नयी दिल्ली: प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था में करदाता इकाइयों पर अधिकार क्षेत्र के बंटवारे को लेकर केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच मतभेद अब भी बरकरार है। इस मुद्दे पर रविवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा राज्यों के वित्त मंत्रियों के साथ हुई अनौपचारिक बैठक में इस उलझन से निकलने का कोई रास्ता तय नहीं हो सका।


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बैठक में शामिल विभिन्न मंत्रियों ने बातचीत में कहा कि राज्य सरकारें इस मांग पर जोर दे रही हैं कि सालाना 1.5 करोड़ रुपये तक के कारोबार वाली इकाइयों के आकलन और जांच अधिकार राज्यों के हाथ में हो। बैठक में तय हुआ कि इस मुद्दे पर अधिकार संपन्न जीएसटी परिषद की 25 नवंबर को होने वाली बैठक से पहले अधिकारियों की एक बैठक कल होगी जिसमें विभिन्न प्रस्तावों के गुण-दोष पर विस्तार से चर्चा हो सकती है।


बैठक के बाद जेटली ने संवाददाताओं से कहा, ‘आज की बैठक अधूरी रही। 25 नवंबर को बातचीत जारी रहेगी।’ रविवार की बैठक करीब तीन घंटे चली। इकाइयों के आकलन और उन पर नियंत्रण के अधिकार का मुद्दा टेढ़ी खीर बना हुआ है। पिछली दो बैठकों में भी इस पर सहमति नहीं हो सकी और अगली बैठक तक इसका रास्ता नहीं निकला तो आगामी एक अप्रैल 2017 से जीएसटी लागू करने की योजना गड़बड़ा सकती है।


जीएसटी मौजूदा अप्रत्यक्ष करों की जगह लेगा जिसमें केंद्र का उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर तथा राज्यों के वैट और बिक्री शुल्क शामिल हैं। जेटली ने इस महीने की शुरूआत में कहा था कि प्रस्तावित जीएसटी प्रणाली 16 सितंबर 2017 तक लागू हो जानी चाहिए क्योंकि उसके बाद इसके लिये संविधान संशोधन की वैधता समाप्त हो जाएगी।


गौरतलब है कि राज्य सरकारों ने इस संविधान संशोधन अनुमोदित करने की औपचारिकता पूरी कर दी है। उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा केरल जैसे राज्य सालाना डेढ़ करोड़ रुपये से कम का करोबार करने वाले छोटे कारोबारियों पर विशिष्ट नियंत्रण के लिए जोर दे रहे हैं जिसमें वस्तु एवं सेवा दोनों प्रकार के करों का नियंत्रण शामिल हो। उनका कहना है कि राज्यों के पास जमीनी स्तर पर इसके लिए ढांचा है और करदाता इकाई भी राज्य के अधिकारियों से अधिक सुविधा महसूस करेंगे।


उत्तराखंड की वित्त मंत्री इंदिरा ह्यदेश ने कहा कि राज्य डेढ़ करोड़ और उससे कम के कारोबार वाली इकाइयों के मामले में वस्तु एवं सेवा करदाताओं दोनों का नियंत्रण चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार वस्तुओं के मामले में इस बात पर सहमत है पर सेवाओं को लेकर तैयार नहीं है। राज्य सरकारों राजस्व को लेकर अपने हित को सुरक्षित रखना चाहती हैं। केंद्र सरकार को केंद्रीय जीएसटी तथा राज्य जीएसटी एवं समन्वित वस्तु एवं सेवा कर (आईजीएसटी) विधेयकों को पारित कराने के लिये राज्यों की बात माननी ही होगी।’ 


उन्होंने यह भी कहा, ‘इस मामले पर कोई बीच का रास्ता राजनीतिक स्तर पर निकालने की जरूरत है।’ केरल के वित्त मंत्री थामस इसाक ने कहा कि मामला अटका हुआ है और राज्य सरकार इस पर कोई समझौता करने के मूड में नहीं है क्योंकि यह उनके लिये कराधान के अधिकार को छोड़ने जैसा है।


एक अधिकारी ने कहा कि यह अनौपचारिक बैठक थी जिसमें कोई अधिकारी नहीं थे। इसका मकसद किसी तरह के राजनीतिक समाधान पर पहुंचना था। सूत्रों के अनुसार पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल, राजस्थान, ओड़िशा तथा उत्तराखंड समेत कई राज्यों ने कहा कि दोहरे नियंत्रण से छोटे करदाताओं को परेशान नहीं किया जा सकता। 


राजस्थान के शहरी विकास मंत्री आर शेखावत ने कहा कि केंद्र तथा राज्य विभिन्न योजनाओं एवं प्रस्तावों पर काम कर रहे हैं। अगली जीएसटी परिषद की बैठक में सीजीएसटी, एसजीएसटी, आईजीएसटी तथा मुआवजा कानून से संबंधित अनुपूरक विधेयकों को अंतिम रूप दिया जाएगा। परिषद की पिछली बैठक में चार स्लैब के ढांचे..5, 12, 18 और 28 प्रतिशत पर सहमति बनी थी। साथ ही लक्जरी तथा तंबाकू जैसे अहितकर उत्पादों पर उपकर भी लगेगा।