Tata Memorial Hospital: मोहब्बत में ताजमहल तो सुना, लेकिन इश्क में अस्पताल...ये सिर्फ टाटा ही कर सकते हैं
Tata Memorial Centre Cancer Tablet: अब तक लाखों लोगों की जिदंगियां बचाने वाले टाटा कैंसर हॉस्पिटल ने अब कैंसर की दवा बनाने का दावा किया है. इस अस्पताल की शुरुआत टाटा के पूर्व चेयरमैन की लवस्टोरी से हुई थी.
Tata Memorial Hospital: जब भी बात भरोसे की आती है कि जहन में एक ही नाम आता है, टाटा (Tata). इसी भरोसे का असर है कि जब बीते दिनों खबर आई कि टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल (Tata Memorial Centre) कैंसर की संभावित दवा ढूंढ ली है, लोगों में खुशी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. टाटा अस्पताल (Tata Cancer Hospital) की रिसर्च टीम ने दावा किया उन्होंने कैंसर की संभावित दवा ढूंढ ली है, जो न सिर्फ कैंसर सेल्स को फिर से बढ़ने से रोक सकती है, बल्कि इसकी कीमत भी काफी किफायती है. टाटा मेमोरियल अस्पताल जो लाखों जिंदगियां बचा चुका है, लोगों को नई जिंदगी दे चुका है उसकी शुरुआत लवस्टोरी से हुई है. एक ऐसी लवस्टोरी, जहां प्रेमी ने अपनी प्रेमिका की याद में अस्पताल बना दिया.
पत्नी की याद में टाटा ने बना दिया अस्पताल
मोहब्बत में ताजमहल बनाने के वादे तो कई बार सुने होंगे, लेकिन टाटा वो हैं, जो प्यार में भी परोपकार के बारे में सोचते हैं. टाटा मेमोरियल की शुरुआत प्रेम कहानी से हुई. जिस हीरे को गिरवी रखकर कभी टाटा ने अपनी कंपनी टाटा स्टील बचाई थी, उसी को बेचकर उन्होंने लाखों जिंदगियों को बचाने के लिए अस्पताल खड़ा कर दिया. कहानी की शुरुआत साल 1932 में होती है , जब दोराबजी टाटा (Dorabji Tata)की पत्नी लेडी मेहरबाई टाटा की ल्यूकेमिया से मौत हो गई थी. विदेश में लंबे वक्त तक इलाज लगा, रेडियोथेरेपी हुई, लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा न सकें. साल 1932 में उनकी मौत हो गई.
पत्नी की मौत से टूट गए थे टाटा
लेडी मेहरबाई टाटा की मौत के बाद सर दोराबजी टाटा टूट गए. उस वक्त भारत में कैंसर के इलाज के लिए कोई अस्पताल नहीं था. रेडिएशन थेरेपी कैंसर का ट्रीटमेंट हो रहा था, जिसकी भी सुविधा भारत में नहीं थी. दोराबजी टाटा ने ठान लिया कि वो भारत में कैंसर के इलाज के लिए विदेशी जैसी सुविधा के साथ अस्पताल की शुरुआत करेंगे. उन्होंने दो ट्रस्ट लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट और सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट बनाए.
पत्नी को जो हीरा गिफ्ट किया, उसे बेचकर इकट्ठा की पूंजी
दोराबजी टाटा ने अपनी पत्नी मेहरबाई टाटा को बेशकीमती जुबली हीरा गिफ्ट किया था, लेकिन बदकिस्मती देखिए वो कभी उसे पहन न सकीं. पहले जब टाटा स्टील की हालात खराब हुई तो उन्होंने दोराबजी को हीरा गिरवी रखने के लिए दिया, ताकि कंपनी को बचाया जा सके. जब दोराबजी उसे वापस लेकर आए तो वो खुद न रहीं. दोराबजी टाटा ने उन नायाब जुबली हीरे को बेचकर अस्पताल के लिए फंड इकट्ठा कर लिया. अस्पताल का काम शुरू हो पाता उससे पहले साल 1932 में उनकी भी मृत्यु हो गई.
मुश्किलों के बाद तैयार हुआ टाटा का अस्पताल
दोराबजी के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए सर नौरोजी सकलतवाला टाटा ने काम आगे बढ़ाया. टाटा ग्रुप के नए अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने फिर से काम शुरू किया. लेकिन मानों सारी मुश्किलें इसी अस्पताल के बनने में आनी हो. साल 1938 में सकलतवाला की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. अब टाटा की जिम्मेदारी जेआरडी टाटा के हाथों में आ गई. JRD टाटा ने टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल नाम का अस्पताल के निर्माण का काम शुरू किया और ऐलान किया कि इसमें अंग्रेजों की कोई दखल नहीं होगी.
2 साल में पूरा हुआ अस्पताल के निर्माण का काम
अस्पताल का काम फिर से शुरू हुआ, लेकिन 1939 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर के चलते एक बार फिर से काम रूक गया. जेआरडी टाटा ने हार नहीं मानी और 30 लाख की लागत से 2 साल के अंदर उन्होंने अस्पताल का काम पूरा करवाया. फरवरी 1941 टाटा मेमोरियल अस्पताल बनकर तैयार हो गया. सात मंजिला ये अस्पताल तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस था. सिर्फ भारत नहीं बल्कि पूरे एशिया का पहला कैंसर अस्पताल था. साल 1957 तक टाटा मेमोरियल अस्पताल को टाटा ट्रस्ट ने चलाया, बाद में भारत सरकार की हेल्थ मिनिस्ट्री ने इसे अपने अधीन ले लिया.