Mala Sinha Struggle: वेटरन एक्टर माला सिन्हा (Mala Sinha) ने हिंदी सिनेमा में तब कदम रखा था जब दिग्गज आभिनेत्रियाँ जैसे नर्गिस, नूतन और मीना कुमारी का फिल्मी दुनिया पर कब्जा था. इसके बावजूद माला सिन्हा ने अपने काम के जरिए वो पहचान बनाई जो उनके फैन्स आज भी याद करते हैं. उन्होंने फिल्मों में तकरीबन चालीस साल तक काम किया है. माला सिन्हा ने यश चोपड़ा की धूल का फूल, प्यासा जैसी फिल्मों में अपने टैलेंट का लोहा मनवा दिया था. उन्होंने कई फिल्मों में ऐसे रोल करके चर्चा बटोरी जो कि महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हुए नजर आए. 1958 से 1965 तक वो हिंदी सिनेमा की हाईएस्ट पेड एक्ट्रेस हुआ करती थीं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


वहीं 1966 से 1967 में वो फीस के मामले में वैजयंतीमाला से केवल एक कदम पीछे थीं. वैसे माला सिन्हा के लिए ये सफर आसान नहीं था. स्ट्रगलिंग के दिनों में उन्होंने फिल्मों में जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष किया.उन्हें अपने चेहरे और फीचर्स के चलते भी ताने सुनने को मिले थे. उनके पिता बंगाल से थे और मां नेपाल से थीं जिसकी वजह से उन्हें नेपाली-इंडियन बाला कहकर पुकारा जाता था. शुरुआती दिनों में जब एक प्रोड्यूसर के पास अपना पोर्टफोलियो लेकर पहुंची थीं तो उन्हें अपने नेपाली फीचर्स के चलते काफी ताने सुनने को मिले और उनक मजाक भी उड़ाया गया.



उन्हें प्रोड्यूसर ने यहां तक कह दिया कि उनकी जैसी नाक है, उसकी वजह से वो कभी हीरोइन नहीं बन पाएंगी. इतना ही नहीं, उन्हें प्रोड्यूसर ने यहां तक कह दिया कि पहले जाओ अपनी शक्ल शीशे में देखकर आओ, फिर हीरोइन बनने के ख्वाब देखना. माला इन बातों से शुरुआत में तो उदास हो गईं और फिर उन्होंने कई बंगाली फिल्मो में काम किया. एक बार कोलकाता में उनकी मुलाकात गीता बाली से हुई. गीता उनकी खूबसूरती से इतनी प्रभावित हो गईं कि उन्होंने फिल्ममेकर केदार शर्मा को फिल्म रंगीन रातें के लिए उनका नाम सुझा दिया. इसके कुछ समय बाद वो गुरु दत्त की प्यासा में दिखीं और फिर उन्होंने कभी पीछे मुडकर नही देखा.