RBI Monetary Policy Meeting: आरबीआई की तरफ से शुक्रवार को द्व‍िमास‍िक मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग (MPC) का ऐलान कर द‍िया गया. र‍िजर्व बैंक ने लगातार 7वीं बार रेपो रेट में क‍िसी तरह का बदलाव नहीं क‍िया. इस दौरान र‍िटेल महंगाई दर के 4.5 प्रतिशत पर रहने का अनुमान जताया गया. यह 2023-24 के 5.4 प्रतिशत के अनुमान से कम काफी कम है. आरबीआई गवर्नर शक्‍त‍िकांत दास ने एमपीसी के दौरान ल‍िये गए फैसलों के बारे में जानकारी देते हुए बताया क‍ि महंगाई पर सबसे ज्‍यादा फोकस रहा. उन्‍होंने महंगाई की तुलना हाथी से करते हुए कहा 'हाथी अब धीरे-धीरे जंगल की तरफ लौट रहा है.' यानी महंगाई दर तय दायरे में लौट रही है.


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महंगाई 4 प्रत‍िशत के दायरे में लौट रही


शक्तिकांत दास ने प‍िछले द‍िनों बढ़ती महंगाई दर को हाथी की तरह बताया, हाथी के जंगल की तरफ लौटने की बात करते हुए उन्‍होंने कहा यह अब 4 प्रत‍िशत के दायरे में लौट रही है. इसके ल‍िए आरबीआई ने एमपीसी मीट‍िंग के दौरान 2024-25 में रेपो रेट को 6.5% पर ही बरकरार रखा. उन्‍होंने कहा यह जीडीपी की मजबूती और महंगाई को नीचे लाने की जरूरत को ध्‍यान में रखते हुए क‍िया गया है. आरबीआई गवर्नर के अनुसार दो साल पहले महंगाई दर कमरे में मौजूद हाथी थी. उन्होंने कहा, 'दो साल पहले, इसी समय के करीब अप्रैल 2022 में सीपीआई इंफ्लेशन रेट 7.8 प्रतिशत पर पहुंच गया तो यह कमरे में मौजूद हाथी की तरह था. हाथी अब टहलने के लिए निकला है और जंगल में वापस आ रहा है.'


...जंगल वापस लौट जाए और स्थायी तरह से वहीं रहे
शक्तिकांत दास ने कहा, हम यह चाहते हैं क‍ि हाथी जंगल वापस लौट जाए और स्थायी तरह से वहीं रहे. दूसरे शब्दों में यह इकोनॉमी के ल‍िए भी फायदेमंद है कि सीपीआई महंगाई कम होती रहे और तय टारगेट के ह‍िसाब से रहे. जब तक यह लक्ष्‍य हास‍िल नहीं होता तब तक हमारा काम अधूरा रहता है. आरबीआई गवर्नर ने महंगाई के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई में व‍िचल‍ित नहीं होने की सलाह दी. उन्होंने कहा, महंगाई को नीचे लाने के ल‍िए की गई कोश‍िश व‍िकास दर के लगातार आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करेगा.


शक्तिकांत दास ने बताया एमपीसी की 3, 4 और 5 अप्रैल 2024 को हुई मीट‍िंग में 5 से 1 के बहुमत से रेपो रेट को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का फैसला क‍िया गया. उन्‍होंने कहा, विकास की मजबूत संभावनाएं महंगाई पर फोकस करने और इसे 4 प्रतिशत के दायरे तक कम होने को सुन‍िश्‍च‍ित करने के लिए दायरा देती हैं. खाद्य कीमतों में अन‍िश्‍च‍ितताएं चुनौतियां पैदा करती रहती हैं.