Tomato Price: एक बार फ‍िर से टमाटर और प्‍याज के रेट आसमान छूने लगे हैं. द‍िल्‍ली-एनसीआर में टमाटर का रेट एक बार फ‍िर से बढ़कर 80 रुपये क‍िलो और प्‍याज का 60 से 70 रुपये क‍िलो पर पहुंच गया है. आपकी जेब से भले ही एक क‍िलो प्‍याज के ल‍िए 60 रुपये खर्च हो रहे हो. लेक‍िन इसका बहुत ही कम ह‍िस्‍सा क‍िसानों के पास पहुंचता है. एक र‍िसर्च पेपर के आधार पर दावा क‍िया गया है क‍ि ग्राहकों की तरफ से प्‍याज पर जो खर्च क‍िया जाता है उसका 36 प्रत‍िशत, टमाटर में 33 प्रत‍िशत और आलू में 37 प्रत‍िशत पैसा ही क‍िसानों के पास तक पहुंचता है.


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60 रुपये के बदले 21.6 रुपये


इसका सीधा सा मतलब हुआ क‍ि 60 रुपये की एक क‍िलो प्‍याज में से क‍िसानों को 21.6 रुपये, 80 रुपये के टमाटर में से 26.4 रुपये और 40 रुपये के टमाटर में से 15 रुपये ही म‍िलते है. र‍िसर्च लेटर में स्थिति में सुधार के लिए एग्रीकल्‍चर मार्केट‍िंग एर‍िया (agricultural marketing area) में सुधार का सुझाव दिया गया है. इसमें किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम प्राप्त करने में मदद के लिए निजी मंडियों की संख्या बढ़ाने की बात कही गई है. टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों को लेकर सब्जियों की महंगाई पर र‍िसर्च पेपर में कहा गया है, ‘चूंकि सब्जियां जल्दी खराब होने वाली वस्तुएं हैं, ऐसे में टमाटर, प्याज और आलू की मार्केट‍िंग में पारदर्शिता में सुधार के लिए निजी मंडियों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है. प्रतिस्पर्धा से स्थानीय स्तर की कृषि उपज बाजार समिति के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने में भी मदद मिल सकती है.


खाद्य महंगाई दर को जिम्मेदार ठहराया गया
महंगाई पर हाल के दबाव के पीछे खाद्य महंगाई दर को जिम्मेदार ठहराया गया है. इसमें टमाटर, प्याज और आलू के दाम में उतार- चढ़ाव सबसे चुनौतीपूर्ण रही है. र‍िसर्च लेटर को आर्थिक अनुसंधान विभाग (DEPR) के कर्मचारियों और बाहर के लेखकों ने मिलकर तैयार किया है. शोधकर्ताओं ने पाया कि बाजारों में मौजूदा कमियों को कम करने में मदद के लिए ई-राष्ट्रीय कृषि बाजारों (ई-एनएएम) का लाभ उठाया जाना चाहिए. इससे किसानों को प्राप्त कीमतों में वृद्धि होगी जबकि दूसरी तरफ उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमतें कम होंगी.


किसान उपज संगठनों को बढ़ावा देने की बात कही गयी
शोध पत्र में टमाटर, प्याज और आलू के मामले में किसान उपज संगठनों को बढ़ावा देने की बात कही गयी है. साथ ही प्याज में खासकर सर्दियों की फसल के लिए वायदा कारोबार शुरू करने की वकालत की गयी है. इससे अनुकूलतम मूल्य खोज और जोखिम प्रबंधन में मदद मिलेगी. इसमें इन सब्जियों के भंडारण, उनके प्रसंस्करण और उत्पादकता बढ़ाने के तरीकों के बारे में सुझाव दिये गये हैं. इस बीच, चना, तुअर और मूंग पर जोर के साथ दाल की मुद्रास्फीति पर इसी तरह के एक अध्ययन में कहा गया है कि चने पर उपभोक्ता खर्च का लगभग 75 प्रतिशत किसानों के पास गया. मूंग और अरहर के मामले में यह क्रमश: 70 प्रतिशत तथा 65 प्रतिशत है. आरबीआई ने साफ किया है कि शोध पत्र में विचार लेखकों के हैं और उससे उसका कोई लेना-देना नहीं है.