Manikarnika Ghat Ki Bhasma Holi: पूरे देशभर में होली और होरियारों की हुड़दंग और जोश त्योहार शुरु होने से पहले ही दिखने लगाता है. जहां बनारस में श्री कृष्ण के भक्त फूलों, गुलाल-रंगों और लट्ठमार होली खेलते हैं तो वहीं बाबा की नगरी काशी में जलती हुई चिताओं की राख से होली खेलने की अनोखी परंपरा है. माना जाता है कि भगवान शिव खुद अपने भक्तों को भस्म होली खेलने की अनुमति देते हैं. काशी के मर्णिकर्णिका घाट में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन भस्म या मसान होली की हुड़दंग देखने को मिलती है जिसमें भगवान शिव के भक्त जोरों-शोरों से हिस्सा लेते हैं. 


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क्या है चिताभस्म होली


फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष को पंचमी तिथि को पूरे देश में होली की धू्म देखने को मिलेगी. लेकिन बाबा के शहर की अनोखी भस्म होली रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाशमशान मर्णिकर्णिका घाट पर इस होली को खेलने को लोग इकट्ठआ होंगे. बता दें कि सुबह से ही मर्णिकर्णिका घाट पर भक्त एकत्र होने लगते हैं. यहां शिव भक्त अड़भंगी अंदाज से फागुवा गीत गाते हुए संदेश देते हैं कि काशी में जन्म और मृत्यु दोनों ही उत्सव है. यहां लोग चिताओं की भस्म से होली खेलते हैं और फिर जब मध्याह्न में बाबा के स्नान का वक्त होता है तो इस वक्त यहां भक्तों का उत्साह अपने चरम पर होता है. मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि बाबा विश्वनाथ दोपहर के समय मणिकर्णिका घाट पर स्नान के लिए आते हैं. 


क्यों मनाई जाती है भस्म होली 


हिंदू वेदों और शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार बताया गया है कि होली के इस उत्सव में बाबा विश्वनाथ देवी देवता, यक्ष, गन्धर्व सभी शामिल होते हैं. और उनके प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य, अदृश्य, शक्तियां जिनकों बाबा खुद इंसानों के बीच जाने से रोककर रखते हैं. लेकिन अपने दयालु स्वभाव की वजह से वो अपने इन सभी प्रियगणों के बीच होली खेलने के लिए घाट पर आते हैं. शिवशंभू अपने गणों के साथ चिता की राख से होली खेलने मसान आते हैं. इसी दिन से होली की शुरुआत मानी जाती है.


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)