शेयर बाजार या फिर सोना, किसने दिया ज्यादा रिटर्न? यूएस मार्केट को भी पीछे छोड़ा
Gold Return: भारतीय शेयर बाजार, गोल्ड, अमेरिकी शेयर बाजार या फिर कैश पर मिलने वाला ब्याज. पिछले 34 साल के दौरान किसने सबसे ज्यादा रिटर्न दिया? मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट से पढ़कर आप भी हैरान हो जाएंगे.
Indian Stock Market Return: पिछले कुछ साल में भारतीय शेयर बाजार ने रिकॉर्ड रिटर्न दिया है. मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट से साफ हुआ कि इंडियन इक्विटी रिटर्न ने अमेरिकी बाजार को पीछे छोड़ दिया है. रिपोर्ट के अनुसार 1990 में भारतीय शेयर बाजार में 100 रुपये का निवेश 2024 तक बढ़कर 9500 रुपये हो गया, जबकि अमेरिका में यह महज 8400 रुपये होता. इंडियन इक्विटी मार्केट ने दमदार रिटर्न दिया है, जिससे 1990 के बाद से निवेश करीब 95 गुना बढ़ गया है. किसी निवेशक ने 1990 में भारतीय शेयर मार्केट में 100 रुपये निवेश किया होता तो नवंबर 2024 तक यह बढ़कर 9,500 रुपये हो जाता.
सोने में 100 रुपये का निवेश बढ़कर 3200 रुपये हुआ
इसके अलावा इसी दौरान अमेरिकी शेयर मार्केट में निवेश किये गए 100 रुपये बढ़कर 8,400 रुपये हो जाते. इससे साफ है कि भारतीय बाजार ने अमेरिकी बाजार की तुलना में बेहतर रिटर्न दिया है. रिपोर्ट में इक्विटी प्रदर्शन के मुकाबले इनवेस्टमेंट के दूसरे ऑप्शन जैसे सोना और नकदी से भी की. इसमें कहा गया कि पारंपरिक रूप से सुरक्षित निवेश माने जाने वाले गोल्ड ने इस दौरान 32 गुना रिटर्न दिया है. यानी 1990 में सोने में किया गया 100 रुपये का निवेश बढ़कर 3,200 रुपये हो गया, जो कि इक्विटी रिटर्न से काफी कम है.
34 साल में 100 रुपये केवल 1100 रुपये तक बढ़े
रिपोर्ट के अनुसार सबसे खराब प्रदर्शन नकदी ने किया. 100 रुपये नकद रखने और इस पर मामूली ब्याज दर की पेशकश करने वाले साधनों में निवेश करने से यह 34 साल में केवल 1,100 रुपये तक बढ़ा. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि यदि निवेश को बढ़ने का समय दिया जाए तो उसके पूरी क्षमता तक पहुंचने की संभावना ज्यादा होती है. समस्या तब बनती है जब पर्सनल कैपिटल का निवेश करके हर छोटी-छोटी उथल-पुथल को नोटिस किया जाए तो यह कैपिटल को कम कर सकती है. शुरुआत में निवेशक इस स्थिति को नहीं समझ पाता. लेकिन जब मंदी का बाजार महीनों या सालों तक चलता है तो पोर्टफोलियो बेनिफिट और कैपिटल भी कम होने लगती है.
रिपोर्ट में बताया गया कि ऐसे समय ज्यादातर निवेशक बेचैन हो जाते हैं और डर पैदा हो जाता है. इस तरह की मानसिकता में निवेशक जल्दी में फैसले लेते हैं जो पूरी तरह से भावनाओं पर आधारित होता है. वे इस बारे में नहीं जानते कि वे खुद को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि हेल्दी इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो के लिए लॉन्ग टर्म विजन होना चाहिए. कैपिटल गेन पर टैक्स की कैलकुलेशन के मामले में इक्विटी के लिए लॉन्ग टर्म को एक साल के होल्डिंग पीरियर और डेब्ट इंस्ट्रमेंट के लिए दो साल की अवधि माना जाता है.