मूवी रिव्यू: अनन्या पांडेय की CTRL है एक एक्सपेरिमेंटल मूवी, कुछ के लिए सबक तो कुछ करेंगे खारिज
CTRL Movie Review: अपनी पहली वेब सीरीज `कॉल मी बे` के बार अनन्या पांडे विक्रमादित्य मोटवाने की साइबर थ्रिलर फिल्म CTRL में नजर आ रही हैं, जो हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो चुकी है और आप इस फिल्म को देखने का मन बना रहे हैं तो पहले इसका रिव्यू पढ़ लें.
निर्देशक : विक्रमादित्य मोटवाने
स्टारकास्ट: अनन्या पांडे, विहान समत, देविका वत्स, कामाक्षी भट्ट, सुचिता त्रिवेदी और रवीश देसाई
कहाँ देख सकते हैं: नेटफ़्लिक्स पर
क्रिटिक रेटिंग : 3
CTRL Movie Review: आप इस मूवी को या तो बीच में ही छोड़कर निकल जाएँगे, ख़ारिज कर देंगे या वाक़ई में इसे एक अच्छा प्रयास मानेंगे. जब भी कोई एक्सपेरिमेंट फ़िल्मकार करते हैं, ये ख़तरे हमेशा होते हैं. कभी ‘सेक्रेड गेम्स’ के ऐपिसोड्स और ‘जुबली’ जैसी शानदार सीरीज़ निर्देशित कर चुके विक्रमादित्य मोटवाने ने भी सोशल मीडिया में उलझे हुए आज की पीढ़ी के युवाओं की ज़िंदगी पर फ़िल्म बनाने का ख़तरा लिया है.
कहानी है एक दूसरे के प्यार में खोये दो सोशल मीडिया इनफ़्ल्यूएंसर्स नेल्ला यानी नलिनी अवस्थी (अनन्या पांडे) और जो (विहान समत) की. दोनों अपनी हरकतों से खूब फ़ॉलोवर्स कमा रहे हैं, और पैसे भी कि अचानक नेल्ला जो को किसी और लड़की को किस करते देख लेती है. उसके बाद तो वो पागल हो जाती है. तुल जाती है उसे अपनी ज़िंदगी की हर याद से मिटाने की.
अनन्या पांडे की साइबर थ्रिलर फिल्म CTRL
ऐसे में एक ऐप्प उसकी मदद करता है, जिसका नाम फ़िल्म का टाइटल है ‘CTRL’ यानी की बोर्ड में प्रयुक्त होने वाला कंट्रोल के लिए शब्द. इसमें उसे एक AI असिस्टेंट मिलता है, जो हर वीडियो हर फोटो, जो क़रीब 1.5 लाख थे, से जो का चेहरा मिटाने के लिए 90 दिन बताता है. धीरे धीरे ये ऐप नेल्ला के सारे सिस्टम पर कंट्रोल कर लेता है, यहाँ तक कि उसके मोबाइल से एक मेसेज भेजकर दो डिलीट भी कर देता है.
कहानी तब गंभीर मोड़ लेती है, जब जो भी फोटो वीडियोज की तरह ही ग़ायब हो जाता है क्योंकि वह एक सोशल मीडिया कंपनी के कंपनी के किसी सीक्रेट प्रोजेक्ट की डिटेल्स जान गया था. ये तो आप मूवी में जानेंगे कि क्या था वो सीक्रेट प्रोजेक्ट और क्यों गिर रही थीं उसके लिए लाशें और क्या उसके ज़रिये लगातार इंटरनेट पर निर्भर होती जा रही हमारी ज़िंदगी के लिए कुछ सबक़ भी देती है ये मूवी.
मूवी का सबसे बेहतरीन हिस्सा
मूवी का सबसे बेहतरीन हिस्सा है मूवी के आख़िरी दस मिनट, जो एक इंफ्ल्युएंसर की अचानक बेनाम होती ज़िंदगी और बेबसी को दिखाते हैं और नये एआई असिस्टेंट से नेल्ला के रिश्ते में रोमांटिक इमोशंस को भी. वैसे ही ख़राब था फ़िल्म के सबसे रहस्यमईं हिस्से पर अंत तक पर्दा डाले रहना, मुख्य खलनायक जो एक सोशल मीडिया कंपनी का मालिक था, के रोल के लिए गुंडों जैसे बदरंग दाँतों वाले कलाकार को चुनना और कहानी में एक पत्रकार को इतना लाचार दिखाना.
फिल्म के कुछ लूप होल्स
एक पत्रकार चाहे वो फ्री लॉन्सर ही क्यों ना हो, उसके पास ढेर रास्ते होते हैं, जो सुबूत होने पर कुछ भी कर सकता है. लेकिन यहां तो विक्रमादित्य ने उसका चेहरा तक नहीं दिखाया, खलनायक आर्यन (रवीश देसाई) को भी एक सीन में ही दिखाया. अनन्या के पिता और जो की बहन सूजी तो मानो फ़िल्म में होकर भी नहीं थे. ऐसा लगा मानो फ़िल्म निख़िल द्विवेदी ने नहीं अनन्या पांडे ने प्रोड्यूस की हो. फ़िल्म के 90 फ़ीसदी फ़्रेम अनन्या के नाम हैं. ऐसा तो कंगना ख़ुद निर्देशक होकर नहीं करती.
फिल्म की कुछ अच्छी बातें
बावजूद इसके फ़िल्म सोशल मीडिया, इंटरनेट और निजी डेटा चोरी के साइड इफ़ेक्टस की तरफ़ आगाह करती है. छोटे शहर के युवाओं को ये यूथफ़ुल मूवी पसंद आयेगी और अनन्या के फ़ैन्स को भी. लेकिन स्क्रीन पर काफ़ी पढ़ना पड़ेगा, उसके लिए तैयार रहिए. अनन्या को वैसे भी एक्टिंग के लिए इस मूवी में काफ़ी मौक़ा मिला है, ऊनके साथ विहान को भी, क्योंकि बाक़ी किरदारों को विक्रमादित्य मोटवाने ने मानो कंट्रोल ऑल्ट डिलीट ही कर दिया है.
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