Arun Gawli Hindi News: मुंबई में दाऊद इब्राहिम को आज तक का सबसे बड़ा माफिया डॉन कहा जाता है. जिससे आम लोग तो छोड़िए, नेता-अभिनेता तक खौफ खाते थे. वह जिस बिजनेसमैन को कॉल कर देता था तो वह 2 दिन तक ढंग से खाना नहीं खा पाता था. लेकिन उसी मुंबई में एक माफिया ऐसा भी था, जिससे खुद दाऊद भी डरता था. वह माफिया अरुण गवली था. दगड़ी की चाल में रहने वाला अरुण गवली का पूरे मुंबई में क्राइम नेटवर्क फैला था. एक बार उसका मूड घूमा तो उसने दाऊद इब्राहिम के बहनोई को उसके होटल के बाहर ही मरवा दिया था. इस घटना से दाऊद इब्राहिम अंदर तक सिहर कर रह गया था और कभी गवली के सामने आने की हिम्मत नहीं की. अब वही अरुण गवली 16 साल बाद फिर से मुंबई में छुट्टा घूमने वाला है. 


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भाई की हत्या से भड़क उठा गवली


सबसे पहले आपको गवली और दाऊद की दुश्मनी की बात बताते हैं. 1990 के दौर में अरुण गवली के भाई पापा गवली की अज्ञात हमलावरों ने हत्या कर दी थी. उस दौर में गवली मुंबई का चर्चित डॉन बन चुका था और उसके सामने दाऊद इब्राहिम का गैंग उबरने की कोशिश कर रहा था. गवली को शक था कि उसके भाई की हत्या दाऊद इब्राहिम ने करवाई है. गुस्से में भभक रहे गवली ने दाऊद को ऐसा जख्म देने का फैसला किया, जिसे वह कभी न भूल सके.



करवा दिया दाऊद के बहनोई का मर्डर


उसने योजना बनाई और अपने शूटर्स को मिशन पर भेज दिया. अरुण गवली के 4 शूटर 2 बाइक पर सवाक होकर 26 जुलाई 1992 को मुंबई में इब्राहिम के बहनोई इब्राहिम पारकर के होटल के बाहर पहुंचे. इसके बाद होटल के सामने ही इब्राहिम पारकर को खुलेआम गोलियों से भून दिया गया. वह दाऊद की बड़ी बहन हसीना पारकर का शौहर था. अपने बहनोई की इस तरह दुस्साहसिक तरीके से हुई हत्या से दाऊद अंदर तक हिल गया.


दोनों में महीनों तक चली गैंगवार


गवली के खौफ की वजह से वह कई दिनों तक अपने घर से बाहर नहीं निकला. हालांकि अपने बहनोई का मर्डर उसे अंदर ही अंदर चुभ रहा था. उसने बदला लेने के लिए 1992 में मुंबई के जेजे अस्पताल में भर्ती गवली गिरोह के शूटर शैलेष हलदनकर को मरवा दिया. तमतमाए अरुण गवली ने भी उसके ही एक शूटर को मरवा दिया. इसके बाद दोनों के बीच हुई गैंगवार में दाऊद ने गवली के कई शूटर को मरवाया तो अरुण गवली ने भी पलटवार करते हुए उसके कई साथियों को मरवा दिया.



दाऊद के विदेश भागने से छाई शांति


दाऊद को गवली का इतना डर था कि वह कभी भी मुंबई में खुले तौर पर घूमने की हिम्मत नहीं जुटा सका. दोनों की इस दुश्मनी का फायदा उठाकर पुलिस ने भी दोनों गिरोहों के कई बदमाशों को एनकाउंटर में निपटा दिया. आखिर में दाऊद इब्राहिम ने हथियार डाल दिए और गवली के साथ युद्ध-विराम का अघोषित समझौता कर लिया. दाऊद के भारत से भागने के बाद दोनों गिरोह में शांति छा गई. 


अपने प्रत्याशी की हार नहीं आई पसंद


मुंबई में दाऊद इब्राहिम जैसे माफिया डॉन को भी भीगी बिल्ली बना देने वाला अरुण गवली बाद में अपनी अखिल भारतीय सेना बनाई और भायखला सीट से चुनाव लड़कर विधायक भी बन गया. उसका बुरा वक्त 2007 में शुरू हुआ. उसने मुंबई नगर निगम में अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारे. ऐसे ही एक उम्मीदवार थे अजीत राणे. उन्हें कमलाकर जामसंदेकर ने 376 वोटों से हरा दिया था. यह बात तत्कालीन विधायक और माफिया अरुण गवली को पसंद नहीं आई. उसने कमलाकर जामसंदेकर को मारने की साजिश शुरू कर दी.  



शूटर भेजकर विरोधी का करवा दिया मर्डर


2 मार्च 2007 की गवली के 4 शूटर 2 बाइकों पर सवार होकर जामसंदेकर के घर पहुंचे और ब्लैंक पॉइंट रेंज से गोलियां दाग दी. हमले के बाद चारों हमलावर वहां से भाग गए. घायल जामसंदेकर को अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. मामले की जांच के दौरान पुलिस को अरुण गवली की भूमिका का पता चला. इन्वेस्टिगेशन में सामने आया कि गवली को यह सुपारी सदाशिव सुर्वे और साहेबराव वनथराडे ने दी थी. इसके लिए अरुण गवली को 30 लाख रुपये का भुगतान किया गया था.


जेल में बंद गवली ने लगाई कोर्ट से गुहार


पुलिस ने इस मामले में अरुण गवली को अरेस्ट कर लिया. वर्ष 2006 में कोर्ट ने गवली को इस हत्याकांड में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुना दी. तब से गवली मुंबई की जेल में बंद है. अब वह 70 साल से ऊपर का हो चुका है. दूसरों में अपना खौफ भरने वाला अरुण गवली अब खुद जेल में तिल-तिल कर मर जाने की आशंका से डरा हुआ है. उसने सरकार के एक पुराने आदेश का सहारा लेते हुए हाईकोर्ट से खुद को छोड़े जाने की गुहार लगाई है. 



इस आदेश का लिया सहारा


वर्ष 2006 में सरकार की ओर से जारी आदेश के अनुसार जेल में बंद ऐसे कैदी, जिनकी उम्र 65 साल से ज्यादा हो चुकी है, शरीर से अशक्त हो चुके हों और अपनी सजा को आधा काट चुके हों, उन्हें जेल से रिहा किया जा सकता है. अरुण गवली से इसी आदेश को आड़ बनाकर हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर खुद को छोड़े जाने की मांग की है. गवली का कहना है कि वह जेल में 16 साल बिता चुका है, उम्र 70 साल से ज्यादा हो गई. अब चलने- फिरने में भी दिक्कत है. लिहाजा उस पर रहम करते हुए रिहा कर दिया जाना चाहिए. 


फिर सड़कों पर दिखाई देगा माफिया


मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अरुण गवली को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है. साथ ही जेल प्रशासन से इस मामले में 4 हफ्ते में जवाब भी मांगा है. अदालत के इस आदेश के बाद मुंबई में दहशत का पर्याय रहा यह गैंगस्टर एक बार फिर चहलकदमी करने को तैयार है. हालांकि ढलती उम्र और गिरती सेहत की वजह से इस बार उसके तेवर शायद पहले की तरह तीखे न दिखाई दें.