नई दिल्ली: अगर आपके सपने बड़े हों, तो उन सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत भी उस स्तर की करनी पड़ती है. सच कहा गया है कि सफलता की दौड़ व्यक्ति को स्वयं घोषित करनी होती है. ऐसे में कई बार उन सपनों को पूरा करने के लिए किया गया कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. इस बात का उदाहरण महाराष्ट्र के वरुण कुमार बरनवाल और बिहार के मनोज कुमार रॉय ने दिया है. जो कभी साइकिल का पंक्चर बनाने व अंडे बेचने का काम किया करते थे, वे आज अफसर के पद पर रहकर देश की सेवा कर रहे हैं. 


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हालांकि, दोनों ही अपने जीवन में बेहद गरीबी का सामना कर चुके हैं. दोनों ने अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए दुकान व रेहड़ी पर काम किया और इसी के साथ निरंतर प्रयास करते हुए यूपीएससी की परीक्षा पास की.


पंक्चर की दुकान से चलती थी रोजी-रोटी 
आईएएस वरुण कुमार बरनवाल (IAS Varun Kumar Barnwal) महाराष्ट्र के पालघर जिले के बोईसर के रहने वाले हैं. वरुण के पिता की साइकिल के पंक्चर बनाने की एक दुकान थी, जिससे पूरे परिवार की रोजी-रोटी चला करती थी. साल 2006 में वरुण ने कक्षा 10वीं की परीक्षा दी थी. परीक्षा समाप्त होते ही चार दिन बाद हार्ट अटैक चलते वरुण के पिता की अचानक मृत्यु हो गई थी, जिस कारण पूरे परिवार पर परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ा था.



शिक्षकों ने भरी 11वीं व 12वीं की फीस 
वरुण पढ़ाई में काफी अच्छे थे. इसी कारण से उनकी मां ने उन्हें पिती की मृत्यु के बाद भी पढ़ाई नहीं छोड़ने दी. वहीं वरुण ने भी पढ़ाई के साथ-साथ घर खर्च चलाने के लिए अपने पिता की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान संभाल ली. बता दें कि वरुण 10वीं कक्षा के टॉपर रहे थे, जिस कारण उनकी पढ़ाई के प्रति लगन के देखते हुए कक्षा 11वीं व 12वीं की फीस स्कूल के शिक्षकों ने मिलकर भरी थी. वहीं कॉलेज में दाखिले की फीस के 10 हजार रुपए उस डॉक्टर ने भरे थे, जिसने वरुण के पिता का इलाज किया था. इतनी मदद के बाद वरुण ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा.


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जॉब के साथ की यूपीएससी की तैयारी 
वरुण ने कॉलेज में भी टॉप कर अपने माता-पिता का नाम रोशन किया. कॉलेज में टॉप करने के बाद से ही वरुण को स्कॉलरशिप भी मिलने लगी, जिसके बाद उनके परिवार के आर्थिक हालात सुधारने लगी. इंजीनियरिंग के बाद उन्होंने जॉब करने का निर्णय लिया. साथ ही यूपीएससी की तैयारी भी शुरू कर दी. साल 2013 में उन्होंने 32वीं रैंक हालिस कर यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली और इसी के साथ गुजरात कैडर में आईएएस बन अपने सपने को पूरा कर दिखाया.


JNU में किया राशन पहुंचाने का काम
वहीं, बात करें मनोज कुमार रॉय (Manoj Kumar Roy) की, तो वे बिहार राज्य के सुपौल जिले के रहने वाले हैं. साल 1996 में मनोज जीवन में कुछ हासिल करने के लिए सुपौल से दिल्ली आ गए थे. दिल्ली में उन्होंने अपनी रोजी-रेटी चलाने के लिए अंडे और सब्जियों का ठेला लगाना शुरू कर दिया. इसके बाद वे जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में राशन पहुंचाने का काम करने लगे.


 


अंडे और सब्जियां बेचते हुए पूरी की ग्रेजुएशन 
इसी दौरान मनोज की मुलाकात बिहार के ही रहने वाले छात्र उदय कुमार से हुई. उन्होंने मनोज को अपनी पढ़ाई जारी रखने की सलाह दी, जिसके बाद मनोज ने दिल्ली विश्वविद्यालय के अरबिंदो कॉलेज के इवनिंग क्लासेस के बीए पाठ्यक्रम में दाखिला ले लिया. मनोज में अपने अंडे और सब्जियों का ठेला लगाना भी जारी रखा और ऐसे ही उन्होंने साल 2000 में ग्रेजुएशन पूरी कर ली. 


इसके बाद उदय की सलाह पर ही मनोज ने यूपीएससी करने की ठानी और परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी. साल 2005 में मनोज ने यूपीएससी का पहला अटेंम्पट दिया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए. सफलता ना हासिल होने पर भी वे निरंतर प्रयास करते रहे, जिस कारण उन्हें साल 2010 में यूपीएससी के चौथे अटेंम्पट के बाद सफलता प्राप्त हो गई. हालांकि, रैंक अधिक होने के कारण उन्हें इंडियन ऑर्डेनेंस फैक्ट्रीस सर्विस का कैडर दिया गया.