Aparshakti Khurana Web Series: जिस बात का डर था, अंततः वही हुआ. इंटरवेल के बाद वेब सीरीज जुबली डुबकी लगा जाती है. कहानी का थ्रिल नीचे आ जाता है. कसावट कमजोर पड़ जाती है. जो किरदार पहले हिस्से में निखरकर आ रहे थे, वह मुख्य सितारों के भंवर में खो जाते हैं. कहानी चुनिंदा किरदारों पर केंद्रित हो कर रह जाती है. उसका एक ही लक्ष्य दिखता है कि कब अंत तक पहुंचा जाए. परंतु रफ्तार धीमी से बहुत धीमी हो जाती है. कोर्ट रूम ड्रामा अर्थहीन साबित होता है. क्लाइमेक्स बेहद निराश करता है. जुबली के पहले हिस्से को देखते हुए उत्सुकता का जो ग्राफ ऊपर उठता है, दूसरे हिस्से में धड़ाम से नीचे आ गिरा है.


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कहानी में जो बाकी बचा
ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर आई जुबली की कहानी देश की आजादी (1947) के दौर में बॉम्बे टॉकीज, हिमांशु राय, देविका रानी और अशोक कुमार जैसे सितारों से प्रेरित है. रॉय टॉकीज के मालिक श्रीकांत रॉय (प्रसेनजित चटर्जी) अपने स्टूडियो से देश को नया सितारा देते हैं, मदन कुमार. मदन कुमार इसी स्टूडियो में कभी लैब असिस्टेंट था, जिसका असली नाम है बिनोद दास (अपारशक्ति खुराना). महत्वाकांक्षी बिनोद लखनऊ में मदन कुमार के रूप में रॉय की पहली पसंद, जमशेद खान (नंदीश सिंह संधू) पर जानलेवा हमला करता है और अंतत जमशेद बलवाइयों के हाथों मारा जाता है. एक जासूस तस्वीरों के साथ यह खबर श्रीकांत रॉय तक पहुंचा चुका है. रॉय की एक्ट्रेस पत्नी सुमित्रा देवी (अदिति राव हैदरी) जमशेद खान से प्यार करती है. उस तक भी बिनोद दास की हकीकत पहुंच जाती है. सुमित्रा देवी बिनोद दास को मीडिया में बदनाम करना और अदालत से सजा दिलाना चाहती है. क्या बिनोद दास का राज दुनिया के सामने आएगा और उसे सजा होगीॽ सीरीज की दूसरी मुख्य कहानी युवा निर्देशक-एक्टर जय खन्ना (सिद्धांत गुप्ता) की है, जो तेजी से उभरते हुए अपनी चमक के साथ मदन कुमार को टक्कर दे रहा है. जय और मदन के बीच जिस्मफरोशी के धंधे से फिल्मों में आकर हीरोइन बनी नीलोफर (वमिका गब्बी) को लेकर भी तनातनी है. पोस्ट-इंटरवेल, छठे से दसवें एपिसोड तक जुबली इन्हीं दो ट्रेक पर आगे बढ़ती है.


गायब होते सिरे
जुबली की कहानी में आगे बढ़ते हुए झोल आ जाते हैं. फाइनेंसर शमशेर सिंह वालिया (राम कपूर) और नीलोफर का ट्रेक अचानक गायब हो गया. जबकि पहले हिस्से में आप देख चुके हैं कि नीलोफर शमशेर के दिए बंगले में ऐशो-आराम के साथ रहती है. वह उस पर पैसा लुटाता है. दोनों रंगरेलियां मनाते हैं. यही शमशेर जय खन्ना की फिल्मों का प्रोड्यूसर-फाइनेंसर है. मगर शमशेर-नीलोफर-जय का कोई त्रिकोण नहीं बनता. नीलोफर को लेकर शमशेर-जय के बीच कोई बात ही नहीं होती. इसी तरह जमशेद खान का मेक-अपमैन (नरोत्तम बेन) जो बिनोद दास को सजा दिलाने के लिए पहले हिस्से में जमीन-आसमान एक करता है, वह दूसरे हिस्स में सिरे से गायब है. श्रीकांत रॉय की मूंछें दूसरे हिस्से में साफ कर देने के पीछे कोई तर्क समझ नहीं आता. इस तरह की और खामियां कहानी तथा किरदारों में उभर आती हैं. सीरीज की राइटिंग, जो पहले हिस्से की ताकत बनती है, वही दूसरे को कमजोर देती हैं.


अदिति और अपारशक्ति
जुबली सेकेंड हाफ में पूरी तरह से कलाकारों के परफॉरमेंस पर निर्भर है. लेकिन एक समय के बाद यह परफॉरमेंस कहानी में ऊर्जा बनाए रखने में नाकाम होता है. निश्चित रूप से दूसरे हिस्से में अदिति राव हैदरी निखरते हुए अपनी चमक छोड़ती हैं. अपारशक्ति खुराना पहले हिस्से की तरह ही अपना प्रभाव बनाए रखने में कामयाब हैं. इसमें संदेह नहीं कि अपारशक्ति ने अपने अब तक के करियर का बेस्ट परफॉरमेंस दिया है. वमिका गब्बी के लिए भी यह बात कही जा सकती है. वमिका और राम कपूर दूसरे हिस्से में भी अपने किरदारों को बढ़िया ढंग से निभाते हैं. लेकिन राम कपूर के किरदार के साथ सीरीज न्याय नहीं करती. इस बीच दूसरे हिस्से में कहानी थोड़ी देर बाद ही लगभग ठहर जाती है, इसलिए अदिति राव हैदरी के अलावा किसी अन्य किरदार में विस्तार नजर नहीं आता. दूसरे भाग को देखने के बाद कुल मिलाकर जुबली औसत वेबसीरीज बन कर रह जाती है. अगर पहला हिस्सा प्रभावित करता है, तो दूसरा निराश. आपके पास समय है और 1950 और 1960 के दशक के हिंदी सिनेमा का माहौल देखना चाहते हैं, तो जरूर इस सीरीज को देख सकते हैं. कुल दस एपिसोड हैं, औसतन 50-50 मिनट के. ऐसे में तय है कि अंत तक टिके रहने के लिए आपको बहुत धीरज रखना होगा.


निर्देशकः विक्रमादित्य मोटवानी
सितारे : अपारशक्ति खुराना, प्रसेनजित चटर्जी, अदिति राव हैदरी, सिद्धांत गुप्ता, वमिका गब्बी, राम कपूर, नंदीश सिंह संधू, श्वेता प्रसाद बसु, नरोत्तम बेन
रेटिंग**1/2


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