हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Elections 2024) में इस बार कोई दल अपने अस्तित्‍व की लड़ाई लड़ रहा है तो वो इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) है. एक जमाने में इस दल की हनक ही कुछ अलग थी. उपप्रधानमंत्री और दो बार हरियाणा के सीएम रहे दिवंगत चौधरी देवीलाल ने इस पार्टी को सींचा था. उसके बाद उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने पार्टी को आगे बढ़ाया लेकिन पिछले एक दशक में इस पार्टी का जनाधार लगातार घटता रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह पारिवारिक कलह, गुटबाजी, दलबदल भी है. इस बार इनेलो ने 51 सीटों पर प्रत्‍याशी उतारे हैं और 38 सीटों पर बसपा के साथ गठबंधन किया है. एक सीट पर क्षेत्रीय दल हलोपा से गठबंधन किया है. राजनीतिक विश्‍लेषकों का मानना है कि इस वक्‍त इस पार्टी का सबसे बड़ा संकट ये है कि इसके पास नेताओं की कमी है. इसलिए ही पार्टी को बसपा के साथ गठबंधन करना पड़ा है. हालांकि इसके साथ ही जातीय समीकरण को भी साधने का काम किया गया है. इनेलो के परंपरागत वोट बैंक जाट रहे हैं. बसपा के साथ गठबंधन का मकसद दलित वोटबैंक पर नजर है. 


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घटता प्रभाव
2005 के चुनाव में कांग्रेस से हारने के बाद से इनेलो के ग्राफ में लगातार गिरावट दर्ज की गई. 2014 के चुनावों में बीजेपी के सत्‍ता में पहुंचने के बीच इनेलो प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरा लेकिन उसके बाद के चुनावों में इनेलो केवल एक सीट पर सिमट गई. उसका कारण कुनबे में कलह रही. ओमप्रकाश चौटाला के परिवार में विभाजन से 2018 में जननायक जनता पार्टी (जजपा) का जन्‍म हुआ. चौटाला के पुत्रों अभय और अजय चौटाला के बीच फूट के कारण जजपा अस्तित्‍व में आई. इनेलो की कमान अभय के पास रही और उनके भाई अजय के बेटे दुष्‍यंत चौटाला ने जजपा का गठन किया. पिछले विधानसभा में जजपा ने 87 सीटों पर चुनाव लड़ा और 10 सीटें जीतीं. इस बार इनेलो का प्रयास यही है कि वह कम से कम पिछले बार की जजपा जैसी स्थिति में पहुंच जाए.


उसका बड़ा कारण ये है कि दुष्‍यंत चौटाला के प्रति इस बात की लोगों में नाराजगी है कि किसान और पहलवानों के आंदोलन के दौरान वो उनके साथ नहीं दिखे और सत्‍ता में बीजेपी के साथ बने रहे. वहीं अभय चौटाला ने विधानसभा से इस्‍तीफा देकर उनके प्रति पक्षधरता दिखाई. इस दांव पर ही इस बार इनेलो का भविष्‍य टिका है क्‍योंकि उसको उम्‍मीद है कि वो इस बार जजपा का स्‍थान ले लेगी क्‍योंकि बीजेपी से नाराज जाट वोटर उसकी तरफ शिफ्ट हो सकता है.