Pavail Gulati and Saiyami Kher: कविता लिखने से पेट नहीं भरता. कविता लिखने से पैसा नहीं आता. पैसा पैसे से बनता है या फिर ताकत से. पैसे के अपने हिसाब-किताब और चाल-ढाल हैं. जरूरी नहीं कि छप्पर फटे तो पैसा बरसे. बरसते बादलों में घर उजड़ सकता है. टैलेंट से भी पैसे का कोई संबंध नहीं. हां, इतना जरूर है कि पैसा जिसकी मर्जी हो उसके पास आ सकता है. उसके पास भी, जो झुग्गी-झोपड़ियों की घोर गरीबी में पला-बढ़ा हो. कैसेॽ इसकी कई कहानियां हो सकती हैं. निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी अपनी वेबसीरीज फाड़ूः अ लव स्टोरी में इसी पैसे का खेल दिखाती हैं. हालांकि वेबसीरीज के टाइटल से धोखा होता है कि कुछ फाड़ू-सा सामने आ रहा है. मगर ऐसा नहीं है. यहां नाम पर न जाएं. यह एक सिंपल लव स्टोरी है, जिसे देखते हुए आपको शुरुआत में ही विश्वास करना मुश्किल होगा कि क्या ऐसा भी हो सकता हैॽ एक जमीन-जायदाद-खेतीबाड़ी वाला पिता अपनी बेटी को झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लड़के से प्यार करने और घर बसाने से नहीं रोकता. वह नहीं डरता कि बेटी का भविष्य क्या होगाॽ


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फड़कता कवि और सौम्य प्रेमिका
ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर आज रिलीज हुई फाड़ूः अ लव स्टोरी की राइटर सौम्या जोशी ने इस कहानी की शुरुआत नामदेव ढसाल और नारायण सुर्वे जैसे दिग्गज मराठी कवियों की बातों से की हैं. वह गणपति बप्पा को भी आरती की जगह गालिब के शेर पेश करती हैं. कोंकण के एक गांव में रहने वाली नायिका मंजरी (संयमी खेर) का पोस्ट मास्टर पिता बेटी को कविता और साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करता है और मुंबई के कॉलेज में भेजता है. वहीं मुंबई की झुग्गियों में ऑटोरिक्शा चलाने वाले पिता का बेटा अभय दुबे (पावेल गुलाटी) मंजरी की क्लास में है. अभय के अंदर शुरू से बहुत फायर दिखती है. उसके व्यवहार में, उसकी बातों में, उसके उठने-बैठने-चलने में. सौम्य-सुंदर मंजरी को वह किसी धधकते हुए कवि की तरह लगता है और वह उससे प्यार कर बैठती है. प्यार रफ्तार पकड़ता है और चिट्ठियों में मंजरी सब कुछ पिता को बताती जाती है. देखते-देखते तीन साल बीतते हैं और मंजरी अभय के पिता से मिलकर शादी की बात करती है. फिर उसके अपने माता-पिता आते हैं. यहां तक फाड़ूः अ लव स्टोरी में थोड़ा लव होता है और मंजरी-अभय कहानी के केंद्र में होते हैं, लेकिन शादी के बादॽ



झुग्गी से मल्टीस्टोरी तक
शादी के बाद इस कहानी का ट्रेक पूरी तरह से बदल कर अभय की महत्वाकांक्षा पर आ जाता है. उसे अब करोड़पति बनना है. सीरीज के सारे पात्र और घटनाएं इसी बात के इर्द-गिर्द घूमते हैं कि कैसे अभय के पास छप्पड़ फाड़कर आएगा. कैसे वह झुग्गी से निकाल कर परिवार को भव्य मल्टीस्टोरी में ले जाएगा. लिटरेचर पढ़ते हुए वह अचानक बिजनेस-मार्केटिंग में अपने चमकदार आइडियों से पैसेवालों को चमकाने लगता है. यहां सारा कुछ अभय के पैसा कमाने और रईस बनने पर फोकस हो जाता है और वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ता है. स्वाभाविक है कि जब वह आगे बढ़ेगा, तो प्यार और परिवार पीछे छूटता जाएगा. मगर अकूत संपत्ति वालों की दुनिया में जाकर भी कवि-हृदय अभय की आत्मा जिंदगा रहेगी और कुछ गलत काम नहीं करेगा. इस तरह से उसके सपनों और संपत्ति के बीच द्वंद्व पैदा हो जाएगा. अब अभय क्या करेगाॽ


बढ़ा-चढ़ा कर बात
शुरुआत में लगता है कि फाड़ूः अ लव स्टोरी शायद कुछ अलग बात करेगी. चौंकाएगी. परंतु ऐसा नहीं होता. आगे बढ़ती हुई सीरीज फार्मूलों की शिकार होकर दर्शक को थकाने लगती है. शुरुआती कविता जल्द ही खो जाती है. प्यार की चमक गायब हो जाती है. जीवन के संघर्ष हाशिये पर चले जाते हैं. सीरीज की बड़ी समस्या यह है कि हर बात को बहुत फैला-फैला कर दिखाती है. औसतन 40-40 मिनट के 11 एपिसोड जब खत्म होते हैं, तो आपको लगता है कि कई घटनाएं और किरदार बेवजह थे. सीरीज में एक लंबा ट्रेक बी ग्रेड फिल्मों के प्रोड्यूसर का है. उसका आना और जाना मूल कहानी में कुछ नहीं जोड़ता. जबकि दो-ढाई एपिसोड उसमें ही खर्च हो गए. राइटर ने विस्तार से लिखा था, तो अश्विनी अय्यर तिवारी को समेटना चाहिए था और उसके बाद का काम एडिटर के हिस्से था. मगर तीनों ही वेबसीरीज को खींचने में लगे रहे. खूब चबाई च्युंगम जैसी कहानी एक समय के बाद स्वाद खो देती है. पावेल गुलाटी और संयमी खेर का अभिनय अच्छा है और उन्होंने अपने काम को मेहनत से किया. लेकिन निर्देशक का कहानी और शूट पर नियंत्रण न रखना, वेब सीरीज के अंतिम नतीजे को निराशाजनक बनाता है.


निर्देशकः अश्विनी अय्यर तिवारी
सितारेः पावेल गुलाटी, संयमी खेर
रेटिंग **


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