Dadasaheb Phalke Award: दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख को मिला दादा साहब फाल्के अवॉर्ड
Dadasaheb Phalke Award to Asha Parekh: वेटेरन एक्ट्रेस आशा पारेख को हाल ही में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया है. फिल्म जगत में अपने उत्कृष्ट योगदान के चलते ये अवॉर्ड उन्हें दिया गया है.
Dadasaheb Phalke Award 2022: मनोरंजन जगत की वेटेरन एक्ट्रेस आशा पारेख को को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. फिल्म जगत में उनके उत्कृष्ट योगदान की वजह से ही उन्हें अवॉर्ड से नवाजा गया है. आशा पारेख (Asha Parekh) ने अपने फिल्मी करियर में बहुत सी बेहतरीन फिल्में की हैं, जिन्होंने बॉलीवुड को एक नए आयाम तक पहुंचाया है. आपको बता दें, दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रतिवर्ष दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) के नाम पर दिया जाता है, जिन्हें 'भारतीय सिनेमा के पिता' के रूप में जाना जाता है. पिछले साल इस अवॉर्ड से रजनीकांत को सम्मानित किया गया था और इस साल यह अवॉर्ड आशा पारेख को मिला है.
केंद्रीय मंत्री ने दी जानकारी
समाचार एजेंसी ANI ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के हवाले से कहा कि दादा साहब फाल्के पुरस्कार इस साल प्रसिद्ध अभिनेत्री आशा पारेख को दिया जाएगा. वह सिनेमा की सेवाओं के लिए 1992 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म श्री से सम्मानित भी किया जा चुका है.
10 की उम्र में की करियर की शुरुआत
आशा पारेख को हिंदी फिल्मों के इतिहास में सबसे प्रभावशाली अभिनेत्रियों में से एक के रूप में माना जाता है. पारेख का फिल्मी करियर 1960 और 1970 के दशक के बीच चरम पर था. आशा पारेख ने अपने करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की थी और उन्हें फिल्म निर्माता बिमल रॉय ने फिल्म 'मां '(1952) में कास्ट किया था, जब वह सिर्फ 10 साल की थीं. कुछ फिल्मों के बाद, एक्ट्रेस ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए ब्रेक लिया और फिल लीड एक्ट्रेस के रूप में लौटीं. बतौर लीड एक्ट्रेस उनकी पहली फिल्म थी 'दिल देके देखो' (1959). इस फिल्म में उनके साथ थे शम्मी कपूर और इस डायरेक्ट किया था नासिर हुसैन ने.
आशा की हिट फिल्में
आशा और हुसैन ने एक साथ कई हिट फिल्में दीं - 'जब प्यार किसी से होता है' (1961), 'फिर वही दिल लाया हूं' (1963), 'तीसरी मंजिल' (1966), 'बहारों के सपने' (1967), 'प्यार का मौसम' (1969), और 'कारवां' (1971). राज खोसला की 'दो बदन' (1966), 'चिराग' (1969) और 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' (1978) और शक्ति सामंत की 'कटी पतंग' के साथ उनकी स्क्रीन इमेज में बदलाव आया और उन्हें गंभीर, दुखद भूमिकाओं में उनके प्रदर्शन के लिए जाना जाता था.
टीवी जगत में भी आजमाया हाथ
आशा पारेख ने गुजराती, पंजाबी और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. कुछ समय बाद उन्होंने टेलीविजन का माध्यम अपनाया और अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की. उन्होंने गुजराती धारावाहिक 'ज्योति' (1990) का निर्देशन किया और 'पलाश के फूल', 'बाजे पायल', 'कोरा कागज' और 'दाल में काला' जैसे शोज का निर्माण किया.
भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान
आपको बता दें, दादा साहब फाल्के पुरस्कार भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान है. पिछले प्राप्तकर्ताओं में राज कपूर, यश चोपड़ा, लता मंगेशकर, मृणाल सेन, अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना शामिल हैं. देविका रानी पहली विजेता थीं, जबकि अभिनेता रजनीकांत प्रतिष्ठित सम्मान के सबसे हालिया विजेता हैं.
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