उच्च शिक्षा आयोग बनाने का काम जारी, शिक्षाविदों से मांगे सुझाव: शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान
केंद्रीय मंत्री ने समागम में सिकंदर से जुड़े एक प्रसंग की चर्चा भी की, जिसमें उन्होंने कहा कि दुनिया जीतने के बाद भारत का रुख करने वाले सिकंदर को भी लौटना पड़ा था. वहीं जाते हुए उसने कहा कि इस देश को कोई बाहरी शक्ति पराजित नहीं कर सकती. इस देश को हराने के लिए इसके एजुकेशन सिस्टम को हराना अनिवार्य है.
Akhil Bhartiya Shiksha Samagam: अखिल भारतीय शिक्षा समागम विदाई सत्र के दौरान केंद्रिय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ऐलान किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पूरे देश में लागू करने के बाद के अब उच्च शिक्षा आयोग बनाने का काम जारी है. उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में शिक्षाविदों को भी अपने सुझाव देने चाहिए. इसके अलावा उन्होंने सभी शिक्षाविदों से अनुरोध किया कि हमें यह भी प्रयास करना होगा कि हम अपने भारत के एकलव्यों को ढूंढकर निकाल सकें.
बता दें कि अखिल भारतीय शिक्षा समागम का आयोजन तीन दिन तक किया गया, जिसमें 11 सत्रों के बाद शनिवार दोपहर को इसका विदाई सत्र आयोजित किया गया था. इस सत्र में भाग लेने वाले केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि शिक्षा समागम के इन 11 सत्रों में शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की राह में आने वाली चुनौतियों व अब तक इनमें मिलने वाली सफलताओं पर चर्चा की गई. इसके अलावा विशेषज्ञों द्वारा कई बेहतरीन सुझाव भी सामने आए हैं. उन्होंने बताया कि इस समागम के लिए देश भर के 380 संस्थानों के प्रमुखों को न्योता भेजा गया था, जिसमें से 350 प्रमुख समागम में शामिल हुए थे. उन्होंने आगे कहा कि समागम के दौरान सभी प्रमुखों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को समान रूप से लागू करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है.
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केंद्रीय मंत्री ने समागम में सिकंदर से जुड़े एक प्रसंग की चर्चा भी की, जिसमें उन्होंने कहा कि दुनिया जीतने के बाद भारत का रुख करने वाले सिकंदर को भी लौटना पड़ा था. वहीं जाते हुए उसने कहा कि इस देश को कोई बाहरी शक्ति पराजित नहीं कर सकती. इस देश को हराने के लिए इसके एजुकेशन सिस्टम को हराना अनिवार्य है. उन्होंने आगे कहा कि साल 1835 से देश में मैकॉले का एजुकेशन सिस्टम लागू हैं, जिसमें बदलाव कर शिक्षा व्यवस्था को जड़ों की ओर लौटाने का समय आ गया है.
उन्होंने शिक्षाविदों का आह्वान करते हुए अनुसंधान, अविष्कार और आंत्रप्रेन्योर तैयार करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि आज की इंडस्ट्री के अनुसार यूनिवर्सिटी को अपने पाठ्यक्रमों और सिस्टम में बदलाव करना होगा वरना आगे आने वाली चुनौतियां और अधिक गंभीर होती जाएंगी. इसके अलावा उन्होंने कहा कि हम ज्ञान दानी लोग हैं, हमें अब तनख्वाह और पेंशन से आगे बढ़कर मल्टी डायमेंशिनल, मल्टी डिसीप्लिनरी, फ्लेक्सिबिलिटी, क्रेडिट अरेंजमेंट और इंस्टीट्यूशन के जरिए फुलप्रूफ छात्र तैयार करने होंगे. भारत की क्षेत्रीय भाषाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अगर हम सिर्फ हिंदी, बांग्ला और तेलुगू को मिला दें तो हम दुनिया की सबसे बड़ी भाषा वाले देश बन सकते हैं.