Lord Shiva Trishul Damru Tripund Saanp and Nandi: हिंदू पौराणिक कथाओं में, भगवान शिव के प्रतिष्ठित प्रतीकों, जैसे त्रिशूल, डमरू, त्रिपुंड (माथे पर तीन क्षैतिज पट्टियां), सर्प और नंदी (बैल) की उत्पत्ति अक्सर विभिन्न किंवदंतियों और कहानियों से जुड़ी होती है. कई ग्रंथों में भगवान शिव के इन प्रतीकों के लेकर अलग-अलग संस्करण प्रस्तुत किए गए हैं. उन्हीं संस्करण के जरिए आज हम आपको यह बताएंगे कि आखिर भगवान शिव को त्रिशूल, डमरू, त्रिपुंड, सर्प और नंदी की प्राप्ति कैसे हुई थी.


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1. त्रिशूल: त्रिशूल भगवान शिव की शक्ति का प्रतीक है और अक्सर बुरी ताकतों के विनाशक के रूप में उनकी भूमिका से जुड़ा होता है. एक किंवदंती से पता चलता है कि शिव को समुद्र मंथन के दौरान भगवान विष्णु से त्रिशूल उपहार के रूप में मिला था. वहीं, एक अन्य किंवदंती में उल्लेख है कि शिव को त्रिशूल देवी दुर्गा से प्राप्त हुआ था, जिन्होंने इसका उपयोग राक्षस महिषासुर के खिलाफ लड़ाई में किया था.


2. डमरू: डमरू ताल और सृजन से जुड़ा एक छोटा ढोल के आकार का वाद्य यंत्र है. एक कहानी से पता चलता है कि भगवान शिव ने ब्रह्मांडीय ध्वनि उत्पन्न करने के लिए स्वयं डमरू का निर्माण किया, जिसने सृजन की प्रक्रिया (नाद बिंदु) शुरू की. डमरू की लयबद्ध थाप सृजन और विनाश के ब्रह्मांडीय चक्र का प्रतीक है.


3. त्रिपुंड: त्रिपुंड राख की तीन क्षैतिज धारियों को संदर्भित करता है, जिसे भगवान शिव अपने माथे पर लगाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, ये धारियां अस्तित्व के तीन मूलभूत पहलुओं - सृजन (ब्रह्मा), संरक्षण (विष्णु), और विनाश (शिव) का प्रतिनिधित्व करती हैं. वहीं, राख भौतिक जीवन की क्षणिक प्रकृति का भी प्रतीक है.


4. नंदी: नंदी पवित्र बैल है, जो भगवान शिव की सवारी और द्वारपाल के रूप में कार्य करते हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं में, नंदी को शिव का समर्पित अनुयायी माना जाता है. नंदी की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग कहानियां हैं, लेकिन एक आम कहानी यह है कि नंदी को भगवान ब्रह्मा ने बनाया था और बाद में शिव जी ने उन्हें अपने वाहन के रूप में चुना था.


5. सर्प: भगवान शिव हमेशा अपने गले में एक सांप को धारण करते हैं. यह सांप उनके गले का आभूषण भी है. शिव जी के गले में लिपटे इस सांप को नागराज वासुकी के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान नागराज वासुकी का ही प्रयोग रस्सी के रूप में किया गया था. वहीं, नागराज वासुकी की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनको अपने गले में एक आभूषण के रूप में धारण किया था.