क्यों करें पाकिस्तान पर भरोसा
भारत और पाकिस्तान के बीच प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकरों (एनएसए) की बातचीत से पहले पाक ने जिस तरह पैंतरेबाजी और चालबाजी की है, उससे इस वार्ता पर खतरे के बादल मंडराते नजर आने लगे हैं। यह कोई पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने कोई `नापाक` चाल चली हो। इतिहास इस बात का साक्षी है कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान कभी भी भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंधों को लेकर गंभीर हुआ ही नहीं है। जब-जब भारत की तरफ से दोस्ती की पहल की गई, पाकिस्तान ने केवल पीठ में छुरा भोंकने का ही काम किया है।
बिमल कुमार
भारत और पाकिस्तान के बीच प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकरों (एनएसए) की बातचीत से पहले पाक ने जिस तरह पैंतरेबाजी और चालबाजी की है, उससे इस वार्ता पर खतरे के बादल मंडराते नजर आने लगे हैं। यह कोई पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने कोई 'नापाक' चाल चली हो। इतिहास इस बात का साक्षी है कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान कभी भी भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंधों को लेकर गंभीर हुआ ही नहीं है। जब-जब भारत की तरफ से दोस्ती की पहल की गई, पाकिस्तान ने केवल पीठ में छुरा भोंकने का ही काम किया है।
पाकिस्तान के लिए भारत के साथ बातचीत हमेशा से एक बहाना रहा है। इस आड़ में पाकिस्तान की मंशा हमेशा से भारत के साथ लंबित मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की रही है। दोनों देशों के बीच किसी भी स्तर वार्ता की जब कोई पहल की जाती है तो पाकिस्तान किसी न किसी बहाने अपने कदम इससे पीछे खींचने लगता है। हो सकता है कि पाकिस्तान इससे दुनिया के सामने यह जाहिर करना चाहता हो कि भारत का रवैया सकारात्मक नहीं रहता है। जबकि पाकिस्तान हमेशा यह चाहता है कि भारत किसी तरह बातचीत तोड़ दे और उसकी बदनामी हो। उसे इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय जगत के सामने ले जाने का मौका मिल सके। अब एक बार फिर पाकिस्तान अब मोदी सरकार की आड़ में भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब करने की कोशिश करने में जुटा है।
वाजपेयी सरकार के समय आगरा में पाकिस्तान के साथ वार्ता के बाद भारत को क्या नतीजे भुगतने पड़े, यह किसी से छिपा नहीं है। कारगिल युद्ध का देशवासियों को सामना करना पड़ा। इसके बाद कुछ मौकों पर यूपीए सरकार के समय भी दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने के लिए पहल की गई लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी इसके प्रति गंभीरता नहीं दिखाई। बीते साल केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए कई कूटनीतिक पहल की, लेकिन उसका नतीजा सिफर ही रहा। पाकिस्तान हमेशा से अपने तय एजेंडे पर चलता रहा और भारत के पहल को कभी तवज्जो ही नहीं दी।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से अपनी 'नजदीकियों' को बढ़ाते हुए नरेंद्र मोदी ने रिश्ते पटरी पर लाने की गंभीर कोशिश की। अगस्त, 2014 में भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों के बीच वार्ता की पटकथा काफी कोशिशों के बाद तय की गई। लेकिन इस वार्ता से ठीक पहले पाकिस्तान ने भारत की अनदेखी की और कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को मुलाकात के लिए आमंत्रित किया। भारत के मना करने के बावजूद नई दिल्ली स्थित पाक उच्चायोग में सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक जैसे अलगाववादी नेताओं को आमंत्रित किया गया और उनसे पाकिस्तान के हाई कमिश्नर ने बातचीत की। यह पूरा वाकया भारत को नागवार गुजरा, जिसके बाद विदेश सचिव स्तर की वार्ता खटाई में पड़ गई।
इस वाकये के तकरीबन एक साल के बाद फिर भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता की पटकथा तैयार की गई, लेकिन पाकिस्तान ने इस बार भी अपनी कुटिल मंशा जता दी और वार्ता पर पानी फेरने को आमदा हो गया। रूस के ऊफा रूस में जुलाई महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच वार्ता हुई थी। दोनों मुल्कों ने संयुक्त बयान जारी कर आतंकवाद संबंधी मुद्दों को लेकर नई दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता रखने की बात कही थी। जिसके बाद इन दोनों देशों के बीच एनएसए स्तर की वार्ता तय की गई। पहली बार आतंकवाद से जुड़े मुद्दे पर दोनों देशों के फैसले के अनुसार भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का नई दिल्ली में अपने पाकिस्तानी समकक्ष सरताज अजीज के साथ बैठक करने का कार्यक्रम तय हुआ।
