Electoral Bond Explainer: मान लो कंपनी को एक करोड़ मुनाफा हुआ और पूरा पैसा चंदे में दे दिया, ऐसा होता है क्या?
Electoral Bond Rules: याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील प्रशांत भूषण, कपिल सिब्बल, शादान फरासत और निजाम पाशा ने दलीलें पेश कीं. उन्होंने अपनी दलील में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये 99% से ज्यादा चंदा सत्तारूढ़ पार्टियों को मिला है.
Electoral Bond Explainer: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड पेश किया. इलेक्टोरल बॉन्ड एक ऐसी योजना है जो किसी भी शख्स और कंपनी को गुमनाम तरीके से राजनीतिक दलों को चंदा देने की छूट देती है. इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से कहा है 30 सितंबर तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये राजनीति दलों को मिले चंदे का ब्योरा अदालत में पेश करें. इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा सरकार की तरफ से 'देश में पॉलिटिकल फंडिंग के सिस्टम को साफ करने' के लिए हुई थी.
इलेक्टोरल बॉन्ड कोई भारतीय नागरिक या कंपनी एसबीआई (SBI) की ब्रांच से खरीद सकता है. बॉन्ड जारी होने की तारीख से 15 दिन के लिए वैध होता है. इसे एसबीआई की ब्रांच के जरिये कैश भी किया जा सकता है. याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील प्रशांत भूषण, कपिल सिब्बल, शादान फरासत और निजाम पाशा ने दलीलें पेश कीं. उन्होंने अपनी दलील में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये 99% से ज्यादा चंदा सत्तारूढ़ पार्टियों को मिला है. अपने एक सवाल में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या 1% मुनाफा कमा कर रही कंपनी भी एक करोड़ का चंदा दे सकती है? आइए जानते हैं क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड और इसके मायने-
इलेक्टोरल बॉन्ड कौन खरीद सकता है?
इलेक्टोरल बॉन्ड कोई भी भारतीय नागरिक या देश में इनकार्पोरेट बॉडी खरीद सकती है. इसमें कोई शख्स, कंपनी फर्म, सोसायटी या ट्रस्ट शामिल हैं. विदेशी कंपनियों और विदेशी नागरिकों को चुनावी बॉन्ड खरीदने की अनुमति नहीं है.
क्या कंपनी पूरा प्रॉफिट की पॉलिटिकल फंडिंग कर सकती है?
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू होने से पहले कंपनियों के लिए एक लिमिट तय थी कि वे पॉलिटिकल पार्टी के लिए कितना फंड दे सकती हैं? इस नियम के अनुसार कंपनियां तीन साल के एवरेज नेट प्रॉफिट का 7.5% तक ही फंड चंदे के रूप में दे सकती थीं. लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम, 2018 ने इस लिमिट को खत्म कर दिया. अब इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के माध्यम से कंपनियां पॉलिटिकल पार्टीज को मन चवाजा फंड दे सकती हैं. 2018 से पहले इस तरह के पॉलिटिकल पार्टी को दिये गए चंदे को बोर्ड रिल्यूशन की तरफ से अधिकृत किया जाना. साथ ही कंपनी के प्रॉफिट और लॉस के बारे में जानकारी देना जरूरी थी. लेकिन अब यह नियम नहीं है.
इलेक्टोरल बॉन्ड का यूज पॉलिटिकल पार्टी को पैसा देने के लिए कैसे होता?
जब कोई कंपनी इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद लेती है तो तो वह इसे रिप्रिजेंटशन ऑफ द पीपुल एक्ट, 1951 के तहत किसी भी रजिस्टर्ड पॉलिटिकल पार्टी को दे सकती है. राजनीतिक दल संबंधित एसबीआई ब्रांच में बॉन्ड जमा कर पार्टी एक्टिविटि के लिए पैसा प्राप्त कर सकता है.
इलेक्टोरल बॉन्ड की आलोचना क्यों?
इस मामले में आलोचकों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के जरिये चुनावी फंडिंग को पारदर्शी बनाया जाना था. लेकिन इसने ठीक इसके उल्ट काम किया है. आलोचकों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड सरकार के लिए अपने विरोधियों की जासूसी करने का हथियार बन गया है.
इन बॉन्ड को एसबीआई की तरफ से बेचा जाता है. जिसका सीधा मतलब हुआ कि सरकार यह पता लगा सकती है कि उसकी विरोधी पार्टी को फंडिंग कौन कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट में विरोधियों ने तर्क दिया कि इससे सरकार को बड़े कारोबारियों को ब्लैकमेल करने या रूलिंग पार्टी की सपोर्ट करने के लिए दवाब बनाने का तरीका मिल जाता है.