Lata Mangeshkar Controversy: स्वर कोकिला लता मंगेशकर का जीवन सादा-सरल था. गायकी के अलावा भी वह काफी क्रिएटिव थीं. उन्हें फोटोग्राफी करना पसंद था. साथ ही महंगी कारें भी उन्हें बहुत पसंद थीं. इन सबसे भी काफी पहले उन्हें महंगे पेन रखने का शौक था. लेकिन एक वाकया ऐसा हुआ जिसके बाद उन्होंने अपनी यह पसंद हमेशा के लिए त्याग दी. बात है 1949 में आई फिल्म महल के गानों के रेकॉर्डिंग के समय की. गीतकार नक्शाब को लताजी का पार्कर पेन इतना पसंद आया कि उन्होंने उस पेन की जमकर तारीफ कर दी. पेन पर लता मंगेशकर ने अपना नाम खुदवा रखा था.


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कुछ चल रहा है
तारीफ सुनकर लता मंगेशकर ने बिना सोचे-समझे उस पेन को नक्शाब को भेंट कर दिया. लता मंगेश्कर नहीं जानती थीं कि नक्शाब को यह पेन भेंट करके उन्होंने कितनी बड़ी सिरदर्दी मोल ले ली है. लताजी से पेन मिलने के बाद नक्शाब इंडस्ट्री में सबको पेन दिखा दिखाकर अफवाह फैलाने लगे कि ‘हमारे बीच कुछ चल रहा है.’ जब लता मंगेशकर के कानों तक यह बात पहुंची, तो वे दुविधा में पड़ गईं. लेकिन उन्होंने इस बात पर अपनी तरफ से कोई सफाई नहीं दी जिसके कारण नक्शाब मौके का पूरा-पूरा फायदा उठाने लगे. कुछ दिनों बाद प्रेम में आकंठ डूबे नक्शाब, लता मंगेशकर के घर जा पहुंचे.


करवा दूंगी टुकड़े
उस समय कमसिन लता अपनी बहनों के साथ आंगन में खेल रही थीं. नक्शाब को देखते ही लता मंगेशकर आग बबूला हो गई. वह नक्शाब को बाहर सड़क पर ले गईं और गुस्से में भरकर अपनी साड़ी का पल्लू कमर में खोंसते हुए बोली, ‘मुझसे पूछे बगैर यहां आने की हिम्मत कैसे की? अगर दोबारा यहां नजर भी आए तो टुकड़े-टुकड़े करवा के इसी नाली में फिंकवा दूंगी. मैं मराठा औरत हूं.’ इतने पर भी नक्शाब का तमाशा खत्म नहीं हुआ. जब भी कभी मौका मिलता वह लता को छेड़ने से बाज नहीं आते. एक दिन इस बात की शिकायत लता मंगेशकर ने संगीतकार खेमचंद प्रकाश से कर दी. इसके बाद खेमचंद प्रकाश ने नक्शाब की जमकर खबर ली.


ऐसे सुधारी भूल
खेमचंद्र प्रकाश पहले तो गुस्से में नक्शाब पर चिल्लाए और उनसे लता का पेन मांगा. नक्शाब से वो पेन छीनकर उन्होंने लता के हाथों में वापस दे दिया. इसके बाद उन्होंने गायिका सुषमा श्रेष्ठ के पिता भोला श्रेष्ठ से गुजारिश की कि अब से वो रिकॉर्डिंग खत्म होने के बाद लता को गोरेगांव से ग्रांट रोड उनके घर छोड़ आया करें. इस घटना के कुछ दिनों बाद लता मंगेशकर एक दिन चर्नी रोड स्टेशन उतरकर समुद्र किनारे पहुंच गईं. वहां उन्होंने पूरा जोर लगाकर बहुत दूर उस पेन को गहरे समुद्र में फेंक दिया और मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब कभी पार्कर पेन नहीं खरीदूंगी. अगर खरीदूंगी भी तो भूलकर भी उस पर अपना नाम नहीं लिखवाऊंगी!