Jubilee Review: आशिक की खातिर एक्ट्रेस बनी पति की दुश्मन, इस थ्रिलर सीरीज में लगेगा आपका मन
Bollywood: वेब सीरीज जुबली में आपको 1950 के दशक की फिल्म इंडस्ट्री और वह पुराना दौर दिखाई देता है. निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी ने बड़े धैर्य से इस थ्रिलर को रचा है, जिसमें एक महत्वाकांक्षी एक्टर कैसे विपरीत हालात में अपनी जगह बनाता है. मगर एक ऐसा राज भी है, जो उसे आसमान से जमीन पर ला सकता है.
Devika Rani Himanshu Rai: अगर आप हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के 1950 के दशक के इतिहास की झलकियां देखना चाहते हैं, तो जुबली आपके लिए है. देश की आजादी के आस-पास के वर्षों का वह दौर फिल्मों में स्टूडियो कल्चर (Studio Culture) वाला था. जिसमें एक्टर-डायरेक्टर-राइटर वेतन लेकर स्टूडियो में नौकरी करते थे. स्वतंत्र निर्माता मैदान में नहीं थे. स्टूडियो, सितारों को बनाने और बुझाते थे. अमेजन प्राइम वीडियो (Prime Video) पर वेब सीरीज रिलीज हुई है, जुबली. जुबली अब हिंदी सिनेमा से खो गया शब्द है. तीन-चार दशक पहले तक कोई फिल्म जब थियेटरों में 25, 50, 75 या 100 हफ्ते चल जाती थी तो उन्हें सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली, डायमंड जुबली और प्लेटिनम जुबली जैसे शब्दों द्वारा सम्मानित ढंग से आंका जाता था. जलसे होते थे. अब कोई फिल्म दो महीने सिनेमाघर में टिक जाए तो दुर्लभ है. निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी (Vikramaditya Motwane) की यह वेब सीरीज हिंदी सिनेमा के उस पुराने दौर का जश्न मनाती है.
पहले ये जान लें
जुबली की कहानी मूलतः बॉम्बे टॉकीज (1934-53) और इसके संस्थापक दंपति, हिमांशु राय (1892-1940) तथा देविका रानी (1908-1994) के रिश्तों से प्रेरित है. इस स्टूडियो ने हिंदी सिनेमा को शानदार फिल्में और दिग्गज एक्टर दिए. परंतु इसी का एक प्रसिद्ध किस्सा है कि देविका रानी (Devika Rani) फिल्म जीवन नैया के लीड एक्टर नजम-उल-हसन के साथ ‘गायब’ हो गई थीं. दोनों में प्यार था. दोनों को ढूंढा गया. वे कलकत्ता में मिले. वहां से उन्हें मुंबई (Mumbai) लाया गया. तब हिमांशु राय (Himanshu Rai) ने नजम को स्टूडियो का दरवाजा दिखाकर बॉम्बे टॉकीज के एक लैब असिस्टेंट कुमुदलाल कुंजीलाल गांगुली को हीरो बनाया. उन्हें नाम दिया, अशोक कुमार (Ashok Kumar). जुबली की कहानी का स्टार्टिंग पॉइंट यही घटना है.
पीरियड में तड़का
बॉम्बे टॉकीज से प्रेरित होकर जुबली के किरदारों को थोड़े सच और थोड़ी कल्पना से बुना गया है. यहां कहानी रॉय स्टूडियो की है. इसके मालिक हैं श्रीकांत रॉय (प्रसेनजित चटर्जी), उनकी एक्ट्रेस पत्नी हैं सुमित्रा देवी (अदिति राव हैदरी). रॉय स्टूडियो ने अपनी अगली फिल्म के लिए मदन कुमार नाम के एक नए चेहरे को लॉन्च करने घोषणा की है. यह मदन कुमार (Madan Kumar) है स्टेज आर्टिस्ट, जमशेद खान (नंदीश सिंह संधू). जमशेद और सुमित्रा देवी एक-दूसरे से प्यार करते हैं और देश विभाजन की विभीषिका के बीच लखनऊ (Lucknow) से कराची भाग जाना चाहते हैं. मगर श्रीकांत रॉय का वफादार लैब असिस्टेंट बिनोद दास (अपारशक्ति खुराना) उनके रास्ते में रोड़ा बनता है. बिनोद महत्वाकांक्षी है और उसे वफादारी का ईनाम मिलता है. श्रीकांत रॉय उसे जमशेद खान की जगह मदन कुमार बना देते हैं. फिल्मों का नया सुपर स्टार.
