निर्देशक: हंसल मेहता
स्टार कास्ट :  करीना कपूर खान, रणवीर बरार, कीथ एलेन, ऐश टंडन , प्रभलीन संधु , कपिल आदि 
कहां देख सकते हैं:  थिएटर्स में 
क्रिटिक रेटिंग: 3


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एक दौर में बॉलीवुड टाइप की हीरो हेरोइन वाली फ़िल्में करने के बाद अब कई हीरोइंस ने मज़बूत महिला किरदारों वाली मूवीज करना शुरू कर दिया है, और कई में तो हीरो पूरी तरह ही ग़ायब है, इसमें भी है. करीना इस फ़िल्म के ज़रिए बतौर निर्माता भी पहली बार मैदान में उतर रही हैं, ज़ाहिर है मेहनत पहले से ज्यादा की है. फ़िल्म केट विंसलेट की एक विदेशी सीरीज़ से प्रेरित है सो पूरी सीरीज़ के ट्विस्ट, टर्न और इमोशंस एक ही फ़िल्म में डाले गये हैं, बावजूद इसके ये मसाला मूवी नहीं सो ऐसे में लगता है कि बड़े पर्दे से ज़्यादा ये OTT पर पसंद की जाएगी.


'द बकिंघम मर्डर्स' की कहानी
कहानी है इंग्लैंड के बकिंघमशायर की एक सरकारी डिटेक्टिव जसप्रीत (करीना) की, जो किसी नशेडी द्वारा अपने 10 साल के बच्चे की हत्या से अंदर तक टूट चुकी है कि तभी उसका ट्रांसफर होता है और मिलता है एक और बच्चे की हत्या का केस. ट्रांसपोर्टर दलज़ीत (रणवीर बरार) और प्रीति कोहली (प्रभलीन) ने ये अनाथ बच्चा पंजाब से कभी गोद लिया था. वहां पहले से तैनात डिटेक्टिव हार्दिक उर्फ़ हार्डी पटेल (ऐश टंडन)  दोस्त की गवाही के आधार पर दलजीत के पार्टनर सलीम के बेटे साकिब को गिरफ़्तार कर लेता है. 


लेकिन जसप्रीत को लगता है कि कहानी अभी बाक़ी है, पर उसका विभाग नहीं मानता और उसे केस से अलग करके डेस्क पर बैठा दिया जाता है. तब जसप्रीत असली कातिल को कैसे ढूँढ़कर निर्दोष को इंसाफ़ दिलाती है. फ़िल्म आगे इसी जाँच को अंजाम तक पहुँचाती है.  ऐसे में घटनाएँ इतनी तेज़ी से घटती हैं, नये किरदार इतनी तेज़ी से आते जाते हैं कि फ़िल्म से नजरें इधर उधर करना दिक़्क़त कर सकता है. उस पर ऐसे व्यक्ति का कातिल निकलना जिसके बारे में  आप सोच भी नहीं रहे थे, दिलचस्पी बढ़ाता है. 


'द बकिंघम मर्डर्स' रिव्यू
लेकिन मूवी के साथ कुछ दिक़्क़तें भी हैं, सीरीज की कहानी को छोटी मूवी में समेटने से समस्या ये हुई है कि कई किरदार ढंग से स्टेबलिश नहीं हो पाये, कई घटनाओं को छोटा भी किया गया. दलजीत का पृथ्वी, तेजेन्द्र और ड्रग माफ़िया से रिश्ता, सलीम से झगड़ा, इसप्रीत के वायरल वीडियो की कहानी, पियानो वाली कहानी, करीना के बेटे की मौत की कहानी, हार्डी की बहन की कहानी , उसका सलीम के बेटे के साथ पहला एनकाउंटर आदि काफ़ी सींस ऐसे थे जो थोड़ा रिलीफ़ माँगते हैं. जल्दी जल्दी में दिखाए गए हैं.


पहले से ही इतने पेच थे, उस पर हंसल मेहता के अपने एंगल भी जोड़े गये, मुस्लिम सिख मुद्दे, मुस्लिमों को निशाने पर दिखाना , “इनकी तो ज़ात ही गंदी होती है या 5 बार नमाज़ होती है, एक बार नहीं करोगे तो क्या होगा’’ जैसे डॉयलॉग्स से विक्टिम दिखाना, या फिर लड़कों को गे  दिखाना. आलम ये था हॉल में लोग चर्चा करने लगे थे कि हंसल मेहता निर्देशक हैं तो सलीम का बेटा तो कातिल नहीं ही निकलेगा. और जो भी बच्चा या किशोर मूवी में था, या तो वो ख़ुद ड्रग्स ले रहा था या फिर नशेडी के निशाने पर था. मानो इंग्लैंड में प्रवासियों के सारे बच्चे ऐसे ही हैं.


लेकिन अगर आप मूवी  की स्पीड के साथ बने रहते हैं तो और इमोशनली देखते हैं तो आपको करीना कपूर का शरलेक होम्स वाला ये किरदार बेहद पसंद आएगा, ख़ासतौर पर आख़िर में जब वो किलर पर ग़ुस्सा दिखाती हैं, उनका ग़ुस्से पर क़ाबू रखने का प्रयास बेहतरीन है.  ऐश टंडन, रणवीर बरार और प्रभलीन अपने रोल्स में घुस गये हैं. लेकिन साक़िब चौधरी के छोटे से रोल में कपिल आपका ध्यान खींचने में कामयाब रहे हैं.


बैकग्राउंड म्यूजिक और गाने अपनी अपनी जगह फिट हैं, ना निराश करते हैं ना बड़ी उम्मीद जगाते हैं, हाँ सिनेमेटोग्राफ़ी और लोकेशंस आपको थोड़ा अलग सा आनंद देंगे.  


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देखें या नहीं...
ऐसे में इतना तय है कि भले ही भारत में इस मूवी को देखने के लिए मूवी हॉल्स कम जायें लोग लेकिन OTT पर इस मूवी को काफ़ी देखा जाने वाला है. फीमेल ऑडियंस और लंदन ड्रीम देखने वाले युवाओं के साथ साथ विदेशों में रह रहे भारतीयों, भारतीय मूल के लोगों में भी चर्चा तय है और करीना फ़ैन्स के लिए तो मस्ट वॉच है ही.


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