NDA Government Formation: एनडीए संसदीय दल के नेता चुने जाने के बाद नरेंद्र मोदी रविवार 9 जून को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे. सरकार बनाने का दावा पेश करने राष्ट्रपति भवन जाने से पहले नरेन्द्र मोदी भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के आवास पर पहुंचे और उनसे मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने आडवाणी से आशीर्वाद भी लिया.


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इसके अलावा पीएम मोदी ने भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मुलाकात की.


इसी साल केंद्र की मोदी सरकार ने लाल कृष्ण आडावाणी को भारत रत्न से नवाजा है. लालकृष्‍ण आडवाणी 5 बार लोकसभा और 4 बार राज्‍यसभा से सांसद रहे हैं. 3 बार भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष भी रहे चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लालकृष्ण आडवाणी को अपना गुरु मानते हैं. आइए एक नजर डालते हैं कि मोदी और आडवाणी के बीच किस तरह के राजनीतिक रिश्ते रहे हैं.


नरेंद्र मोदी और आडवाणी के बीच रिश्ते


लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी के बीच राजनीतिक रिश्ते में कई उतार-चढ़ाव आए. इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि 2003 में गुजरात दंगे के बाद नरेंद्र मोदी से मुख्यमंत्री पद छिनने से बचाने वाले आडवाणी ने 2013 में मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाने का विरोध किया था. इस कारण गुरु-शिष्य के रिश्तों में तल्खी आई जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी नहीं कम कर सके. इस तल्खी का असर यह हुआ कि साल 2017 में मोदी सरकार में आडवाणी की जगह रामनाथ कोविंद को देश का राष्ट्रपति बनाया.


2014 के लोकसभा चुनाव से पहले रिश्तों में आई दरार


साल 2012 में गुजरात विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी की चर्चा पूरे देश में जोरो पर शुरू हुई. इसी समय मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के लगातार मामले सामने आ रहे थे. नरेंद्र मोदी ने इसी का फायदा उठाकर यूपीए सरकार पर हमला करना शुरू कर दिया. 2014 के लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही नरेंद्र मोदी के पक्ष में माहौल अनुकूल हो गया.


ऐसे में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बना कि नरेंद्र मोदी के नाम पर ही लोकसभा का चुनाव लड़ा जाए. लेकिन इसके लिए आडवाणी तैयार नहीं हुए. 2009 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद प्रधानमंत्री पद की उम्मीद छोड़ बैठे आडवाणी ने एक बार प्रधानमंत्री पद के लिए दांव चलने की सोची. लेकिन माहौल को भांपते हुए बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को नरेंद्र मोदी के नाम चुनाव लड़ना चाहता था. लेकिन आडवाणी इसके लिए राजी नहीं थे. अंत में आडवाणी ने यह दांव चला कि नरेंद्र मोदी को राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना चाहिए. 



नरेंद्र मोदी बने बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार


इन सबके बीच पार्टी ने गोवा अधिवेशन बुलाया. अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए आडवाणी इस अधिवेशन में भी नहीं आए. लेकिन संघ और पार्टी ने फैसला ले लिया था. बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने चुनाव समिति के अध्यक्ष पद के लिए मोदी के नाम की घोषणा की. इसके अगले ही दिन आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया.


उन्होंने राजनाथ सिंह को पत्र में लिखा, " पिछले कुछ समय से मैं अपने आप को पार्टी में सहज नहीं पा रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि ये वही पार्टी है जिसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी ने खड़ा किया. पार्टी अपनी दिशा भटक चुकी है. " 


हालांकि, कभी मान-मनौव्वल के बाद आडवाणी मान गए और संघ प्रमुख मोहन भागवत से फोन पर बात करने के बाद आडवाणी ने अफना इस्तीफा वापस ले लिया था. गोवा अधिवेशन के कुछ दिनों बाद ही नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया.


1984 में दो सीटों पर सिमट गई पार्टी को रसातल से निकाल कर भारतीय राजनीति के केंद्र में पहुंचाने वाले आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की हसरत कभी छिपी नहीं रही. लेकिन नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से अपनी लॉबिंग करते हुए आडवाणी को साइडलाइन किया, यही गुरु-शिष्य की जोड़ी के रिश्ते में कड़वाहट की कारण बन गई.


संघ ने भी बना ली दूरी


लालकृष्ण आडवाणी कभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के काफी करीब माने जाते थे लेकिन इस सबका आलम यह हुआ कि संघ ने भी धीरे-धीरे आडवाणी से दूरी बनानी शुरू कर दी.