Bollywood Legend: टाइम के इतने पक्के थे अमिताभ कि डरने लगी उनकी यह हीरोइन, स्टूडियो खुलने से पहुंची तो देखा...
Amitabh Bachchan Film: वक्त का पाबंद होना कोई अमिताभ बच्चन से सीखे. पचास साल से ज्यादा के करियर में उन्होंने जो सफलता पाई, उसके पीछे इस आदत का बड़ा हाथ है. ऐसा नहीं कि सफलता के साथ उन्होंने यह आदत बनाई, बल्कि इस आदत ने उन्हें सफलता के रास्ते पर बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई. यह किस्सा उनके शुरुआती दिनों का है.
Bollywood Rewind: फिल्म इंडस्ट्री में अगर किसी ऐक्टर को अपने और दूसरों के समय की कद्र है तो निश्चित ही अमिताभ बच्चन का नाम इसमें सबसे ऊपर आता है. इंडस्ट्री में पचास साल से ज्यादा बिताने के बावजूद उनकी समय की पाबंदी मशहूर है. वह हमेशा कहीं भी समय से पहले या ठीक समय पर पहुंच जाते हैं. उनके लेट होने के मौके शायद ही कहीं दर्ज होंगे. ऐसा नहीं है कि अमिताभ ने करियर में आगे बढ़ते हुए यह बात सीखी बल्कि सच यह है कि शुरुआत से ही वह समय के पक्के रहे हैं. यह बात वे पुराने लोग भी कहते हैं, जिन्होंने अमिताभ को उनकी पहली फिल्म से देखा. अमिताभ की फिल्में चली हों या न चली हों, वह हमेशा समय के साथ चले हैं.
हीरोइन रह गई हैरान
उनकी पहली सोलो हीरो फिल्म थी, संजोग. फिल्म में उनके साथ दो हीरोइनें थीं. माला सिन्हा और अरुणा ईरानी. फिल्म की शूटिंग अगस्त 1971 में शुरू हुई थी और 1972 में फिल्म रिलीज हुई थी. नए होन के बावजूद अमिताभ बच्चन हमेशा समय से सैट पर पहुंचने के आदी थे. माला सिन्हा उनसे कहीं सीनियर एक्टर थीं. लेकिन जब उन्होंने अमिताभ की समय की पाबंदी देखी, तो हैरान रह गईं. माला सिन्हा कभी-कभी लेट हो जाती थीं. चूंकि फिल्म में मुख्य कहानी इन दोनों की ही थी, इसलिए ज्यादातर हिस्सा इन पर ही शूट होना था. अमिताभ की समय से आने की आदत ने माला सिन्हा को इतना डरा दिया था कि वह सुबह जल्दी उठ कर छह बजे से ही मेक-अप कराने लगती थीं. कई बार तो उन्होंने यह भी देखा कि जब वह समय से पहुंचने के चक्कर में कभी जल्दी स्टूडियो पहुंचीं, तो वहां अमिताभ पहले से ही बंद गेट के बाहर चौकीदार के पास स्टूल पर बैठे मिले. अमिताभ और माला सिन्हा की यह पहली और आखिरी फिल्म थी, जिसमें उन्होंने साथ-साथ काम किया.
यह थी स्टोरी
संजोग की कहानी अमिताभ और माला सिन्हा की थी, जो परिवार की मर्जी के बिना एक मंदिर में शादी कर लेते हैं. हालात उन्हें अलग कर देते हैं और अमिताभ के परिवार वाले उसकी शादी अरुणा ईरानी से करा देते हैं. दस साल गुजर जाते है. माला सिन्हा जिले की कलेक्टर बनकर लौटती हैं और उनके दफ्तर में अमिताभ जूनियर हैं. धीरे-धीरे दोनों की पिछली जिंदगी के राज लोगों के सामने अफवाह की तरह फैलने लगते हैं. फिर सच सामने आ जाता है. अरुणा ईरानी भी अंततः सच्चाई जान जाती हैं. तब कैसे वह इस सच का सामना करती है, यही संजोग में दिखाया गया था.
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