Akhiesh Yadav Rahul Gandhi: लोकसभा चुनाव परिणाम चौंकाने वाले आ रहे हैं. फिलहाल मतगणना जारी है. लेकिन जो शुरुआती रुझान और परिणाम आ रहे हैं वो बीजेपी के लिए काफी चौंकाने वाले हैं. 400 पार के नारे के साथ चुनाव प्रचार में उतरी बीजेपी को 300 के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है. इधर उत्तर प्रदेश में तो बड़ा उलटफेर हुआ है. कहां 80 में से 70 से ज्यादा सीटें जितने का दावा कर रही बीजेपी आधे से भी कम में सिमटी हुई है और बमुश्किल से 30 पर बढ़त बनाए हुए है. ऐसा लगता है कि यूपी में दो लड़कों की जोड़ी हिट हो गई है. लेकिन इसमें अखिलेश यादव बढ़त बनाए हुए हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

असल में ताजा रुझानों के अनुसार उत्तर प्रदेश की 80 में से 40 सीटों पर इंडिया ब्लॉक आगे चल रहा है. वहीं, बीजेपी 33 सीटों पर आगे है. समाजवादी पार्टी 33 और कांग्रेस 7 सीटों पर आगे चल रही है. ये आंकड़े लगातार बदल रहे हैं. लेकिन यह तो तय है कि बीजेपी ने जितना दावा किया था उतनी सीटें उनकी नहीं आ रही हैं. 


पीडीए फार्मूले पर डटे रहे अखिलेश
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में इस बार बीजेपी के खिलाफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादब अपने पीडीए फार्मूले पर डटे रहे और टिकट बंटवारे में भी उन्होंने इस बात का ध्यान रखा. यहां तक कि कई बार उन्होंने नाम के ऐलान के बाद भी प्रत्याशियों का नाम बदल दिया. उधर माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी का साथ कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ. राहुल गांधी लगातार अखिलेश के साथ नजर आए.


गैर यादव+OBC का फॉर्मूला हो गया हिट
टिकट बंटवारे में भी अखिलेश ने गैर यादव और ओबीसी का ख्याल रखा. यहां तक कि सपा की तरफ से यादव उम्मीदवार उतने ही रहे जो जिताऊ थे. इसी तरह अन्य उम्मीदवारों में उन्होंने ओबीसी का ख्याल रखा. अखिलेश की बारीकी का आलम यह था कि चर्चित कैसरगंज सीट पर उन्होंने ब्राम्हण उम्मीदवार को उतार दिया क्योंकि उस सीट पर ब्राम्हण मतदाता सबसे ज्यादा हैं.


कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा
वैसे तो राहुल और अखिलेश पहले भी साथ आ चुके थे लेकिन इस बार गठबंधन बनने में भी समस्या आ रही था. फिर आखिरकार प्रियंका के हस्तक्षेप के बाद गठबंधन हुआ और कांग्रेस ने सपा के साथ मिलकर चुनाव प्रचार शुरू किया. देखते ही देखते ये जोड़ी लोगों को पसंद आने लगी. हुआ यह कि अखिलेश का पीडीए वाला नारा लोगों को पसंद तो आया ही साथ ही राहुल का 'जितनी आबादी, उतना हक' वाला नारा भी लोगों ने हाथोंहाथ लिया. 


इस तरह दोनों पार्टियां दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यकों को साथ लाने में कामयाब रहीं. उधर बीजेपी के आक्रामक प्रचार ने ही उसका बड़ा गर्क कर दिया. शायद यही कारण था कि चुनाव प्रचार के दौरान भी शुरुआत में आत्मविश्वास से लबरेज बीजेपी अपने उन मुद्दों पर सवार थी जिसमें विपक्ष बैकफुट पर नजर आ रहा था. लेकिन देखते ही देखते और आखिरी दौर आते-आते बीजेपी ने अपने सारे मुद्दे बदल दिए थे. अब वही प्रभाव चुनाव परिणाम में भी दिख रहा है.