Phir Aayi Haseen Dilruba Review: फिर लौटी तापसी-विक्रांत की जोड़ी, ज्यादा लॉजिक ना लगायें; अच्छी टाइम पास है फिल्म
Phir Aayi Haseen Dilruba Review: फैंस काफी समय से तापसी पन्नू और विक्रांत मैसी फिल्म `फिर आई हसीन दिलरुबा` की रिलीज का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, जो खत्म हो चुका है. फिल्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो चुकी हैं. चलिए बताते हैं कैसी है फिल्म क्या है इसमें झोल-झोल और कितनी है ये मजेदार?
Phir Aayi Haseen Dilruba Review: जासूसी उपन्यास पढ़ने वालों के लिए ‘हसीन दिलरुबा’ सीरीज़ का ये सीक्वल लिखा गया है, लेकिन लॉजिक फ़िल्म से सिरे से ही ग़ायब है. बावजूद इसके कहानी को ऐसे बांधा गया है कि जो लोग ज़्यादा दिमाग़ लगाए बिना घर बैठकर नेटफ़्लिक्स पर देखेंगे उनके लिए बुरी टाइम पास नहीं है और वो भी तब जब उन्होंने नेटफ़्लिक्स पर ही उपलब्ध उसकी पहली फ़िल्म भी देख ली हो. पहली फिल्म की कहानी हिमाचल के ज्वालापुर की थी और इस बार ये कहानी उत्तर प्रेदश के आगरा की है.
क्या है फिल्म की कहानी?
जहां रानी कश्यप (तापसी) और रिशु सक्सेना (विक्रांत) आगरा में एक दूसरे के साथ नहीं रहते, लेकिन एक ही गली में अनजान बनकर रहते हैं. ताकि कोई रानी को ढूंढ भी ले तो रिशु जो पिछली मूवी में खुद के मरने की साजिश रच चुका है, के बारे में पता ना कर पाए. रानी मुमताज पार्लर चलाती है और रिशु एक कोचिंग में पढ़ाता है. कहानी में मोड़ तब आता है जब इंस्पेक्टर किशोर (आदित्य श्रीवास्तव) की मुलाकात अचानक रानी से हो जाती है.
वो रानी को थाने बुलाकर नील के मोंटू चाचा (जिम्मी शेरगिल) से करवाता है, जो वहीं पुलिस अफसर है. वो रानी से भतीजे नील का बदला लेने की बात कहकर रिशु का पता पूछता है और धमकी भी देता है. इस कहानी में इस बार एक नया किरदार भी शामिल हुआ है, जिसका नाम अभिमन्यु (सनी कौशल) है, जो किसी क्लिनिक में कंपाउंडर है और रानी पर फिदा है. पुलिस से बचने के लिए रानी उससे शादी कर लेती है. लेकिन एक रात वो भागती हुई थाने आती है और कहती है कि मेरा पति रिशु को मार देगा, उसे बचाओ.
कहानी में कहीं नहीं है लॉजिक
यानी खुद ही नील की हत्या स्वीकार कर पुलिस की गिरफ़्त में आ जाती है. फिर होता है मूवी में एक मगरमच्छ कांड और एक कोबरा कांड भी. बाकी की कहानी भी पूरी फिल्मी है. आप रोमांचक ढंग से उसको देख सकते हैं बस लॉजिक नहीं लगाना है. मत पूछिए कि अब तक मोंटू चाचा रानी रिशु को क्यों नहीं ढूंढ रहे थे, अख़बार में या अपने थानों में ही फोटो दे देते ? कई महीने ज्वालापुर में मोंटू में दोस्त इंस्पेक्टर किशोर ने जांच की, महीनों से उसका भतीजा ग़ायब था, कभी वहाँ ये गया क्यों नहीं? जबकि किशोर को हक़ीक़त पता लग चुकी थी.
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सुहागरात तक के टिप्स दे रहीं मम्मी मौसी को अपनी विधवा बेटी की फ़िक्र नहीं रही? एकदम से ग़ायब कर दिया उन्हें. लेखिका कनिका को ये नहीं पता क्या कि हिमाचल के इंस्पेक्टर का ट्रांसफ़र यूपी में नहीं हो सकता है? मोंटू के बिना वर्दी के किरदार को ऐसा पावरफुल पेश किया गया कि पता नहीं क्या कर देगा, लेकिन वो ढक्कन निकलता है, देरी से मिले दो सीसीटीवी फ़ुटेज के अलावा बस डायलॉग बाजी उसका काम था. ऐसे में विरोधी कमजोर हो तो मूवी कमजोर लगती है. हालांकि उसकी कमी सनी कौशल के किरदार में ग्रे शेड देकर पूरी की गई है.
कहानी का आधा मोड समझ पाना है मुश्किल
फ़िल्म देखकर भी आपकी समझ नहीं आएगा कि जब रिशु ने सरेंडर का प्लान किया तो ये योजना मोंटू की थी या रिशु और अभिमन्यु की? फिर रानी को थाने भेजकर दोनों की योजना क्या थी? संपेरे और पूनम को मारकर उसे अभिमन्यु को मरा दिखाया तो क्या इस योजना में रिशु नहीं था? फिर पूनम की अभिमन्यु से क्या दुश्मनी थी? अभिमन्यु को दो दो बार क्यों मारा गया? कहीं दबिश या सरेंडर के वक़्त रात को कोई डीएनए रिपोर्ट लेकर आता है क्या?
कुछ जमती नहीं ये बातें
आगरा में यमुना नदी बहती नदी है जहां मगरमच्छ निकलने की घटना साल दो साल में एक बार होती है, वहां मांस डालकर मगरमच्छों को दूर ले जाने की कहानी गढ़ना दिलचस्प है. वहाँ इतना पानी बरसातों में होता है, वो भी तेज बहाव के साथ, इतनी गहराई और शांत पानी मिलना मुश्किल है. पूनम का पुलिस वाले से बदतमीज़ी से बात करना, इंस्पेक्टर से फोटो लेकर अंदर जाकर फिर मना कर देना, फिर भी इंस्पेक्टर को शक ना होना कुछ जमा नहीं. ना तो साधारण से कंपाउंडर की शानदार शादी जमी और ना उसका रौला दिखाने के डायलॉग.
ट्विस्ट और टर्न्स फिल्म से बांधे रखेंगे
ये भी समझ नहीं आया कि जब टूरिस्ट एजेंट को पुलिस ने उठा ही लिया तो उसने दोनों के फोटो पुलिस को क्यों नहीं दिये, रानी तो वहीं गिरफ़्तार हो जाती. जब रिशु की कोचिंग से उसका पता पुलिस को क्यों नहीं मिला. ऐसे तमाम ढीले पेच आपको इस कहानी के स्क्रीनप्ले में नज़र आयेंगे. बावजूद इसके कहानी के ट्विस्ट और टर्न्स आपको फ़िल्म से बांध कर रखेंगे, कहानी के अदृश्य किरदार दिनेश पंडित के उपन्यासों की माफ़िक़ ये कहानी और इसकी शेरो शायरियाँ आपकी दिलचस्पी बनाए रखेंगी. लेकिन सच यही है कि मज़ा तभी आएगा, जब आप कोई लॉजिक ना लगायें.