America-China Trade War: चीन की दोतरफा नीति उसे व्यापार के क्षेत्र में पीछे धकेल रही है. अमेरिका ने चीन से मुंह मोड़कर भारत का रुख किया है. कई अमेरिकी कंपनियां चीन में अपना प्रोडक्शन बंद कर भारत और अन्य देशों में इसे स्थापित करने की कोशिश में लगी हैं. चीन से अमेरिका की बेरुखी दिसंबर 2023 से ही देखने को मिल रही है. 2023 में चीनी सरकार ने अपने कर्मचारियों और फर्म को आईफोन इस्तेमाल करने से मना कर दिया था. जिसके बाद से चीन में अमेरिकी कंपनियों की असहजता में इजाफा देखा गया.


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एप्पल का भारत में प्रोडक्शन


आईफोन बनाने वाली कंपनी एप्पल इससे कुछ दिन पहले ही चीन में अपने फोन का व्यापक उत्पादन कम करके भारत सहित कई देशों में जगह तलाश रही थी. इसके बाद एप्पल ने भारत में अपने आईफोन उत्पादन का कारखाना लगाया. यह सब यूं ही नहीं हुआ. दरअसल, यह अमेरिका और चीन के बीच पिछले कई सालों के चल रहे 'ट्रेड वार' का परिणाम है.


ट्रेड वार की शुरुआत


2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के साथ अमेरिका और चीन के बीच 'ट्रेड वार' की शुरुआत हुई. ट्रंप का मानना था कि चीन अमेरिका से तकनीक और पैसे लेकर अमेरिका को ही सामान बेचता है, जिससे वह अमेरिका की ग्लोबल बॉस की छवि को चुनौती देता है. ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के कुछ दिनों बाद ही चीन के 6000 से अधिक उत्पादों पर, जिनकी आयात कीमत करीब 200 अरब डॉलर से ज्यादा थी, अतिरिक्त 10 फीसदी शुल्क लगा दिया. इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर इतना ही शुल्क लगा दिया.


अमेरिकी कंपनियों की परेशानी


इस 'ट्रेड वार' के चलते चीन में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों को व्यापक स्तर पर परेशानी होने लगी. इसके बाद, कई कंपनियों ने सस्ते श्रम और उत्पादन के लिए चीन का विकल्प खोजने की कोशिश की. एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन में बनी ईवी गाड़ियों पर 100 फीसदी, सेमीकंडक्टर्स और सोलर सेल्स पर 50 फीसदी, और लिथियम-आयन बैटरीज पर 25 फीसदी शुल्क लगाने के प्रस्ताव को अमेरिका में इस साल दो बार टाला जा चुका है.


भारत में निवेश के अवसर


अमेरिकी कंपनियों की इस आपाधापी के बीच भारत सरकार ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए 2020 में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत, सरकार भारत में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहती है और उन कंपनियों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है जो देश में निवेश करने के लिए सहमत होती हैं.


सैमसंग और एप्पल का उदाहरण


भारत सरकार के इस कदम के बाद, अमेरिका सहित दुनिया की कई कंपनियों ने भारत में निवेश करने की शुरुआत की. इसका सबसे बड़ा उदाहरण दक्षिण कोरिया की मोबाइल मैन्युफैक्चरर कंपनी सैमसंग और अमेरिकी मोबाइल मैन्युफैक्चरर एप्पल है. यह दोनों कंपनियां भारत में अपने सबसे बड़े प्रोडक्शन यूनिट लेकर आई हैं. नवंबर 2023 तक भारत में 1.03 ट्रिलियन रुपये का निवेश हुआ है, जबकि योजना के कार्यान्वयन के बाद से अब तक निर्यात 3.20 ट्रिलियन रुपये को पार कर गया है.


कंपनियों का भारत में रुझान


यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में महंगे होते श्रम, बूढ़ी होती जनसंख्या और बढ़ती बेरोजगारी के कारण चीन में उत्पादन और सेवाएं दे रही करीब 50 कंपनियां देश छोड़ने की योजना बना रही हैं. इनमें से लगभग 40 फीसदी कंपनियों को भारत में निवेश करने की सबसे पसंदीदा जगह माना गया है.


चीन में अमेरिकी निवेश में गिरावट


शंघाई के अमचैम के अनुसार, अमेरिकी कंपनियों के अन्य देशों में जाने के ट्रेंड की वजह से चीन में अमेरिकी विदेशी निवेश 2023 में 14 फीसदी गिरकर 163 अरब डॉलर रह गया है. चीन छोड़ने की चाह रखने वाली कंपनियों ने चीन में करीब 12 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है.


भारत की बढ़ती निवेश क्षमता


यूएस चेंबर ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बढ़ते ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के चलते निवेशकों को मेक्सिको, अमेरिका और यूरोप की तुलना में भारत में निवेश करना ज्यादा पसंद आ रहा है. इस रिपोर्ट में भारत पिछले साल 5वें नंबर पर था, जबकि इस साल के आते-आते भारत दूसरे नंबर पर आ गया है.


भविष्य की संभावनाएं


हालांकि, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मैनेजमेंट कंसल्टिंग कंपनियों को भारत की निवेश परिस्थितियां बहुत पसंद आ रही हैं. 2023 में करीब 40 फीसदी अमेरिकी कंपनियां चीन में अपने भारी-भरकम निवेश की योजना पर आगे बढ़ रही थीं, लेकिन अब यह कंपनियां भारत में निवेश करना चाहती हैं. मैनेजमेंट कंसल्टिंग क्षेत्र की 54 फीसदी कंपनियों ने भारत में निवेश की इच्छा जताई है. इसके अलावा, गारमेंट और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कई कंपनियों ने भी भारत में निवेश को लेकर अपनी रुचि दिखाई है.