किरदारों का कमाल
जुबली का अंदाज थ्रिलर वाला है. श्रीकांत रॉय और सुमित्रा देवी के रिश्ते की जटिलता तथा बिनोद कुमार की चालाकियां कहानी को आगे बढ़ाती हैं. इसमें नए-नए किरदार जुड़ते हैं. फिल्मों का फाइनेंसर शमशेर सिंह वालिया (राम कपूर), जिस्मफरोशी करने वाली नीलोफर (वमिका गब्बी), विभाजन की त्रासदी को झेल रहा युवा निर्देशक जय खन्ना (सिद्धांत गुप्ता) और बिनोद दास का राज जानने वाला जमशेद खान का मेक-अपमैन मकसूद (नरोत्तम बेन). ये सारे किरदार जुबली की कहानी (Story) को रफ्तार देते हैं. जैसे-जैसे कहानी बढ़ती, ये किरदार निखरते हैं. इनकी कहानियां दिलचस्प होती जाती हैं. लेकिन जो बात सबसे आकर्षक है, वह अपारशक्ति खुराना (Aparshakti Khurana) का अपने किरदार में ढलते जाना. उनकी मेहनत यहां अलग निखरती है. जुबली देश विभाजन के बाद भारतीय फिल्म इंडस्ट्री पर अमेरिका (USA) और रूस (Russia) द्वारा कब्जे की कोशिशों को भी दिखाती है. दोनों क्रमशः अपने पूंजीवाद और साम्यवाद के लिए हिंदी इंडस्ट्री को अपने हित में इस्तेमाल करना चाहते हैं.
हो गया इंटरवेल
अमेजन प्राइम ने फिलहाल सीरीज के पहले पांच एपिसोड जारी करके इंटरवेल कर दिया गया है. अगले पांच एपिसोड 14 अप्रैल को रिलीज होंगे. आप एक बार में सारे एपिसोड देखना चाहते हैं, तो इंतजार करें. पहली पांच कड़ियां यही बताती है कि जुबली में प्यार और धोखा है. दोस्ती और वादा खिलाफी है. उम्मीद है तो निराशा भी है. किरदारों को अच्छे ढंग से रचा गया है. स्क्रिप्ट में कसावट है. लेकिन रफ्तार कहीं-कहीं धीमी है. खास तौर पर रिफ्यूजी कैंप का हिस्सा मुख्य कहानी से अलग हो जाता है. विक्रमादित्य मोटवानी ने बड़े धीरज से सीरीज को रचा है और उसका मजा लेने के लिए दर्शक को भी थोड़ा धीरज रखना पड़ेगा.
कुछ प्लस और एक माइनस
विक्रमादित्य आपको 1950 के दशक में ले जाने में कामयाब हैं. राइटिंग और कैमरावर्क अच्छा है. सैट डिजाइन बढ़िया है. पुराने जमाने के परिधान और फैशन, डीटेल्स के साथ निखरे हैं. यह सीरीज आज के दौर के बॉलीवुड से अलग फिल्मी दुनिया के अनुभव के लिए देखी जानी चाहिए. जहां लोग सहज थे. आम इंसानों की तरह थे. इंटरवेल के बाद कहानी क्या मोड़ लेगी, अगले शुक्रवार को पता चलेगा. एक ही सीरीज को दो हिस्सों में बांट देना, यह जुबली का निराशाजनक पक्ष है. कई लोगों को यह बात सीरीज बीच में ही छोड़ देने को प्रेरित कर सकती है.
निर्देशकः विक्रमादित्य मोटवानी
सितारे : अपारशक्ति खुराना, प्रसेनजित चटर्जी, अदिति राव हैदरी, सिद्धांत गुप्ता, वमिका गब्बी, राम कपूर, नंदीश सिंह संधू, श्वेता प्रसाद बसु, नरोत्तम बेन
रेटिंग***
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