India In Oscars: असली डाकू ने यह फिल्म बनाने में की थी डायरेक्टर की मदद, भारत ने भेजी थी ऑस्कर की रेस में
Shekhar Kapoor: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन करने वाले फिल्म निर्देशकों में शेखर कपूर शामिल हैं. यूं तो उन्होंने फिल्म मासूम (1983) से करियर शुरू किया था परंतु बैंडिंट क्वीन से पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया. फिल्म पर विवाद भी हुए, मगर आज भी यह देश-दुनिया में देखी जाती है.
Manoj Bajpayee Film: भारत सिनेमा में सबसे रीयलिस्टिक मानी जानी वाली फिल्मों में निर्देशक शेखर कपूर की बैंडिट क्वीन (1994) का नाम अव्वल है. डकैत फूलन देवी पर हुए अत्याचारों, उसके बदले और जीवन की इस कहानी को शेखर कपूर ने इतनी बखूबी बनाया कि सेंसर बोर्ड को इसे हरी झंडी दिखाने में पसीने छूट गए थे. फिल्म में ढेर सारे कलाकार थे, जिन्होंने आगे चलकर अपनी अलग पहचान बनाई और हिंदी सिनेमा में कई शानदार फिल्में कीं. फूलन देवी का रोल निभाने वाली सीमा बिस्वास के साथ यहां मनोज बाजपेयी, सौरभ शुक्ला, निर्मल पांडे, राजेश विवेक जैसे एक्टर सामने आए.
एक अजनबी
फिल्म को शेखर कपूर ने चंबल के बीहड़ों में शूट किया था और ज्यादा से ज्यादा चीजें रीयल रखने की कोशिश की थी. खास बात यह है कि चंबल में जहां पुलिस भी भटक जाती थी, वहां एक कुख्यात डैकत ने यह फिल्म बनाने में इस डायरेक्टर की मदद की थी. वह डकैत थे, मानसिंह. जो कभी फूलन देवी के साथी थे और जिन्होंने आत्म समर्पण करने के बाद सामान्य जीवन अपना लिया था. सौरभ शुक्ला ने बाद में बताया कि शूटिंग के दौरान उन्हें एक अनजबी यहां-वहां घूमता दिख रहा था. उन्हें समझ नहीं आया कि कौन है. वह व्यक्ति फिल्मी नहीं लग रहा था. सौरभ गुप्ता देखते थे कि बीच-बीच में वह आदमी शेखर कपूर के पास जाकर उनसे बातें करता, उन्हें कुछ सलाह वगैरह देता. यह देख कर सौरभ शुक्ला हैरान थे.
चौकन्नी निगाहें
एक दिन शाम को जिस कार से सौरभ शुक्ला होटल लौट रहे थे, तो वह व्यक्ति की उन्हीं की कार में बैठा. तब सौरभ शुक्ला को पता चला कि वह डकैत मानसिंह हैं. कुछ देर के लिए सौरभ हड़बड़ा गए. फिर पता चला कि यह डकैत अब सामान्य जीवन जी रहा है. बैंडिट क्वीन में मनोज बाजपेयी ने डाकू मानसिंह की भूमिका निभाई थी. इस रोल को निभाने के लिए मनोज बाजपेयी ने मानसिंह से मुलाकात थी और कुछ समय भी साथ बिताया था. मनोज बाजपेयी ने पाया कि सड़क पर घूमते या यात्रा करते वक्त मानसिंह की आंखें चारों तरफ घूमती हुईं चौकन्नी रहती थी कि कहीं कोई पुराना दुश्मन छुप कर गोली न चला दे. यह फिल्म 1995 भारत की तरफ से ऑस्कर में भेजी गई थी. कई लोगों का मानना है कि यह समय से पहले बनी फिल्म है. अगर आज यह बनी होती, तो इसे ऑस्कर अवश्य मिलता.
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