Digital Evaluation Systems for Teachers: एजुकेशन के फील्ड में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है, और टेक्नोलॉजी सीखने का माहौल बनाने में काफी मददगार साबित हुई है. टेक्नोलॉजी की तरक्की के साथ-साथ अब डिजिटल इवेल्यूएशन सिस्टम भी काफी डेवलप हो गया है. ये सिस्टम यूनिवर्सिटी और बोर्डों को स्टूडेंट्स की परख, उनकी परफॉर्मेंस का फीडबैक देने और काम को आसान बनाने के कई तरीके मुहैया कराती है. ये टेक्नोलॉजी बिना किसी अड़चन के इन सिस्टम्स को जोड़ने और ज्यादा से ज्यादा फायदे उठाने के लिए बनाई गई हैं.


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डिजिटल इवेल्यूएशन, यूनिवर्सिटी और बोर्डों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया को बेहतर बनाने और स्टूडेंट्स को ग्रेड देने में काफी मददगार होती है. इन सिस्टम्स की मदद से बोर्ड और यूनिवर्सिटी तेजी से और सुरक्षित तरीके से नतीजे तैयार कर सकते हैं. सबसे पहले, जरूरतों का अच्छे से आंकलन किया जाता है, ताकि खास चीजों की पहचान हो सके. इसके बाद संस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्लेटफॉर्म चुना जाता है. इन सिस्सटम्स को संस्था की खास जरूरतों के हिसाब से बदला जा सकता है.


डेटा की सिक्योरिटी को प्राथमिकता देकर स्टूडेंट्स की जानकारी की रक्षा की जाती है और गोपनीयता सुनिश्चित की जाती है. मूल्यांकन के तरीकों का लगातार मूल्यांकन और सुधार किया जाता है ताकि पूरी प्रक्रिया में लगातार सुधार हो सके.  डिजिटल मूल्यांकन के साथ, स्टूडेंट्स की कॉपी देना काफी आसान हो जाता है, जिससे उनका रिव्यू या पुनर्मूल्यांकन आसानी से किया जा सकता है.


इवेल्यूएशन एंड गोल सेटिंग की जरूरत: डिजिटल इवेल्यूएशन सिस्टम अपनाने से पहले, यूनिवर्सिटी और बोर्डों को अपनी जरूरतों का इवेल्यूएशन करना चाहिए. इसमें ये पता लगाना शामिल है कि उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उनके टारगेट क्या हैं और वो क्या हासिल करना चाहते हैं. इसके लिए यूनिवर्सिटीज, बोर्डों से राय ली जा सकती है, ताकि उनकी जरूरतों और अपेक्षाओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके.


रिसर्च एंड सेलेक्शन: मार्केट में कई अलग-अलग डिजिटल इवेल्यूएशन सिस्टम हैं, जिनमें से हरएक की अपनी विशेषताएं और कार्यक्षमताएं हैं. यूनिवर्सिटी/बोर्ड को स्केलेबिलिटी, मौजूदा बुनियादी ढांचे के साथ अनुकूलता, डेटा सिक्योरिटी, एक्सपीरिएंस के आधार पर अलग अलग प्लेटफार्मों की तुलना करने के लिए स्टडी करनी चाहिए. ऐसे सिस्टम को चुनना जरूरी है जो न केवल वर्तमान जरूरतों को पूरा करती हो बल्कि भविष्य के तकनीकी सुधारों के लिए भी अनुकूल हो.


प्रोफेशनल डेवलपमेंट: डिजिटल इवेल्यूशन सिस्टम को कारगर ढंग से इस्तेमाल करने के लिए टीचर्स को नए स्किल और एफिशिएंसी सीखनी होंगी. इसलिए ये ज़रूरी है कि यूनिवर्सिटी/ बोर्ड शिक्षकों को चुने हुए प्लेटफॉर्म को इस्तेमाल करने में कुशल बनाने के लिए प्रोफेशनल डेवलमेंट के मौके दे. इसमें वर्कशॉप, ट्रेनिंग, साथी शिक्षकों से सीखना और एजुकेशन टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स से लगातार हेल्प जैसी चीजें शामिल हो सकती हैं.


कस्टमाइजेशन एंड इंटीग्रेशन: डिजिटल इवेल्यूएशन सिस्टम को टीचर्स के अलग अलग पढ़ाने के तरीकों और इवेल्यूएशन के अनुकूल होना चाहिए. यूनिवर्सिटी/ बोर्ड को अपनी-अपनी जरूरतों के हिसाब से इवेल्यूएशन के फॉर्मेट, पैमाने, नंबर देने के तरीके और फीडबैक देने के तरीकों को बदलने में सक्षम होना चाहिए.


लगातार इवेल्यूएश और इंप्रूवमेंट: डिजिटल इवेल्यूएशन सिस्टम को लागू करना एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें लगातार मूल्यांकन और सुधार की जरूरत होती है. यूनिवर्सिटी/ बोर्ड को बार-बार चेक करना चाहिए चाहिए कि क्या चुना हुआ प्लेटफॉर्म पहले से तय किए गए टारगेट को पूरा करने में सक्षम है और अगर कोई दिक्कत या चुनौती आती है तो उसे दूर करना चाहिए. इवेल्यूएशन करने वाले टीचर्स और एडमिनिस्ट्रेटर से राय लेने से सिस्टम की यूटिलिटी, वर्किंग कैपेसिटी और यूजर एक्सपीरिएंस को बेहतर बनाने के लिए सही जानकारी मिल सकती है.  नतीजों को संसाधित करने में सुधार के लिए लगातार एनालिसिस और डेवलपमेंट करके, बोर्ड/यूनिवर्सिटी डिजिटल इवेल्यूएशन सिस्टम की लॉन्ग टर्म स्थिरता और प्रासंगिकता बनाए रख सकते हैं.


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डिजिटल इवेल्यूएशन नंबर देने से आगे की चीज है. यह एजुकेशन की बेहतरी और भविष्य की नींव मजबूत करने के लिए एक जरूरी बदलाव लाने वाला उपकरण है. लर्निंग स्पाइरल के निदेशक मनीष मोहता के मुताबिक, इससे बोर्ड/यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स की आंसर सीट का रिव्यू कर सकते हैं, जिससे इवेल्यूएशन में सटीकता और ट्रांसपेरेंसी सुनिश्चित होती है. प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने से सुरक्षा और दक्षता बनाए रखते हुए परीक्षा परिणाम जल्दी प्रकाशित किए जा सकते हैं. यह सिर्फ स्टूडेंट्स की सफलता को बढ़ावा देने से कहीं ज्यादा है; यह लगातार सुधार, डेटा सिक्योरिटी और पर्सनल इवेल्यूएशन एक्सपीरिएंस के बारे में है. हम डिजिटल इवेल्यूएश सिस्टम में ट्रांसपेरेंसी, एफिशिएंसी और एडप्टिबिलिटी को प्राथमिकता देते हैं, जिससे एजुकेशन के भविष्य को उज्जवल बनाने का रास्त क्लियर होता है जहां टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल एक्सीलेंसी और जवाबदेही को सक्षम बनाने के लिए किया जा सकता है.


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