मुंबई: यस बैंक (Yes Bank) को नए अवतार में आए हुए करीब डेढ़ साल हो चुका है. बैंक के पुराने बोर्ड को हटाया गया और नया बोर्ड लाया गया. लेकिन बैंक को असल में चलाने वाले जो बोर्ड के नीचे के कर्ताधर्ता लोग हैं, कोर टीम के लोग हैं, उनका क्या हुआ? कंप्लायंस, लीगल और रिस्क मैनेजमेंट के जो जिम्मेदार लोग थे उनका क्या हुआ? जिनकी वजह से बैंक इस हालत में पहुंचा, जिनके रहते कंप्लायंस फेल्योर हुए, बैंक को मोटी रकम देकर सेटलमेंट करना पड़ा सेबी के साथ, उनका क्या हुआ? जिन पर आरोप थे कि उन्होंने भोले भाले निवेशकों को AT1 बॉन्ड्स की मिस सेलिंग की उनका क्या हुआ? यस बैंक के पूर्व डायरेक्टर और ICAI के पूर्व प्रेसिडेंट उत्तम प्रकाश अग्रवाल ने भी कॉरपोरेट गवर्नेंस को लेकर कई सवाल उठाए थे. क्या उनका हल निकला? इन सभी मामलों पर उत्तम प्रकाश अग्रवाल से खास बातचीत की हमारी सहयोगी साइट ज़ी बिजनेस के असिस्टेंट एडिटर ब्रजेश कुमार ने.


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सवाल-1: उत्तम प्रकाश जी, आपने बोर्ड में रहते हुए बहुत सारे मुद्दे उठाए थे, कॉरपोरेट गवर्नेंस का फेल्योर को लेकर. क्या लग रहा है, अब सारी चीजों को ठीक से डील कर लिया गया है?


जवाब: बतौर इंडिपेंडेंट डायरेक्टर जो भी मेरी जवाबदारी थी और जो भी कॉरपोरेट गवर्नेंस इश्यू थे, वो मैंने उठाए थे. बैंक को ड्राइव करने का जिम्मा मैनेजमेंट का था, न कि केवल डायरेक्टर्स का. सारे बड़े फैसले चेयरमैन और एमडी लेते थे. सारी जानकारी जो बोर्ड को जाती थी वो मैनेजमेंट टीम तैयार करती थी. मैंने जो सारे मुद्दे उठाए थे वो पब्लिक डोमेन में उठाए थे. RBI गवर्नर, सेबी चेयरमैन, मंत्रालय सहित सभी जगह लिखे थे. उसमें क्या डेवलपमेंट है इसकी मुझे जानकारी नहीं है. हालांकि जब से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रशांत कुमार (बतौर MD&CEO) आए हैं, बैंक स्थिर है. लोगों का बैंक को लेकर भरोसा लौटा है. बैंक अच्छे-अच्छे प्रोडक्ट ला रहा है. ग्राहकों के लिए सेवाएं और भरोसा दोनों बढ़ा है.



सवाल-2: बात सही है आपकी कि बैंक स्थिर हुआ है. लेकिन बाकी की जो नीचे की कोर टीम है, जो बैंक को इस हालात में पहुंचाने के लिए जिम्मेदार मानी गई, वो तो वहीं की वहीं है. तो क्या कोर टीम नहीं बदलनी चाहिए अब? 


जवाब: सीनियर मैनेजमेंट के लोग जो थे जिसमें कंपनी सेक्रेटरी, रिस्क मैनेजमेंट और लीगल टीम के लोग हैं जिन पर सेबी का ऑर्डर है. वो पुराने मैनेजमेंट के साथ भी थे और नए मैनेजमेंट के साथ भी हैं. उनके कामों में काफी कमियां निकाली थीं मैंने. खासकर लीगल टीम के (संजय) नांबियर के काम में मैंने खासकर काफी गलतियां निकाली थीं. अनुशासन नहीं था. नांबियार ने मैनेजमेंट के गुड बुक्स में रहने के लिए मेरे खिलाफ लीगल ओपिनियन लिया. मैंने भी लीगल ओपिनियन लिया था. मेरे पास भी लीगल ओपिनियन था चीफ जस्टिस साहब का, सुप्रीम कोर्ट का. मेरा इतना बड़ा केस नहीं था, लेकिन मैं बहुत वोकल था बैंक और शेयरहोल्डर्स के हितों के लिए. मैं प्रयत्न कर रहा था बतौर इंडिपेंडेंट डायरेक्टर. ICAI का पूर्व प्रेसिडेंट होने के नाते मैं आंखमूंदकर नहीं बैठ सकता था. मेरे हिसाब से कुछ लोग दूसरी जगह ट्रांसफर कर दिए गए होंगे. अगर नहीं किए गए होंगे तो उन पर तुरंत एक्शन होना चाहिए.  जो एक्शन डायरेक्टर्स पर हुआ पहले वैसा ही एक्शन मैनेजमेंट के नीचे के लोगों पर भी होना चाहिए. हम कॉरपोरेट गवर्नेंस की बात करते हैं, ऑडिट कमेटी होती है. लेकिन व्यवहारिक तौर पर जानते हैं कि जो चीजें सीनियर मैनेजमेंट के लोग बनाकर लाते हैं डायरेक्टर्स उस पर भरोसा करते हैं. क्योंकि वो बैंक के अहम व्यक्ति होते हैं. अगर मैनेजमेंट के यही लोग पहले के गलत कामों को उजागर करते और रोकते तो बैंक की जो नौबत हुई, परेशानी हुईं लोगों को वो शायद नहीं होती.


सवाल-3: आप ठीक कह रहे हैं उत्तम जी. लेकिन इस पर भी और सफाई की जरूरत है कि पेनल्टी या सेटलमेंट की रकम किसके खाते से जा रही है? बैंक, मैनेजमेंट के लोगों के हिस्सा का भी खुद ही भर रहा है या फिर वाकई में जिम्मेदार लोग खुद की जेब से भर रहे हैं?


जवाब: आप मीडिया वाले हैं खुद ही पता लगाइए. लेकिन किसी कर्मचारी पर है तो कर्मचारी को खुद की जेब से भरना चाहिए. उनके निजी खाते से पैसा जाना चाहिए. पब्लिक को बताना भी चाहिए इस मामले पर. ये बैंक का खर्च नहीं है क्योंकि बैंक पर तो अलग से इसकी रकम तय की गई है. अगर बैंक खुद ही मैनेजमेंट के लोगों के हिस्से की पेनाल्टी भरता रहेगा तो फिर लोग अपने हिसाब से ही काम करते रहेंगे. फिर इसका खामियाजा शेयर होल्डर्स और इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स को भुगतना होगा. अगर मोटी सैलरी लेने वाले सीनियर लोग अपना काम ठीक से नहीं करेंगे तो ये अच्छा नहीं होगा. मेरी रेगुलेटर से अपील है कि कोर मैनेजमेंट टीम के लोगों को भी बोर्ड की तरह ही जिम्मेदार माना जाए.


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