इतनी सी बात को लेकर हुआ था SD Burman और साहिर का झगड़ा, जानिए अनसुने किस्से
भारतीय सिनेमा के संगीत को यह मुकाम हासिल कराने में जिन लोग ने मजबूत नींव का काम किया उन्हीं में से एक हैं सचिन देव बर्मन (Sachin Dev Burman).
गजब का था एसडी बर्मन का सेंस ऑफ ह्यूमर
एसडी बर्मन के बेटे आरडी बर्मन के जीवन पर किताब लिखने वाले लेखक खगेश देव बर्मन ने अपनी किताब में कई जगह एसडी बर्मन के बारे में भी लिखा है. वह अपने इंटरव्यूज में भी सचिन दा के बारे में बताते रहे हैं. खगेश ने एक बार बताया कि सचिन दा का सेंस ऑफ ह्यूमर भी उनके संगीत की तरह ही गजब का था. खगेश कहते ने बताया, 'मंदिर में घुसने से पहले दोनों जूते एक साथ रखने के बजाए उन्होंने एक जूता एक जगह रखा और दूसरा उससे थोड़ी दूर पर जूतों के एक ढेर में. जब उनके साथी ने इस पर सवाल उठाया तो बर्मन ने जवाब दिया, आजकल चोरी की वारदातें बढ़ गई हैं. उनके साथी ने पूछा कि अगर चोर ने जूतों के ढेर में से दूसरा जूता ढूंढ निकाला तो? बर्मन ने जवाब दिया अगर चोर इतनी मेहनत कर सकता है, तब तो वो जूता पाने का हकदार है.'
1 रुपए ज्यादा फीस को लेकर साहिर से हुई अनबन
गुरु दत्त फिल्म 'प्यासा' बना रहे थे. इसी दौरान एसडी बर्मन और साहिर लुधियानवी के बीच कुछ अनबन हो गई. इस झगड़े की वजह था गाने का क्रेडिट उसके गीतकार को या संगीतकार को ज्यादा मिलना चाहिए. एक इंटरव्यू में एसडी बर्मन के जीवन पर किताब लिखने वाली लेखिका सत्या सरन ने इस विवाद के बारे में बात की थी. सत्या अनुसार, 'मामला इस हद तक बढ़ा कि साहिर, सचिनदेव बर्मन से एक रुपया अधिक फीस चाहते थे. इस जिद के पीछे साहिर का तर्क ये था कि एसडी के संगीत की लोकप्रियता में उनका बराबर का हाथ था. सचिनदेव बर्मन ने साहिर की शर्त को मानने से इंकार कर दिया और फिर दोनों ने कभी साथ काम नहीं किया.'
लता मंगेशकर से इस बात पर कई साल तक ठनी रही
साहिर ही नहीं स्वर कोकिला लता मंगेशकर के साथ भी सचिनदेव बर्मन का झगड़ा बॉलीवुड की काफी फेमस कहानियों में शुमार है. रेडियो में इंटरव्यू देने समय लता ने इस बात का जिक्र किया था. जिस गाने पर विवाद हुआ वह गाना साल 1958 की फिल्म 'सितारों से आगे' का था. लता ने कहा था, 'जब मैंने 'पग ठुमक चलत...' गीत रिकॉर्ड किया तो दादा बहुत खुश हुए और इसे ओके कर दिया. एक बार जब संगीतकार किसी गीत को ओके कर देता है तो रिकॉर्डिंग दोबारा नहीं की जाती है. लेकिन बर्मन परफेक्शनिस्ट थे. उन्होंने मुझे फोन किया कि वो इस गीत की दोबारा रिकॉर्डिग करना चाहते हैं. मैं चूंकि बाहर जा रही थी, इस लिए मैंने रिकॉर्डिंग करने से मना कर दिया. बर्मन इस पर नाराज हो गए.' इसके बाद कई साल तक दोनों ने साथ काम नहीं किया.
बेटे पंचम ने कराई थी सुलह
लता और सचिन दा की ये अनबन कुछ सालों के बाद ही दूर हो गई. दोनों के बीच सुलह कराने वाले थे सचिन दा के बेटे पंचम यानी राहुल देव बर्मन. दरअसल 1962 में जब राहुल देव बर्मन अपनी फिल्म 'छोटे नवाब' में संगीत दे रहे थे तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि संगीत निर्देशक के तौर पर अपनी पहली फिल्म में मैं लता दीदी से गाना गवाना चाहते हैं. फिर क्या था एक बार फिर सचिन दा और लता साथ आए और कई गीत दिए.
कंजूसी भी थी मशहूर
सचिन दा के बारे में फिल्म इंडस्ट्री में एक बात उनके संगीत जैसी ही मशहूर थी. वह थी उनकी कम खर्च करने की आदत. सचिन दा को पीठ पीछे उनके दोस्त 'कंजूस' का खिताब भी दे देते थे.
फुटबॉल के शौकीन
सचिन दा को संगीत के साथ का भी बेहद शौक था. एक बार मोहन बागान की टीम हार गई तो वह काफी दुखी हो गए. इस मैच के हारने पर उन्होंने गुरुदत्त से कहा कि आज वो खुशी का गीत नहीं बना सकते, यदि कोई दुख का गीत बनवाना हो तो वो उसके लिए तैयार हैं.