Anil Ambani: खुशखबरी मिलने के 24 घंटे बाद ही अनिल अंबानी को झटका, रिलायंस पावर पर 3 साल के लिए लगा बैन
Reliance Power Share Price: रिलायंस पावर और रिलायंस एनयू बीईएसएस लिमिटेड को कथित रूप से ‘फर्जी दस्तावेज’ जमा करने के लिए सरकारी सौर कंपनी सेकी की निविदाओं में हिस्सा लेने के लिये तीन साल के लिए रोक दिया गया है.
Reliance Power Fake Tender Document: अनिल अंबानी के साथ पिछले कुछ दिनों से ऐसा हो रहा है कि जब उनके लिए अच्छी खबर आती है तो पीछे-पीछे बुरी खबर भी आ जाती है. एक दिन पहले ही खबर आई कि रिलायंस पावर की सब्सिडियरी रोजा पावर कर्ज मुक्त हो गई है. इसके एक ही दिन बाद यह भी खबर आ गई कि रिलायंस पावर और रिलायंस एनयू बीईएसएस लिमिटेड को कथित रूप से ‘फर्जी दस्तावेज’ जमा करने के लिए सरकारी सौर कंपनी सेकी की निविदाओं में हिस्सा लेने के लिये तीन साल के लिए रोक दिया गया है. इससे पहले भी सेबी ने अनिल अंबानी को सिक्योरिटी मार्केट से पांच साल के लिए बैन कर दिया था.
जांच में बैंक गारंटी फर्जी पायी गई
सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेकी) ने एक नोट में कहा, ‘महाराष्ट्र एनर्जी जेनरेशन, जिसे रिलायंस एनयू बीईएसएस (एक परियोजना के लिए) के रूप में जाना जाता है. कंपनी की तरफ से पेश डॉक्यूमेंट की जांच में यह पाया गया कि निविदा शर्तों के अनुरूप बोलीदाता की तरफ से प्रस्तुत ईएमडी (एक विदेशी बैंक द्वारा जारी) के एवज में दी गई बैंक गारंटी फर्जी थी.’ यह मामला सेकी की तरफ से आयोजित प्रतिस्पर्धी बोली के तहत 1,000 मेगावाट/ 2,000 मेगावाट घंटे की एकल आधार वाली बीईएसएस प्रोजेक्ट की स्थापना के लिए जारी किए गए चयन संदर्भ (RFS) से संबंधित है.
गड़बड़ी पाये जाने के बाद निविदा प्रक्रिया रद्द करनी पड़ी
उपरोक्त गड़बड़ी ई-रिवर्स नीलामी के बाद पाए जाने की वजह से सेकी को निविदा प्रक्रिया रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा. सेकी ने कहा कि उसने रिलायंस पावर और रिलायंस एनयू बीईएसएस को तीन साल की अवधि में जारी होने वाली निविदाओं में हिस्सा लेने से रोक दिया है. निविदा शर्तों के अनुसार फर्जी दस्तावेज पेश करने की वजह से बोलीदाता को भविष्य की निविदाओं में शामिल होने से वंचित किया जा सकता है.
बोलीदाता इकाई ने रिलायंस पावर लिमिटेड की सब्सिडियरी कंपनी होने के कारण अपनी मूल कंपनी की ताकत का उपयोग करके वित्तीय पात्रता शर्तों को पूरा किया था. लेकिन इसके बाद हुई जांच में पाया गया कि बोलीदाता की तरफ से लिए गए सभी वाणिज्यिक और रणनीतिक फैसले वास्तव में मूल कंपनी द्वारा ही संचालित थे. ऐसे में रिलायंस पावर को भी भविष्य की निविदाओं में भाग लेने से रोकना जरूरी हो गया. (इनपुट भाषा से भी)