Dussehra Special 2022: हम सभी जानते हैं कि पूरे भारत में दशहरे पर 'रावण' के पुतले जलाए जाते हैं. हालांकि, आपको जानकर हैरानी होगी कि महाराष्ट्र के अकोला जिले के संगोला गांव में पिछले ढाई सौ साल से रावण की पत्थर की एक मूर्ति है. इस गांव के सभी जाति और धर्म के लोग नियमित रूप से इस मूर्ति की पूजा भी करते हैं. दशहरे पर देश में रावण का अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन गांव में बड़े उत्साह से रावण की पूजा की जाती है.


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विजयदशमी (दशहरा) का अर्थ है असत्य पर सत्य की जीत या रावण राज्य पर राम राज्य की विजय. जिस दिव्य दिन पर भगवान राम ने रावण का वध किया था, उस दिन को विजयादशमी मनाई जाती है और पूरे भारत में रावण के पुतले जलाए जाते हैं. रावण कहते ही हमारी आंखों के सामने एक विलेन सा आ जाता है. हमने बचपन से ही रामायण से लेकर कई पोथ्यपुराणों तक रावण के कुकर्मों के किस्से सुने और पढ़े हैं.


इसलिए हम रावण को खलनायक, दुष्ट, दानव के रूप में जानते हैं, लेकिन अकोला जिले के पटूर तालुका के संगोला गांव में रावण की साढ़े चार फीट ऊंची काले पत्थर की मूर्ति किसी भी आम आदमी को हैरान कर देती है. राम राज्य में रावण पूजा एक ऐसी चीज है जो कई लोगों को आश्चर्यचकित कर देती है.


बता दें कि संगोला 1,500 लोगों का एक गांव है. रावण की मूर्ति के कारण इस गांव को "रावण का संगोला" के नाम से भी जाना जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि इस संगोला की रावण पूजा का इतिहास 200 से 250 साल पुराना है. इस गांव में रावण की मूर्ति कैसे आई, इसके बारे में ग्रामीण एक किंवदंती बताते हैं.


कहा जाता है कि पंचक्रोशी के बाबुलगांव के एक मूर्तिकार को गाँव के कुछ प्रमुख नागरिकों ने गांव के देवता के सामने "पेड़ के आकार की एक पत्थर की मूर्ति बनाने के लिए कहा. मूर्ति बनाने ने मूर्ति तो बनाई, लेकिन वह एक वृक्ष के स्थान पर दस मुख वाले अभिमानी व्यक्ति की प्रतिरूप बन गई. मूर्ति की रूप रेखा के बताए जाने के अनुसार ना मिलने से गांव के सभी लोग चिंतित हो गए, लेकिन अगर मूर्ति तैयार है, तो उसे लेना ही होगा, इसलिए मूर्ति का न्याय करने और गांव जाकर तय करने का फैसला किया गया कि अब आगे क्या करना है.


अंत में, जब ग्रामीणों ने गांव के द्वार पर एक नारियल तोड़ने और गांव में एक मूर्ति स्थापित करने के लिए सहमति व्यक्त की, तो इसके लेकर किसी के कोई समस्या नहीं थी और इसी प्रकार यह मूर्ति गांव में आ गई. बता दें कि सांगोला के लोगों को इस मूर्ति या रावण के प्रति कोई घृणा नहीं है. यहां तक कि विरोध के रूप में कभी किसी ने रावण की मूर्ति का मजाक भी नहीं उड़ाया है. साथ ही गांव वाले अपनी सुविधानुसार इसकी पूजा भी करते हैं. संगोल के लोगों ने शत्रु को भी मित्र मानने वाली इस संस्कृति में एक अध्याय जोड़ा है.