चालीस साल बाद फिर चली बंटवारे की `गर्म हवा`
चार दशक बाद एक बार फिर से फिल्म ‘गर्म हवा’ रिलीज की गई। यह फिल्म भारत-पाकिस्तान के विभाजन की पृष्ठभूमि पर बनी है। फिल्म विभाजन के समय के आगरा के एक मुस्लिम परिवार की दास्तान बयां करती है। इस फिल्म में मशहूर अभिनेता बलराज साहनी ने मुख्य किरदार सलीम मिर्जा की भूमिका निभाई, वहीं ए. के. हंगल और फारुख शेख भी फिल्म में अन्य मुख्य किरदार में दिखाई दिए हैं।
ज़ी मीडिया ब्यूरो/प्रवीण कुमार
नई दिल्ली : चार दशक बाद एक बार फिर से फिल्म ‘गर्म हवा’ रिलीज की गई। यह फिल्म भारत-पाकिस्तान के विभाजन की पृष्ठभूमि पर बनी है। फिल्म विभाजन के समय के आगरा के एक मुस्लिम परिवार की दास्तान बयां करती है। इस फिल्म में मशहूर अभिनेता बलराज साहनी ने मुख्य किरदार सलीम मिर्जा की भूमिका निभाई, वहीं ए. के. हंगल और फारुख शेख भी फिल्म में अन्य मुख्य किरदार में दिखाई दिए हैं।
फिल्म फाइनेंस कॉरपोरेशन के सहयोग से साल 1973 में बनी यह फिल्म आजादी के बाद पहली बार विभाजन की विकृतियों को उभारती है। फिल्म को तकरीबन चार दशक बाद फिर से रिलीज करने को लेकर निर्देशक एम.एस. सथ्यू ने कहा, 'मैं चाहता हूं कि आज के समय की पीढ़ी भी इस फिल्म को देखे और जाने कि उस समय वास्तव में आखिर हुआ क्या था।'
फिल्म ‘गर्म हवा’ बेहद सादगी और सच्चाई से विभाजन के बाद देश में रह गए मुसलमानों के द्वंद्व और दंश को पेश करती है। कभी देश की राजधानी रहे आगरा के ऐतिहासिक वास्तु शिल्प ताजमहल और फतेहपुर सिकरी के सुंदर, प्रतीकात्मक और सार्थक उपयोग के साथ यह मिर्जा परिवार की कहानी कहती है।
हलीम मिर्जा और सलीम मिर्जा दो भाई मां के साथ पुश्तैनी हवेली में रहते हैं। हलीम मुस्लिम लीग के नेता हैं और पुश्तैनी मकान के मालिक भी। सलीम मिर्जा जूते की फैक्ट्री चलाते हैं। सलीम के दो बेटे हैं बाकर और सिकंदर। एक बेटी भी है अमीना। अमीना अपने चचेरे भाई कासिम से मोहब्बत करती है। विभाजन की वजह से उनकी मोहब्बत कामयाब नहीं होती। हलीम अपने बेटे को लेकर पाकिस्तान चले जाते हैं। कासिम शादी करने के मकसद से आगरा लौटता है, लेकिन शादी की तैयारियों के बीच कागजात न होने की वजह से पुलिस उन्हें जबरन पाकिस्तान भेज देती है। दुखी अमीना को फूफेरे शमशाद का सहारा मिलता है, लेकिन वह मोहब्बत भी शादी में तब्दील नहीं होती।
दूसरी तरफ सलीम मिर्जा आगरा न छोडऩे की जिद्द पर अमीना की आत्महत्या और पाकिस्तानी जासूस होने के लांछन तक अड़े रहते हैं। संदेह और बेरूखी के बावजूद उनकी संजीदगी में फर्क नहीं आता। उन्हें उम्मीद है कि महात्मा गांधी की शहादत बेकार नहीं जाएगी। सब कुछ ठीक हो जाएगा।
सत्यजित राय ने इस फिल्म के बार में लिखा है, ‘विषयहीन हिंदी सिनेमा के संदर्भ में ‘गर्म हवा’ ने इस्मत चुगताई की कहानी लेकर दूसरी अति की। यह फिल्म सिर्फ अपने विषय की वजह से मील का पत्थर बन गई, जबकि फिल्म में अन्य कमियां थीं। सचमुच, इस फिल्म में तकनीकी गुणवत्ता और बारीकियों से अधिक ध्यान कहानी के यथार्थ धरातल और चित्रण पर दिया गया। सथ्यू की ‘गर्म हवा’ पहली बार विभाजन के थपेड़ों का हमदर्दी और स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ पर्दे पर पेश करती है।
‘गर्म हवा’ के निर्माण के बाद आरंभ में इसे सेंसरशिप की मुश्किलों से गुजरना पड़ा। सेंसर बोर्ड के अधिकारियों की राय थी कि ऐसे विषय से हम बचें। इसके विपरीत फिल्मकार और सचेत सामाजिक एंव राजनीतिक कार्यकर्ता विभाजन के बाद से दबे विषयों पर बातें करने के लिए तत्पर थे। छह महीनों तक फिल्म अटकी रही। दिल्ली में फिल्म के पक्ष में समर्थन जुटाने की कोशिश में राजनीतिक हलकों और सांसदों के बीच फिल्म का प्रदर्शन किया गया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सूचना प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल की पहल और समर्थन से फिल्म सेंसर मुक्त हुई और दर्शकों के बीच पहुंची।
‘गर्म हवा’ का आरंभ फिल्म को सही परिप्रेक्ष्य देता है। कास्टिंग रोल में आजादी का साल 1947 बताने के बाद भारत का अविभाजित नक्शा उभरता है। सबसे पहले महात्मा गांधी की तस्वीर आती है। फिर माउंनबेटेन और लेडी माउंटबेटेन के साथ महात्मा गांधी दिखते हैं। आजादी के संघर्ष में शामिल पटेल, नेहरू, जिन्ना की तस्वीरों के बाद पर्दे पर सत्ता हस्तांतरण की तस्वीरें, लाल किले से नेहरू का संबोधन, हर्ष और उल्लास की छवियों के बीच देश के विभाजित नक्शे को हम देखते हैं।