Top Ki Flop: 2023 में चालीस साल हो जाएंगे इस फिल्म को; कभी थी फ्लॉप, आज है क्लासिक
Naseeruddin Shah Film: अक्सर क्लासिक कही जाने वाली फिल्मों के साथ यह हुआ है कि जब पहली बार रिलीज हुईं तो दर्शकों ने नकार दिया. निर्देशक कुंदन शाह की जाने भी दो यारो के बारे में भी यही सच है. अगले साल फिल्म को 40 बरस हो जाएंगे, हर दिन इसे चाहने वालों की संख्या बढ़ती जाती है.
Jaane Bhi Do Yaaro: जाने भी दो यारों 1983 में आई ऐसी फिल्म थी जिसे देखकर आज भी दर्शक अपनी हंसी रोक नहीं पाते. दरअसल इस फिल्म में भारतीय राजनीति, नौकरशाही, समाचार मीडिया और समाज में फैले भ्रष्टाचार पर एक गहरा व्यंग्य था. फिल्म उजागर करती थी कि सरकारी दफ्तरों में भ्र्ष्टाचार किस हद तक फैला हुआ है. यह फिल्म व्यंग्य से भरपूर एक ब्लैक कॉमेडी थी. निर्देशक कुंदन शाह ने इस फिल्म को सुधीर मिश्रा की मदद से लिखा था. फिल्म का निर्माण राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम ने किया था. नसीरुद्दीन शाह, रवि वासवानी, पंकज कपूर, ओम पुरी, सतीश शाह, सतीश कौशिक, पंकज कपूर, नीना गुप्ता तथा भक्ति बर्वे की फिल्म में मुख्य भूमिकाएं थी. थियेटरों में फिल्म रिलीज हुई तो लोगों ने इसे पसंद नहीं किया. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई. लेकिन बाद में टीवी तथा दूसरे माध्यमों पर इसे इतनी बार देखा गया कि ये एक कल्ट फिल्म बन गई.
दो फोटोग्राफर, एक मिशन
फिल्म एक अखबार के लिए काम करने वाले दो ऐसे भोले भाले ईमानदार फोटोग्राफरों (नसीरूद्दीन शाह-रवि वासवानी) की कहानी थी जिनके कैमरे में एक कत्ल कैद हो जाता है. फोटो खींचते-खींचते उन्हें शहर के सरकारी अधिकारियों, बिल्डिंग माफिया और मीडिया के बीच की भ्रष्टाचारी सांठगांठ का पता चलता है. अहम सूबूत है भ्रष्ट कमिश्नर डिमेलो की लाश और इस लाश की सबको तलाश है. यहीं से शुरू होता है कॉमेडी ऑफ एरर का सिलसिला. कुंदन शाह ने इन दोनों फोटोग्राफरों को आम आदमी का नुमाइंदा बनाकर दिखाया था कि किस तरह से आम आदमी भ्रष्ट लोगों की बलि चढ़ जाता है.
हैरान करेगी फीस
यह फिल्म सात लाख रुपए से भी कम बजट में बनी थी. इस छोटे बजट की फिल्म में केवल नसीरुद्दीन शाह को 15 हजार रुपए मिले, बाकी सबको तीन से पांच हजार तक की फीस मिली थी. नसीर के अलावा फिल्म में बाकी तमाम कलाकार नए थे. फोटोग्राफर बने नसीर अपने किरदार के लिए खुद का कैमरा लेकर आए थे. वह भी शूटिंग खत्म होते होते किसी ने चुरा लिया. फिल्म रिलीज हुई तो नहीं चली. इसका अंत किसी को पसंद नहीं आया. बहुत लोगों को लगा कि ये कॉमेडी होते हुए भी निराशावादी फिल्म थी, जबकि कइयों को इसलिए पसंद आई कि दोनों युवा नायकों ने अपने आदर्शों को नहीं छोड़ा. फिल्म को 1984 में नेशनल अवॉर्ड मिला और कुंदन शाह को बेस्ट डायरेक्टर तथा रवि वासवानी को बेस्ट एक्टर अवॉर्ड से नवाजा गया. फिल्म बाद में इतनी पसंद की गई कि इसके प्रिंट सुधार कर उनतीस साल बाद 26 अक्टूबर 2012 में इसे फिर से सिनेमाघरों में रिलीज किया गया था.
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