जहां एक तरफ ओटीटी की मांग साल दर साल बढ़ती जा रही है तो एक विवाद भी हमेशा रहता है. अक्सर इसकी निगरानी की मांग उठती है. कभी सेंसरशिप के तहत लाने की बात कही जाती है तो कभी गाली-गलौज, फैक्ट्स और अश्लील कंटेंट को रोकने के लिए बोर्ड बनाने की मांग होती है. अब सुप्रीम कोर्ट का इसे लेकर एक फैसला आया है. 


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हुआ ये कि उच्चतम न्यायालय में ‘ओवर-द-टॉप’ (ओटीटी) और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद कंटेंट को लेकर इसके लिए एक निगरानी बोर्ड बनाने की मांग की गई थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने स्वायत्त निकाय की मांग वाली जनहित याचिका शुक्रवार को खारिज कर दिया.


कोर्ट ने क्या कहा
चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इस तरह के मुद्दे कार्यपालिका के नीति निर्माण क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं और इसके लिए विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श की आवश्यकता होती है.


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ये भी कहा
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘जनहित याचिकाओं की यही समस्या है. सभी जनहित याचिकाएं अब नीतिगत (मामलों) पर दायर की जाती हैं और हम वास्तविक जनहित याचिकाओं को छोड़ देते हैं.’ जनहित याचिका दायर करने वाले वकील शशांक शेखर झा ने याचिका वापस लेने और अपनी शिकायतों को लेकर संबंधित केंद्रीय मंत्रालय से संपर्क करने की अनुमति देने का अनुरोध किया. 


इस सीरीज का भी उठा मुद्दा
जनहित याचिका में इस तरह के नियामक तंत्र की आवश्यकता पर जोर देते हुए ‘नेटफ्लिक्स’ पर प्रसारित ‘आईसी 814: द कंधार हाईजैक’ सीरीज का भी उल्लेख किया गया है. हालांकि, ओटीटी प्लेटफॉर्म का दावा है कि यह सीरीज वास्तविक जीवन की घटनाओं पर आधारित है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इसके लिए एक वैधानिक फिल्म प्रमाणन निकाय - केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) मौजूद है, जिसे सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को विनियमित करने का काम सौंपा गया है.


इनपुट: एजेंसी


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