Indian Railway Coach fact: भारतीय रेलवे पैसेंजर्स के जीवन में एक जरूरी भूमिका निभाता है. ट्रेन ट्रांसपोर्टेशन आधुनिक साधनों में से एक है. 1951 में, भारतीय रेलवे का नेशनलाइजेशन किया गया था. यह एशिया का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है और उसी प्रबंधन के तहत संचालित दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है. भाप के इंजन से लेकर डीजल इंजन और फिर इलेक्ट्रिक इंजन तक की यह एक शानदार जर्नी रही है. अब बात करते हैं रेल के डिब्बे पर बनी लाइनों की.


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भारतीय रेलवे में बहुत सी चीजों को बताने के लिए एक विशेष प्रकार के प्रतीकों का उपयोग किया जाता है जैसे ट्रैक के किनारे के सिंबल, प्लेटफार्म पर सिंबल आदि. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए ट्रेन के डिब्बों में एक खास तरह के सिंबल का इस्तेमाल किया जाता है.


नीले रंग के आईसीएफ कोच में कोच के आखिर में विंडो के ऊपर पीले या सफेद रंग की लाइन या पट्टियां लगाई जाती हैं, जो असल में कोच को दूसरे कोच से अलग करने के काम आती हैं. ये लाइन सेकेंड क्लास के अनरिजर्व कोच को दर्शाती हैं. जब कोई ट्रेन स्टेशन पर आती है तो कई लोग ऐसे होते हैं जो जनरल बोगी को लेकर भ्रमित रहते हैं, लेकिन इन पीली लाइनों को देखकर लोग आसानी से समझ सकते हैं कि यह जनरल कोच है. 


इसी तरह नीले/लाल रंग पर पीली धारियों का इस्तेमाल विकलांग और बीमार लोगों के लिए किया जाता है. इसी तरह, ग्रे पर हरी लाइन दर्शाती हैं कि कोच केवल महिलाओं के लिए है. ये रंग पैटर्न केवल मुंबई, पश्चिम रेलवे में नए ऑटो डोर क्लोजिंग ईएमयू के लिए शामिल किए गए हैं. इसी तरह लाल रंग की पट्टी फर्स्ट क्लास के कोच को दर्शाती है. तो हम अब समझ गए हैं कि ट्रेन के डिब्बों पर ये रंगीन पट्टियां क्यों दी जाती हैं और ये क्या संकेत देती हैं?


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