से इलेक्ट्रिक वाहनों को बनाया गया था कि पर्यावरण की रक्षा होगी ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. 


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एक ईवी बनाने में कितना CO2 निकलता है? 
एक रिपोर्ट के मुताबिक EV और नॉर्मल इंजन के एमिशन की तुलना करने पर पाया गया कि EV के टोटल कार्बन एमिशन का 46 फीसद हिस्सा सिर्फ प्रोडक्शन प्रोसेस से निकलता है. जबकि पेट्रोल-डीजल वाली गाड़ियों में ये 26 फीसद है. हैरान करने वाली बात ये है कि एक इलेक्ट्रिक वाहन बनने की प्रक्रिया के दौरान करीब 5-10 टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) निकलता है.


सिर्फ ईंधन का अंतर
ये हम सभी जानते हैं कि ईवी और नॉर्मल गाड़ी की बॉडी, चेसिस और दूसरे कंपोनेंट लगभग एक सामान ही होते हैं. इन्हें बनाने में एलुमिनियम और स्टील जैसे मेटल्स का इस्तेमाल किया जाता है. इन गाड़ियों में सिर्फ ईंधन का अंतर होता है, नार्मल गाड़ियों में पेट्रोल-डीजल का इस्तेमाल होता है, वहीं ईवी बैटरी से चलती है. इन गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाला बैटरी लीथियम आयन होता है. जो एक रेयर अर्थ मेटल्स से बना होता है. 


एक बैटरी बनाने में कितना लीथियम
IMF की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कार के लिए एक बैटरी बनाने में 8 किलो लीथियम, 6 से 12 किलो कोबाल्ट और 35 किलो मैगनीज का इस्तेमाल किया जाता है.  इनमें से कोबाल्ट एक रेयर अर्थ मेटल है, जो आसानी से नहीं मिलता है. इसलिए कंपनी कोबाल्ट की जगह निकल का इस्तेमाल करते हैं, जो कोबाल्ट के तुलना में काफी सस्ता होता है. निकल की माइनिंग पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा है. लीथियम और कोबाल्ट जैसे मेटल की माइनिंग की वजह से इलेक्ट्रिक वाहन का कार्बन फुटप्रिंट नार्मल गाड़ियों से बहुत अधिक होता है. 


ईवी बनी पर्यावरण की दुश्मन 
हाल ही में कुछ अध्ययनों में यह दावा किया गया है कि इलेक्ट्रिक वाहन (EV) पारंपरिक पेट्रोल और डीजल वाहनों की तुलना में अधिक प्रदूषण फैला सकते हैं. Emission Analytics की एक रिपोर्ट के अनुसार, EV के ब्रेक और टायर से होने वाला पार्टिकुलेट मैटर आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों की तुलना में 1,850 गुना अधिक हो सकता है. इसका मुख्य कारण EV का भारी वजन है, जो उनकी बैटरी की वजह से होता है. अधिक वेट होने के कारण टायर और ब्रेक पर ज्यादा दबाव पड़ता है, जिससे उनका घिसाव बढ़ता है और अधिक कण उत्सर्जन होता है. इसके अलावा EV की बैटरी के उत्पादन की प्रक्रियाओं में भी पर्यावरणीय चिंताएं शामिल हैं. 


EVs से कोई प्रत्यक्ष निकास उत्सर्जन नहीं होता
हालांकि, यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि EVs से कोई प्रत्यक्ष निकास उत्सर्जन नहीं होता है, जो शहरी क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में सुधार में सहायक हो सकता है. EVs के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए, बैटरी उत्पादन में सुधार, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, और टायर व ब्रेक डिज़ाइन में नवीकरण जैसे उपाय जरूरी हैं. इस प्रकार, EVs के पर्यावरणीय लाभ और हानियों का संतुलित करना आवश्यक है, ताकि उनकी वास्तविक प्रभावशीलता को समझा जा सके और आवश्यक सुधार किए जा सकें.