Babu Jagjivan Ram History: आपको याद होगा, हाल में जब कांग्रेस का घोषणापत्र जारी किया जा रहा था, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बाबू जगजीवन राम को याद किया था. 5 अप्रैल को उनकी जयंती थी. मैनिफेस्टो जारी कर खरगे ने कहा था कि ऐसे दिन हम यह घोषणापत्र गरीबों के लिए समर्पित कर रहे हैं. कौन थे बाबू जगजीवन राम? वह देश के उप प्रधानमंत्री रहे. हालांकि आज की पीढ़ी को शायद ही पता हो कि एक समय यह दिग्गज दलित नेता प्रधानमंत्री बनने के प्रबल दावेदार थे. 


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नेहरू सरकार में मंत्री


किस्सा शुरू होता है आजादी के समय से. स्वतंत्रता सेनानी जगजीवन राम तब जवाहरलाल नेहरू सरकार की पहली कैबिनेट में मंत्री बने. बांग्लादेश के निर्माण के समय वह रक्षा मंत्री थे. कृषि मंत्री भी रहे. प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे फिर अचानक ऐसा कुछ हुआ कि उनका राजनीतिक करियर ढलान पर चला गया. 


कांग्रेस छोड़ी और...


कहा जाता है कि आपातकाल के समय इंदिरा गांधी ने उनसे वादा किया था कि अगर उन्हें प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा तो वह अगले पीएम होंगे. हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ. 1977 तक वह कांग्रेस में रहे. आखिर में नाराज होकर अलग पार्टी बना ली. वह और हेमवती नंद बहुगुणा ने कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी बनाई थी. हालांकि जयप्रकाश नारायण की सलाह पर जनता पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ा. 


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जनता पार्टी सत्ता में आई तो उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए चलने लगा. हालांकि वह पीछे रह गए और पीएम मोरारजी देसाई बन गए. बाबू जगजीवन राम इतने नाराज हुए कि शपथ ग्रहण में ही नहीं गए. जयप्रकाश नारायण ने समझाया तो कैबिनेट में शामिल हुए और उप प्रधानमंत्री बने. 


एक मैगजीन में तस्वीर छपी


1978 में एक दिन एक मैगजीन में उनके बेटे की आपत्तिजनक तस्वीर प्रकाशित हो गई. वह एक महिला के साथ देखे गए थे. उस समय इंदिरा गांधी की बहू मेनका गांधी पत्रिका 'सूर्या' की संपादक थीं. कुछ लोगों ने इसे साजिश माना. वैसे, बाद में जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम ने उस महिला से शादी कर ली थी. हालांकि इस खबर ने उनकी छवि खराब कर दी. 


मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई. आगे चौधरी चरण सिंह पीएम बने. उनकी सरकार गिरने पर जनता पार्टी ने 1980 में जगजीवन राम को ही प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया लेकिन इंदिरा की वापसी हो गई और राजनीतिज्ञों के 'बाबूजी' का सपना कभी पूरा नहीं हो सका. 


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बिहार और देशभर के लोग आज भी उन्हें 'बाबूजी' कहते हुए सम्मान से याद करते हैं. उन्होंने जाति आधारित भेदभाव का काफी सामना किया था. 1986 में उनका निधन हो गया. लोकसभा की स्पीकर रहीं मीरा कुमार उनकी बेटी हैं.  


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