एनएसए वार्ता से ठीक पहले पाक ने एक बार फिर कश्मीर का मुददा उठाया। जबकि यह प्रस्तावित वार्ता केवल आतंकवाद पर ही केंद्रित था। कश्मीर मसले को लेकर पाकिस्तान ने फिर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) से मध्यस्थता की मांग कर डाली। यूएन महासचिव बान की मून के नियंत्रण रेखा पर हाल में हिंसा तेज होने पर गंभीर चिंता जताए जाने और भारत-पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच वार्ता के सकारात्मक नतीजे निकलने की उम्मीद जताने के कुछ घंटों बाद ही पाकिस्तान की ओर से यह मांग की गई। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थाई प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने 15 सदस्यीय परिषद से कहा कि सामूहिक रूप से और संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग करते हुए ओआईसी के पास फिलिस्तीन और मध्य-पूर्व के अन्य संघर्षों के साथ ही कश्मीर विवाद को सुलझाने की क्षमता है। पाकिस्तान की इस हरकत से बखूबी समझा जा सकता है कि उसकी कथनी और करनी में कितना अंतर है।
अब पाकिस्तान ने हमेशा की तरह हुर्रियत नेताओं से बातचीत करने की चाल फिर चली तो उनका चेहरा बेनकाब हो गया। नई दिल्ली में पाक उच्चायोग ने फिर कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को पाक एनएसए के साथ बातचीत के लिए आमंत्रित कर डाला, जिस पर भारत ने अपनी ओर से आपत्ति जताई। बता दें कि भारत कई मंचों पर कह चुका है कि कश्मीर मसले के समाधान के लिए किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता उसे स्वीकार नहीं है। इस वार्ता से भी अब कोई नतीजा निकलने की उम्मीद लगातार कम होती जा रही है। पाकिस्तान के इस नए पैंतरेबाजी के बाद केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाया और दो टूक संदेश दिया कि वार्ता जारी रखनी है तो किसी अन्य से मुलाकात नहीं।
पाकिस्तान जहां इस वार्ता से पहले अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज की नई दिल्ली में कश्मीरी अलगाववादी नेताओं से मुकलात पर अड़ा है, वहीं भारत ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि यह उचित नहीं होगा। सरताज अजीज की अलगाववादी नेताओं के साथ होने वाली इस मुलाकात को लेकर भारत की ओर से पाकिस्तान को पहले ही चेताया जा चुका है। जाहिर है इस तरह की मुलाकात आतंकवाद का मिलकर सामने करने के ऊफा समझौते की भावना और निष्ठा के अनुरुप नहीं होगी। भारत ने पाकिस्तान से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता के लिए अपने प्रस्तावित एजेंडे की पुष्टि की भी मांग की। इस एजेंडे से पाकिस्तानी पक्ष को अवगत करा दिया गया था।
पाक कहना है कि इस मुलाकात के कार्यक्रम में कोई तब्दीली नहीं होगी। बता दें कि भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने वार्ता से पहले कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को मुलाकात के लिए बुलाया है। इनमें सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक की अगुवाई वाले हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धड़ों के नेता और यासीन मलिक एवं नईम खान जैसे अन्य अलगाववादी नेता भी शामिल हैं। इस मसले पर भारत की आपत्ति के बावजूद पाकिस्तान अब नई तर्कें गढ़ रहा है, जिसका कोई सिर पैर नहीं है। पाक का मानना है कि भारत के साथ उच्च स्तरीय बैठकों से पहले हुर्रियत नेताओं के साथ मंत्रणा एक आम बात है। एक बात तो स्पष्ट है कि सरताज अजीज और पाकिस्तान जैसा बर्ताव कर रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान की बातचीत में दिलचस्पी नहीं है।
हाल के दिनों में एलओसी और अंतराष्ट्रीय सीमा पर पाक सैनिकों की ओर से लगातार बिना उकसावे के संघर्ष विराम उल्लंघन की अनगिनत घटनाएं हो चुकी हैं। भारत ने एलओसी पर पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन की हालिया घटनाओं पर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। भारत ने बीते दिनों नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित को तलब किया था और उकसावे की इस कार्रवाई और गोलीबारी पर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। सीमा पर इस तरह की घटना के बावजूद भारत ने धैर्य का परिचय देते हुए इस वार्ता का स्वागत किया, लेकिन पाकिस्तान के मन में तो कुछ और है। उसकी मंशा तो किसी से छिपी नहीं है। सीमा पार आतंकवाद, आतंकी प्रशिक्षण, आतंकी ट्रेनिंग कैंप, आतंकी हमले, आतंकियों को पनाह आदि तमाम ऐसे गंभीर मसले हैं, जिस पर पाकिस्तान कई बार बेनकाब हो चुका है। फिर भी भारत ने दोनों देशों के बीच रिश्ते को एक नया आयाम देने के लिए नई पहल की, लेकिन पाकिस्तान ने फिर पैंतरेबाजी कर दी। इस तरह से रिश्तों को नया आयाम मिलना असंभव प्रतीत होता है।
अब यदि वार्ता एक बार फिर स्थगित होती है तो इसमें सारा दोष पाकिस्तान का ही होगा। ऐसे में सरकार के स्तर पर होना यह चाहिए कि पाकिस्तान को कड़ा संदेश जाए। आखिर जिसकी नीयत में ही खोट हो, उस पर भरोसा कैसे किया जा सकता है।