Madhopatti Village: आज हम बात कर रहे हैं देश के उस गांव की जिसे अफसरों का गांव कहा जाता है. यहां हर घर में सरकारी अफसर हैं. इस गांव को आईएएस आईपीएस का गांव कहा जाता है. एक-एक घर में कई सरकारी अफसर हैं. जब गांव में कोई त्योहार या शादी होती है तो गांव का माहौल अलग होता है. क्योंकि उस समय गांव में सरकारी गाड़ियों की लाइन लग जाती हैं. 


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इस गांव में यूपीएससी की तैयारी करने वाले युवा किसी कोचिंग सेंटर का सहारा नहीं लेते हैं. इस गांव में 75 परिवार रहते हैं जिनमें से 47 में आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस अधिकारी हैं. गांव में आईएएस अफसर बनने का सफर साल 1914 में शुरू हुआ. मोहम्मद मुस्तफा हुसैन डिप्टी कलेक्टर बने थे जो मशहूर शायर रहे वामिक जौनपुरी के पिता थे. वहीं, स्वतंत्रता के बाद 1952 में इंदु प्रकाश सिंह गांव के पहले आईएएस अफसर बने जो फ्रांस समेत कई देशों में राजदूत रहे. 1955 में विनय कुमार सिंह बिहार के मुख्य सचिव रहे.


साल 1964 में एक ही परिवार के भाई छत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह अफसर बने थे. इसके बाद सबसे छोटे भाई, शशिकांत सिंह भी 1968 में IAS अधिकारी बने. इसके बाद बात दूसरी पीढ़ी पर आ गई है. शशिकांत सिंह के बेटे यशस्वी सिंह भी यूपीएससी क्लियर करके IAS अफसर बन गए. इस गांव में एक परिवार ऐसा भी है जिसके हर मेंबर को यूपीएससी क्लियर करना जरूरी है. यूपीएससी क्लियर करने के बाद वह नौकरी जॉइन करे या न करे यह उसपर निर्भर करता है, लेकिन यूपीएससी निकालना जरूरी है. 


गांव के पुरुष ही नहीं बल्कि गांव की बहु, बेटियां भी IAS अधिकारी बनी हैं. 1980 में आशा सिंह आईएएस अधिकारी बनीं. इसके बाद 1982 में उषा सिंह और क्रमशः 1983 और 1994 में इंदु सिंह और सरिता सिंह का स्थान रहा. सन 1995 की बात है जब माधो पट्टी के एक परिवार ने एक रिकॉर्ड बनाया था. परिवार में सबसे बड़े बेटे विनय सिंह ने यूपीएससी सिविल सेवा पास की और आईएएस बने. रिटायरमेंट के समय वे बिहार के प्रधान सचिव थे.


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