Kantara Success: जब सब कर रहे कांतारा की तारीफ, इस डायरेक्टर ने कहा मेरी फिल्म से न करें तुलना
Kantara Rishabh Shetty: कांतारा के बारे में कहा गया कि इस फिल्म का रीमेक हिंदी समेत किसी भाषा में मुश्किल है. यह फिल्म पूरी तरह से लोकल होकर भी ग्लोबल है. यही वजह है कि 16 करोड़ में बनी इस फिल्म ने पूरी दुनिया में 400 करोड़ रुपये कमाए. परंतु सभी कांतारा से खुश नहीं हैं.
Kantara Story: आप कुछ भी बनाएं, सबको खुश करना मुश्किल होता है. किसी न किसी को आपकी बढ़िया चीज में कमी नजर आती है और वह आपसे नाखुश होता है. इस साल सबसे बड़ी सरप्राइज हिट बनकर उभरी कन्नड़ फिल्म कांतारा की भले ही चारों तरफ खूब वाहवाही हो रही हो, परंतु कुछ लोगों को यह फिल्म पसंद नहीं आई है. वे अपने-अपने हिसाब से कांतारा में कमियां गिना रहे हैं. इन्हीं लोगों में शामिल हैं 2018 में आई फिल्म तुंबाड के क्रिएटिव डायरेक्टर आनंद गांधी. शिप ऑफ थीसियस जैसी फिल्म के लिए चर्चा पाने वाले आनंद गांधी ने कहा है कि तुंबाड से कंतारा की तुलना करना ठीक नहीं है.
मर्दवादी और क्षेत्रीय सिनेमा
बीते कुछ समय में कई लोगों ने कांतारा के कंटेंट और इसकी सफलता की तुलना तुंबाड से की थी. इस पर आनंद गांधी ने ट्वटिर पर लिखा कि कांतारा जरा भी तुंबाड की तरह नहीं है. तुंबाड के पीछे मेरी सोच मर्दवाद और क्षेत्रीयता की जहरीली सोच से पैदा होने वाले हॉरर को दिखाने की थी. हमने इन विचारों का समर्थन नहीं किया, जबकि कांतारा इस सोच का जश्न मनाती है. उल्लेखनीय है कि कांतारा का हीरो शिवा (रिषभ शेट्टी) फिल्म में नायिका के साथ बलपूर्वक पेश आता है और गांव के कई मुद्दों पर उसकी सोच या तो हिंसा को बढ़ावा देती है या हिंसा का समर्थन करती है. शिवा का अपनी प्रेमिका को लगातार दबाना-डांटना-डपटना कई लोगों को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने इसकी आलोचना की. बावजूद इन मुद्दों के कांतारा ने दुनिया भर के बॉक्स ऑफिस पर 400 करोड़ रुपये का बिजनेस किया है.
इंटेलिजेंस का मजाक
आनंद गांधी से पहले कोलकाता के अवार्ड विनिंग डायरेक्टर अभिरूप बासु ने भी कांतारा की आलोचना की थी और कहा था कि यह फिल्म आम आदमी के इंटेलिजेंस का मजाक बनाती है. यह बहुत खराब ढंग से बनी लाउड फिल्म है. इसका कोई किरदार असली नहीं है और इसके प्लॉट में कई तथाकथित ट्विस्ट नकली नजर आते हैं. जब तक फिल्म क्लाइमेक्स पर पहुंची, मेरी इसमें दिलचस्पी खत्म हो गई थी. बासु ने इस बात के लिए भी फिल्म की आलोचना की कि आज के वैज्ञानिक और तर्कवादी युग में फिल्म लोगों के आपसी मामले सुलझाने में दैवीय हस्तक्षेप की वकालत करती है.
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