Public Sector Bank Privatisation: बैंकों के निजीकरण को लेकर सरकार के अभियान को झटका लग सकता है. सरकार की तरफ से मौजूदा वित्त वर्ष 2022-23 में दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण पर तेजी से काम हो रहा है. सरकार आगे चल कर बाकि बैंकों को भी प्राइवेट करने पर विचार कर रही है. लेकिन सरकार के निजीकरण अभियान पर अब आरबीआई ने बड़ी बात कही है. आरबीआई ने अपने एक लेख में ही सवाल खड़ा कर दिया गया है. आरबीआई ने अपने लेख में लिखा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े पैमाने पर निजीकरण से फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है. आइये जानते हैं विस्तार से.


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आरबीआई ने कही बड़ी बात 


भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपने इस लेख सरकार को में अलर्ट करते हुए कहा है कि सरकार को इस मामले में ध्यान से आगे बढ़ना चाहिए. दरअसल, आरबीआई के बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में बताया गया है कि निजी क्षेत्र के बैंक ज्यादा लाभ बनाने में सफल रहे हैं वे इसमें एक्सपर्ट भी हैं लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्तीय समावेशन को जबरदस्त बढ़ावा दिया है. लेख में कहा गया, ‘निजीकरण कोई नई अवधारणा नहीं है और इसके फायदे और नुकसान सबको पता है. पारंपरिक दृष्टि से सभी दिक्कतों के लिए निजीकरण प्रमुख समाधान है जबकि आर्थिक सोच ने पाया है कि इसे आगे बढ़ाने के लिए सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता है.’


सभी बैंक हों प्राइवेट


गौरतलब है कि अभी हाल ही में केंद्र सरकार को अर्थशास्त्रियों की तरफ से यह सुझाव दिया गया था कि भारतीय स्टेट बैंक को छोड़कर सभी सरकारी बैंकों का निजीकरण कर देना चाहिए. नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया और एसीएईआर (NCAER) की पूनम गुप्ता ने सरकार को यह सलाह दिया है और इसके लिए एक रिपोर्ट तैयार की है. इस `रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी बैंकों की बाजार में हिस्सेदारी बढ़ी है और वे सरकारी बैंकों के मुकाबले बेहतर विकल्प के तौर पर उभरे हैं.' ऐसे में सरकार को इस पर विचार करना चाहिए.


रिपोर्ट के कहा गया, 'बीते एक दशक में एसबीआई को छोड़कर दूसरे सभी सरकारी बैंक ने हर पैमाने पर निजी बैंकों से बहुत पीछे रहे हैं. सरकारी बैंकों का ऑपरेशन कॉस्ट बढ़ा है तो उनके द्वारा दिया लोन डूबता रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक इन सरकारी बैंकों ने निजी बैंकों के मुकाबले एसेट और इक्विटी पर कम रिटर्न अर्जित किया है. सरकारी बैंक डिपॉजिट्स और लोन एडवांस करने के मामले में निजी बैंक से काफी पीछे हैं.' 


हलाकि दूसरी तरफ निजीकरण को लेकर लगातार आम लोगों और कर्मचारियों की तरफ से विरोध होता आ रहा है.