`किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है`, पढ़ें राहत इंदौरी के यादगार शेर...
मशहूर शायर राहत इंदौरी (Rahat Indori) का निधन हो गया है. वो कोरोना से संक्रमित थे.
नई दिल्ली: पूरे देश में तेजी से फैलते कोरोना वायरस ने अब साहित्य जगत के लिए एक बड़ा सदमा पहुंचाया है. मशहूर शायर राहत इंदौरी (Rahat Indori) का निधन हो गया है. वो कोरोना से संक्रमित थे. राहत इंदौरी ने खुद मंगलवार सुबह ट्वीट कर इसकी जानकारी दी थी. उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यह जानकारी देते वक्त शायद उन्हें भी नहीं पता था कि यह उनका अंतिम ट्वीट बनकर रह जाएगा. राहत इंदौरी ने हमेशा अपने शेरों से उन बातों पर गौर फरमाया जो हर इंसान के दिल की आवाज है.
पढ़िए उनके मशहूर शेर...
1 'किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है'
अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुआं है, कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूं कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिब-इ-मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है
सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.
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2 बहुत हसीन है दुनिया
आंख में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे खराब करूं
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3. बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं
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4. तूफानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
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5. ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेस में वो किससे रजाई मांगे
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6. अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे
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7. जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूं, हिसाब तो दे
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8. फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
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9. किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अंदर हैं, बाहर कौन है
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था
मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था
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10 अंदर का जहर चूम लिया
अंदर का जहर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गए
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं कागज की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूंगा उसे
जहां जहां से वो टूटा है जोड़ दूंगा उसे
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11. एक चिंगारी नजर आई थी
नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं
एक चिंगारी नजर आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आंधी को इशारा करके
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींद कमरों में जगी है ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं
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12. लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूं हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूं हैं
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13. दो गज सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है,
ऐ मौत तूने मुझको जमींदार कर दिया
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14. मैं जानता हूं दुश्मन भी कम नहीं,
लेकिन हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है
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15. ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएँगी
मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूँ मैं
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16. शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
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17. ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़-दार करती रही
कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूं
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18. हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
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19. सितारों आओ मिरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुक्म है हालांकि कुछ नहीं हूंं मैं
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20. दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए