The Holy River Of India: भारत की सबसे पवित्र नदी (Holy River) गंगा (Ganga) को माना गया है. ऐसा भी कहा गया है कि जो कोई गंगा नदी में सच्चे मन से अपनी किसी भी भूल की क्षमा मांगकर स्नान करता है उसे मृत्यु के बाद स्वर्ग में जगह मिलती है. पौराणिक कथा के अनुसार राजा भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी गंगा पृथ्वी पर आईं थी और फिर भागीरथ के पितरों को मोक्ष मिला था. उसके बाद गंगा ने मानव की कई पीढ़ियों का उद्धार किया और अब भी कर रही हैं. 


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हिंदू धर्म ग्रंथों के की पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख मिलता है कि आज से लगभग 14 हजार साल पहले गंगा जी का धरती पर आगमन हुआ था, लेकिन क्या आप जानते हैं गंगा नदी से पहले भी भारत में एक विशाल नदी बहा करती थीं? तो चलिए आज जानेंगे कि वो कौन सी पवित्र नदी है, जो गंगा से पहले आई और जिससे धरती पर नदियों की कहानी शुरू हुई. 


त्रिवेणी संगम
इस पर हुए एक शोध के मुताबिक गंगा नदी से पहले यहां सरस्वती नदी का अस्तित्व मिलता है, जो वैदिक सभ्यता में सबसे बड़ी और प्रमुख नदी थी. ऋग्वेद में भी इस नदी का उल्लेख मिलता है. महाभारत में भी सरस्वती का उल्लेख करते हुए लिखा गया कि यह गायब हो चुकी नदी है, जिस स्थान पर ऐसा हुआ उस जगह को विनाशना कहा जाता है. जानकारों का कहना है कि पुराने समय में सतलुज और यमुना नदी दोनों ही सरस्वती नदी में आकर मिलती थी. कहते हैं कि प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है, इसी वजह से उसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है.


कहां हुआ था सरस्वती नदी का उद्गम
वैदिक धर्मग्रंथों में कहा गया है कि धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती नदी से शुरू होती है, जो सबसे पहले पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से प्रकट हुई. यह भी कहा जाता है कि हिमालय से जन्म लेने वाली सरस्वती नदी प्राचीन काल में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात होते हुए आज के पाकिस्तानी सिन्ध प्रदेश से सिन्धु सागर (अरब की खड़ी) में जाती थीं.


देवी सरस्वती को मिला था श्राप 
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और गंगा श्री विष्णु के साथ रहती थीं. एक बार गंगा जी ने कहा कि श्रीहरि देवी लक्ष्मी और सरस्वती से ज्यादा स्नेह करते हैं. ऐसा सुनकर गंगा और सरस्वती में बहस छिड़ गई, तब लक्ष्मी जी ने इस बहस को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन क्रोध में आकर सरस्वती जी ने लक्ष्मी जी को श्राप दिया कि वह भविष्य में एक पौधा बन जाएंगी और गंगा नदी बनकर धरतीवासियों के पाप धोएंगी. तब गंगा जी ने भी सरस्वती को नदी बनकर पापियों के पाप समेटने का श्राप दे दिया.


जब विष्णु जी बैकुंठ से लौटे तो उन्होंने देवियों को शांत किया, जब देवी गंगा और सरस्वती को अपनी गलती एहसास हुआ तो उन्होंने श्रापमुक्ति का उपाय मांगा. इस पर श्री विष्णु ने कहा कि श्राप का फल भोगकर कलियुग के 10 हजार वर्ष पूरे होने वह वास्तविक स्वरूप में लौट आएंगी. माना जाता है कि अब सरस्वती श्रापमुक्त होकर धरती से लौट चुकी हैं.