Film Jewel Thief: अशोक कुमार हिंदी सिनेमा के वह पहले सुपरस्टार थे, जिन्होंने समय और उम्र के हिसाब से खुद को बदला तथा आगे चलकर चरित्र अभिनेता बने. मगर ऐसी गिनी चुनी ही फिल्में होंगी जिसमें उन्होंने विलेन का किरदार निभाया. उनमें से ही एक थी ज्वैल थीफ (1967). अशोक कुमार इसमें विलेन थे. यह एक जासूसी थ्रिलर थी, जिसमें अशोक कुमार के साथ देव आंनद, वैजयंती माला, तनुजा, हेलन तथा अंजू महेंद्रू की मुख्य भूमिकाएं थी. देव आंनद प्रोड्यूसर थे तथा उनके भाई विजय आंनद उर्फ गोल्डी ने इसे डायरेक्ट किया था. अशोक कुमार फिल्म में ज्वैल थीफ थे. जब विजय आनंद के दिमाग में ज्वैल थीफ की कास्टिंग का ख्याल आया तो उन्होंने सबसे पहले राज कुमार के बारे में सोचा. लेकिन राजकुमार ने यह कहकर मना कर दिया कि वह देव आंनद की किसी भी फिल्म में काम नहीं करेंगे.


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दिल की बात जुबां पर
राजकुमार के इंकार के बाद गोल्डी को इस रोल के लिए अशोक कुमार से बेहतर कोई कलाकार नजर नहीं आया. लेकिन अशोक कुमार को फिल्म के लिए राजी करना विजय आनंद के लिए टेढ़ी खीर था. अशोक कुमार जैसे-तैसे राजी तो हुए लेकिन उन्होंने तीन शर्तें रख दी. जब विजय आनंद ने ज्वैल थीफ के लिए अशोक कुमार को कास्ट करना चाहा, उसके कुछ ही समय पहले अशोक कुमार के हार्ट का ऑपरेशन हुआ था. देव आनंद ने विजय को दादामुनि से यह कहकर मिलवाया कि मेरा भाई आपको लेकर फिल्म बनाना चाहता है जिसमें टाईटल रोल में आप होंगे. विजय ने दादामुनी से कहा कि यह बहुत ही चैलेंजिंग रोल है. बस फिल्म की आखिरी रील में आप एक बुरे आदमी के कैरेक्टर में नजर आएंगे. लेकिन आपने एंटी हीरो वाले किरदार पहले भी निभाए हैं इसलिए आप यह रोल कर लेंगे. बल्कि मैं कहता हूं कि आपके सिवाय यह रोल और कोई नहीं कर पाएगा. ऐसा कहकर विजय आनंद ने अशोक कुमार को शीशे में उतार लिया.


11 से 5 और लंच ब्रेक
अशोक कुमार तैयार तो हो गए. पर उन्होंने इसके लिए शर्तें रखी. पहली यह कि वह न तो पर्दे पर किसी को मारेंगे और न कोई उन्हें मारेगा. ऐसा हुआ तो उन्हें दिक्कत हो जाएगी क्योंकि कुछ ही समय पहले हार्ट का ऑपरेशन हुआ है. गोल्डी तैयार हो गए. उनका कहना था कि फिल्म का विलेन एक इंटलेक्चुअल आदमी है. वह लोगों के दिमाग से खेलता है न कि फाइट करता है. इसके बाद दादामुनी की अगली शर्त थी कि वह मेकअप करके ठीक 11 बजे सेट पर पहुंच जाएंगे. इसके 2 घंटे बाद एक घंटे का लंच ब्रेक लेंगे और ठीक पांच बजे सेट से चले जाएंगे भले ही उस दिन की शूटिंग पूरी हो या न हो. गोल्डी ने दादामुनी की सारी शर्तें मानी और इस तरह से अशोक कुमार ने ज्वैल थीफ के लिए हामी भरी. यह हिंदी की क्लासिक फिल्मों में गिनी जाती है और आज भी हर साल हजारों लोग इसे देखते हैं.


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