लाख टके का सवाल इस बार के चुनाव में ये है कि बीजेपी के नेतृत्‍व में क्‍या इस बार सत्‍तारूढ़ एनडीए 400 सीटों के आंकड़ों को पार करेगा. यानी इस फिगर पर बात करने वाले ये मानकर चल रहे हैं कि बीजेपी आसानी से तीसरी बार सत्‍ता में आ जाएगी और लगातार तीसरी बार सत्‍ता आने का पंडित नेहरू के रिकॉर्ड की पीएम नरेंद्र मोदी बराबरी कर लेंगे. इसके विपरीत ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि क्‍या बीजेपी अपने 2019 के 303 सीट तक पहुंचने के अपने ही रिकॉर्ड की बराबरी भी कर पाएगी या उससे भी कम पर सिमट जाएगी. राजनीतिक पंडितों की इन चर्चाओं का कारण वे 4 राज्‍य हैं जहां के नतीजे 4 जून को बीजेपी के भाग्‍य का फैसला करेंगे. 


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कई विश्‍लेषकों के मुताबिक बिहार, बंगाल, ओडिशा और महाराष्‍ट्र के पास ही इस बार सत्‍ता की कुंजी है. अन्‍य राज्‍यों में पिछली बार बीजेपी अधिकतम सीटों के साथ पिछली बार ही सेचुरेशन पर पहुंच चुकी है और उससे अधिक सीटें इस बार जीती नहीं जा सकतीं या ऐसे राज्‍य भी हैं जहां पार्टी का कोई बहुत जनाधार नहीं है. कहने का आशय है कि बीजेपी के पिछले प्रदर्शन को यदि कसौटी माना जाए तो इन 4 राज्‍यों से उसको चुनौती मिलती दिख रही है और इन चारों ही राज्‍यों में कांग्रेस सत्‍ता में नहीं है. इसका मायने क्‍या है? 


कांग्रेस के साथ टक्‍कर
जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्‍कर है वहां के यदि 2019 के आंकड़ों को देखें तो 138 सीटों में से 133 लोकसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. 2014 में ये आंकड़ा 121 सीटों का था. यानी पिछले दो बार के लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस के साथ सीधी लड़ाई में बीजेपी को फायदा मिलता है.


इसी तरह राज्‍यों में जब बीजेपी और कांग्रेस अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ लड़ते हैं तो भी बीजेपी को बढ़त मिलती है. 2019 के लोकसभा चुनावों में ऐसी 190 सीटों में से कांग्रेस के नेतृत्‍व में गठबंधन के मुकाबले एनडीए को 175 सीटों पर कामयाबी मिली थी.


क्षेत्रीय क्षत्रपों का जाल
बीजेपी के सामने असली चुनौती उन राज्‍यों से है जहां क्षेत्रीय क्षत्रपों का कब्‍जा है या वहां की सियासत में उलटफेर हालिया वर्षों में होते रहे हैं. बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और महाराष्‍ट्र ऐसे ही राज्‍य हैं. इन राज्‍यों की 151 लोकसभा सीटें हैं जहां से बीजेपी को सीधे चुनौती मिलती दिख रही है.


40 में से 39 का अंक
बिहार में बीजेपी के सामने अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में 54 प्रतिशत वोट शेयर के साथ एनडीए को 40 में से 39 सीटें मिली थीं. लेकिन उसके बाद बिहार की सियासत में बहुत उलटफेर हो चुका है. नीतीश कुमार का राजद के साथ जाना और फिर एनडीए खेमे में वापस आने से विश्‍वसनीयता का सवाल तो खड़ा ही हुआ है साथ ही वोटर कंफ्यूज भी हो गया है. नतीजतन जेडीयू के अति पिछड़ा वोट बैंक के छिटकने का खतरा बढ़ गया है. सिर्फ इतना ही नहीं बिहार के कुल 7.64 करोड़ मतदाताओं में से 1.6 करोड़ वोटर युवा (20-29 आयु वर्ग) तबके से है और रोजगार का संकट सबसे बड़ा मुद्दा है. विश्‍लेषकों के मुताबिक इन कारणों से ही बीजेपी को अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है. इसलिए ही कहा जा रहा है कि पटना में पीएम नरेंद्र मोदी को रोडशो करना पड़ा ताकि पिछले प्रदर्शन को बरकरार रखा जाए या बड़ी छति नहीं हो. 


बांग्‍लार लड़ाई
पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने राज्‍य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया. ममता बनर्जी की सत्‍तारूढ़ टीएमसी को 22 सीटें मिलीं. उसके बाद से ही बीजेपी ने लगातार इस राज्‍य पर फोकस किया है. पीएम मोदी ने भी हालिया एक इंटरव्‍यू में कहा था कि बंगाल में इस बार बीजेपी को सबसे ज्‍यादा फायदा होगा. विश्‍लेषकों के मुताबिक बीजेपी की रणनीति ये है कि अन्‍य राज्‍यों में होने वाले नुकसान की भरपाई बंगाल से की जाए. लेकिन सीएम ममता बनर्जी के नेतृत्‍व में टीएमसी को किसी भी मायने में हलका नहीं आंका जा सकता क्‍योंकि तमाम प्रयास करने के बावजूद बीजेपी ममता बनर्जी को लगातार तीसरी बार 2021 में सत्‍ता में आने से नहीं रोक सकी.


नवीन बाबू का करिश्‍मा
लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी और राज्‍य में नवीन पटनायक के नेतृत्‍व में सत्‍तारूढ़ बीजू जनता दल (BJD) ने गठबंधन करने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं होने के कारण एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं. ओडिशा में 21 लोकसभा सीटें हैं. पिछली बार बीजेपी को इनमें से आठ और बीजेडी को 12 मिली थीं. इस बार बीजेपी का लक्ष्‍य यहां पर 15 से भी अधिक सीटें जीतने का है. लेकिन उसके सामने नवीन पटनायक के करिश्‍माई नेतृत्‍व की चुनौती है. इस वक्‍त नवीन बाबू देश में लगातार सबसे अधिक समय तक सीएम रहने वाले दूसरे मुख्‍यमंत्री हैं. राज्‍य में लोकसभा के साथ विधानसभा के भी चुनाव हो रहे हैं और यदि वो जीतते हैं तो सबसे अधिक समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड बनाएंगे. उनकी वेलफेयर स्‍कीमों और आपदा राहत कार्यों के मैनेजमेंट ने उनको लोकप्रिय बनाया है. 


महाराष्‍ट्र का नाटक
पिछली बार बीजेपी-शिवसेना के नेतृत्‍व में एनडीए को 48 में से 41 सीटें मिली थीं. उसके बाद से सियासी हालात वहां पूरी तरह से चेंज हो चुके हैं. वहां की दो मुख्‍य क्षेत्रीय पार्टियों शिवसेना और एनसीपी में विभाजन हो चुका है और बगावती धड़ा बीजेपी के साथ सूबे की सत्‍ता पर काबिज है. इस सूबे में हालिया वर्षों में इतने बड़े सियासी उलटफेर हो चुके हैं कि अबकी बार ऊंट किस करवट बैठेगा ये किसी को पता नहीं है. बीजेपी के सामने इस राज्‍य में पिछला प्रदर्शन दोहराने की सबसे बड़ी और कठिन चुनौती है.